Thursday, September 26, 2019

बेटी के जन्म लेने पर यह महिला डॉक्टर नहीं लेती हैं फीस, पूरे नर्सिंग होम में बंटवाती हैं मिठाईयां

हम सुनते हैं कि फला को बेटी हुई है, बेचारा, फिर बेटी हुई है। यहाँ तक कि बेटियों के पैदा होने पर लोग वैसी खुशी जाहिर नहीं करते थे जैसे बेटा पैदा होने पर होती थी। लड़की होने का मतलब था कि घर में रहकर चूल्हा-चौक संभालो और परिवार की सेवा करो।  देश के कई इलाकों में लिंग अनुपात में लड़कियों की संख्या लड़कों से कम है। खासकर हरियाणा,राजस्थान जैसे राज्य में यह समस्या अधिक थी। समाज लाख दंभ भरता हो कि बेटी और बेटों में कोई फर्क नहीं होता है। बेटियां बेटों से कम नहीं हैं, लेकिन यह सामाजिक बुराई आज भी समाज में रचा बसा है। पर इस विकृत मानसिकता को पूरी तरह बदलने की जरूरत है। पर आज हम आपको एक ऐसी महिला डॉक्टर के बारे में बताने जा रहे है जो बेटियों और बेटों में भेदभाव करने वाले विकृत मानसिक के लोगों को मुंहतोड़ जवाब दे रही हैं। यह डॉक्टर बेटी होने पर अपने फीस नहीं लेती बल्कि पूरे नर्सिंग होम में मिठाईयां बंटवाती है।

इनका नाम है डॉ. शिप्रा धर। डॉ शिप्रा बेटी के जन्म पर अपनी नर्सिंग होम की फीस नहीं लेती हैं और पूरे नर्सिंग होम में मिठाई बंटवाती हैं। बीएचयू से एमबीबीएस और एमडी कर चुकीं शिप्रा धर वाराणसी में नर्सिंग होम चलाती हैं। उनकी 2001 में एमडी की पढ़ाई पूरी हुई। शादी के बाद वे खुद का नर्सिंग होम चलाने लगीं। शिपरा के इस काम में उनके पति डॉ. एमके श्रीवास्तव भी उनका बखूबी साथ देते हैं। कन्या भ्रूण हत्या को रोकने और लड़कियों के जन्म को बढ़ाना देने के लिए ये दोनों डॉक्टर दंपति लगे हुए हैं। वे बच्ची के जन्म पर परिवार में फैली मायूसी को दूर करने के लिए नायाब मुहीम चला रहे हैं। इसके तहत उनके नर्सिंग होम में यदि कोई महिला बच्ची को जन्म देती है, तो उससे कोई डिलिवरी चार्ज नहीं लिया जाता। इसकी जगह लोगों के बीच मिठाईयां बांटी जाती है।

अक्सर जब परिजनों को पता चलता है कि बेटी ने जन्म लिया है तो वह मायूस हो जाते हैं। गरीबी के कारण कई लोग तो रोने भी लगते हैं। इसी सोच को बदलने की वह कोशिश कर रही हैं, ताकि अबोध शिशु को लोग खुशी से अपनाएं। इसीलिए वह बेटी के जन्म पर फीस नहीं लेती हैं। बेड चार्ज भी नहीं लिया जाता। उनका वाराणसी के पहाड़िया के अशोक नगर इलाके में काशी मेडिकेयर के नाम से उनका नर्सिंग होम है। यहां बेटी पैदा होने पर जीरो बैलेंस पर जज्जा-बच्चा दोनों का इलाज होता है। यदि सिजेरियन के जरिए डिलिवरी हुई और ऑपरेशन करना पड़े तो वह भी मुफ्त है। अब तक 100 बेटियों के जन्म पर कोई चार्ज नहीं लिया गया है।

आपको बता दें कि डॉ. शिप्राधर की ओर से उनके अस्पताल में बेटी पैदा होने पर कोई भी फीस न लेने की जानकारी होते ही मई में वाराणसी दौरे पर आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुत प्रभावित हुए थे । पीएम ने बाद में मंच से अपने संबोधन में देश के सभी डॉक्टरों से आह्वान किया था कि वे हर महीने की नौ तारीख को जन्म लेने वाली बच्चियों के लिये कोई फीस ना लें। इससे बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओं की मुहिम को बल मिलेगा। डॉ. शिप्रा धर का मानना है कि सनातन काल से बेटियों को लक्ष्मी का दर्जा दिया गया। देश-विज्ञान तकनीक की राह पर भी आगे बढ़ रहा है। इसके बाद भी कन्या भ्रूणहत्या जैसे कुकृत्य एक सभ्य समाज के लिए अभिशाप हैं। वैसे भी जहां बेटी के जन्म पर खुशी नहीं, वह पैसा किस काम का। अगर बेटियों के प्रति समाज की सोच बदल सके तो वे खुद को सफल समझें
आपको बता दें कि डॉ. शिप्राधर की ओर से उनके अस्पताल में बेटी पैदा होने पर कोई भी फीस न लेने की जानकारी होते ही मई में वाराणसी दौरे पर आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुत प्रभावित हुए थे । पीएम ने बाद में मंच से अपने संबोधन में देश के सभी डॉक्टरों से आह्वान किया था कि वे हर महीने की नौ तारीख को जन्म लेने वाली बच्चियों के लिये कोई फीस ना लें। इससे बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओं की मुहिम को बल मिलेगा। डॉ. शिप्रा धर का मानना है कि सनातन काल से बेटियों को लक्ष्मी का दर्जा दिया गया। देश-विज्ञान तकनीक की राह पर भी आगे बढ़ रहा है। इसके बाद भी कन्या भ्रूणहत्या जैसे कुकृत्य एक सभ्य समाज के लिए अभिशाप हैं। वैसे भी जहां बेटी के जन्म पर खुशी नहीं, वह पैसा किस काम का। अगर बेटियों के प्रति समाज की सोच बदल सके तो वे खुद को सफल समझें।

100, 101 जैसे हेल्पलाइन नंबरों को याद रखने का झंझट खत्म, अब 112 डायल करने पर मिलेगी मदद

राजधानी दिल्ली में सभी इमरजेंसी नंबर्स को सेंट्रलाइज करने की दिशा में बुधवार को एक बडा कदम उठाया गया. अब आपको 100, 101 आदि जैसे इमरजेंसी नंबर्स को याद रखने की जरुरत नहीं है. अब मदद मांगने वालों को सिर्फ 112 डायल करना होगा और उसी नंबर पर सभी तरह की मदद मिल जाएगी. इस हेल्पलाइन नंबर से लोग एंबुलेंस, दमकल और पुलिस की मदद ले सकेंगे. पुलिस के कंट्रोल रूम में सभी दूसरी इमरजेंसी सेवाओं को जोड़ा गया है. जिसमें जरुरत के हिसाब से कनेक्ट कर दिया जाएगा. 112 नंबर को सभी इमरजेंसी नंबर्स से इंटीग्रेट किया गया है. बुधवार को केंद्रीय गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी ने दिल्ली में क्राइम रोकने के लिए नई पट्रोलिंग वैन ‘प्रखर’ की भी शुरुआत की. ये स्कोर्पियो गाड़ियां हैं जिन्हें लॉन्च किया गया है. मालूम हो कि राजधानी दिल्ली में पिछले दो सालों में स्ट्रीट क्राइम में 25 फीसदी तक कमी आई है. राज्यमंत्री किशन रेड्डी के मुताबिक अब प्रखर की शुरुआत किए जाने के बाद क्राइम में और कमी आने की उम्मीद जताई है.

Friday, September 6, 2019

मालवीय नगर: 25 हजार रुपये का चालान कटते ही युवक ने बाइक को लगा दी आग

नशे में पकड़े जाने के बाद ट्रैफिक पुलिस (Traffic Police) ने उसका 25 हजार रुपये का चालान (Challan) काट दिया. चालान कटने से राकेश नामका बाइक सवार इस कदर नाराज हो गया कि उसने अपनी बाइक (Bike) की टंकी से तेल निकाला और बाइक पर छिड़ककर उसमें आग (Fire) लगा दी. देश में नया मोटर व्हीकल एक्ट (Motor Vehicle Act 2019) लागू होने के बाद से ट्रैफिक नियम (Traffic Rules) तोड़ने वालों पर भारी भरकम जुर्माना (Penalty) लगाया जा रहा है. कई गाड़ियों के चालान उनकी कीमत से भी ज्यादा के काटे जा चुके हैं. पुलिस की सख्ती से लोगों में काफी डर बना हुआ है. चालान से बचने के लिए कोई अपने दो पहिया वाहनों को पैदल सड़क पर लेकर चलता दिखाई दे रहा है तो कोई पुलिस वालों से मिन्नतें करता दिख रहा है. इन सबके बीच एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है.
दिल्ली के मालवीय नगर इलाके में एक सनसनीखेज घटना में जब ट्रैफिक पुलिसकर्मी नशे में ड्राइव करने वालों की पहचान करने के लिए गाड़ियों को रोककर चेकिंग कर रहे थे. उस दौरान एक बाइक सवार शराब के नशे में गाड़ी चलाता पकड़ा गया. नशे में पकड़े जाने के बाद ट्रैफिक पुलिस ने उसका 25 हजार रुपये का चालान काट दिया. चालान कटने से राकेश नामका बाइक सवार इस कदर नाराज हो गया कि उसने अपनी बाइक की टंकी से तेल निकाला और बाइक पर छिड़ककर उसमें आग लगा दी. बाइक सवार युवक की इस हरकत को देखकर हर कोई हैरान रह गया. स्थानीय पुलिस के साथ-साथ फायर ब्रिगेड को भी इस बात की खबर दी गई, लेकिन बाइक पर लगी आग पर जब तक काबू पाया जाता बाइक जलकर खाक हो चुकी थी. पुलिस ने राकेश के खिलाफ आईपीसी 453 के तहत मामला दर्ज कर लिया है. पुलिस के मुताबिक राकेश ने वाहन चेकिंग के दौरान शराब पी रखी थी. राकेश का मेडिकल कराने के बाद उसके खिलाफ मामला दर्ज कर उसे हिरासत में ले लिया गया है.

Wednesday, September 4, 2019

हौजरानी के एजुकेशन फादर हैं श्री सैफउल्लाह खान

दिल्ली के मालवीय नगर हौजरानी क्षेत्र के स्कूल राजकीय बाल विघालय के अध्यापक श्री सैफउल्लाह खान का हौजरानी क्षेत्र में शिक्षा के प्रति योगदान को कभी नहीं भूला जा सकता है इनका योगदान इतना रहा कि खाली समय में भी कक्षांए दी बल्कि अपने पास से पुस्कतें तक बांटी इन्होने बच्चों की पढाई के लिए वह सब कुछ किया जो एक पिता कर सकता है, कहते हैं गुरु शिष्य परम्परा भारत की संस्कृति का एक अहम और पवित्र हिस्सा है। बच्चों के एडमिश्न के लिए सरकारी ओफिस की भागदौड करी, कभी कभी राजनीतिक दबाव भी रहा, एक समय स्कूल का महौल ऐसा कि पूरा स्कूल खुद वह संभालते व कक्षांए भी दीं, जीवन में माता पिता का स्थान कभी कोई नहीं ले सकता क्योंकि वे ही हमें इस रंगीन खूबसूरत दुनिया में लाते हैं। कहा जाता है कि जीवन के सबसे पहले गुरु हमारे माता पिता होते हैं। भारत में प्राचीन समय से ही गुरु व शिक्षक परंपरा चली आ रही है, लेकिन जीने का असली सलीका हमें शिक्षक ही सिखाते हैं। सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं, श्री सैफउल्लाह खान जो कि खान सर नाम से स्कूल में चर्चित रहे..!
आपको अपना आदर्श बनाया, आप जैसा बनने का सपना सजाया, मार्ग पर आप के सदृश ही, हम ने अपना कदम बढाया, आपको अपना आदर्श बनाया, ज्ञान की ज्योति जगा कर, शिक्षा का महत्व बता कर, था जीवन में जो अंधियारा, आप ने ही वह दूर भगाया, आपको अपना आदर्श बनाया, निर्भयी है जो निश्चयी अटल है,  नश्वर इस संसार में वही सफल है, न हार जो जीवन माने कभी,  संघर्श ही है कर्तव्य बताया, आपको अपना आदर्श बनाया, वात्साल्य स्नेह का परम देवता,  दृश्टि कोण आप का देखता, ज्ञान ज्योति का दीपक जगत में,  आप ने घर घर जलाया, आपको अपना आदर्श बनाया,
इनके बारे में जितने शब्द कहें जाए कम हैं, आज हम बस यही कह सकते हैं कि श्री सैफउल्लाह खान हौजरानी क्षेत्र के लिए एजुकेश्न फादर हैं। हम तो यही चाहेगे कि विधाता की असीम कृपा इन पर बनी रहे। आपका शिष्य व पूर्व छात्र@वली सैफी
पूर्व छात्र मौहम्मद जाहिद कहते है कि मेरे पसंदीदा प्रतिभाशाली सर में से एक आपके जैसा काम करता रहता है और आपकी यादें हमेशा हमारे साथ रहती हैं। हमेशा खुश रहें और चिंता न करें,
पूर्व छात्र गफफार कहते है कि इनके योगदान को कभी नहीं भूला जा सकता,

Sunday, September 1, 2019

आहार की गुणवत्ता में हो सुधार, तभी साकार होगा कुपोषण मुक्त भारत का सपना

 कुपोषण के कई रूप हैं, जैसे बच्चों का नाटा रह जाना, कम वजन, एनीमिया प्रमुख हैं। इनमें से कुछ में समय के साथ सुधार हुआ है। ओडिशा, छत्तीसगढ़ जैसे गरीब राज्यों में भी सुधार देखा गया। यह किसी विडंबना से कम नहीं है कि कुपोषण के साथ भारत अधिक वजन, मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी नई चुनौतियों का भी सामना कर रहा है, जिसे पोषण संबंधी गैर-संचारी रोग भी कहा जाता है। हर पांच में से एक महिला और हर सात में से एक भारतीय पुरुष आज बढ़ते वजन से पीड़ित हैं। शहरी क्षेत्र में दिनोंदिन यह प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है। मातृ एवं शिशु अल्पपोषण, बच्चों और व्यस्कों का बढ़ता वजन और गैर-संचारी रोग मिलकर भारत के विकास को प्रभावित करते हैं। साथ ही मातृ एवं शिशु मृत्यु दर, स्कूल प्रदर्शन को प्रभावित करने के साथ ही आर्थिक लागत में भी इजाफा करते हैं। कुल मिलाकर, भारत में कुपोषण का बोझ एक ऐसी चुनौती है, जिससे सभी को चिंतित होना चाहिए। भले ही भारत में चल रहे कार्यक्रम और राजनीतिक नेतृत्व पोषण एजेंडे को आगे बढ़ाने का एक सक्षम माध्यम बने हुए हों, लेकिन दो उपेक्षित चीजों पर बिना ध्यान दिए कुपोषण के सभी रूपों से छुटकारा नहीं मिल सकता है। पहली भारतीय समाज में लड़कियों और महिलाओं की स्थिति और दूसरी देश भर में आहार की गुणवत्ता।

लैंगिक मसले पर तीस वर्षो से शोधकर्ता कह रहे हैं कि महिलाओं के खिलाफ भेदभाव, शिक्षा की कम पहुंच, कम उम्र में शादी, स्वास्थ्य सेवाओं की कम पहुंच के साथ अन्य चीजें भारत में कुपोषण को बढ़ावा दे रही हैं। कुपोषण से निपटने के लिए हम अभी भी आइसीडीएस और स्वास्थ्य प्रणाली पर ध्यान ज्यादा केंद्रित करते हैं, लैंगिक संबंधी चुनौतियों को नजर अंदाज कर रहे हैं। भारत की महिलाएं कुपोषित हैं। कुछ का वजन कम है और कुछ में खून की कमी है। और अन्य अधिक वजन वाली हैं। दूसरा, कम उम्र और खून की कमी से पीड़ित महिलाओं से पैदा होने वाली संतान के कुपोषित होने की संभावनाएं अधिक होती हैं। भारत में बहुत सी महिलाओं के बच्चे तब होते हैं जब वे किशोर अवस्था में होती हैं। इस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। इससे भी बुरी बात यह है कि कुपोषित बच्चे बड़े होकर मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों से पीड़ित होते हैं, जिससे मृत्यु की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। कुल मिलाकर ध्यान न देने के कारण भारत की लड़कियों और महिलाओं के स्वास्थ्य पर और समाज के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है, 
दूसरी चीज के तहत, केंद्र और राज्य को आहार की गुणवत्ता और भोजन के स्वास्थ पैटर्न पर बहुत जोर देने की आवश्यकता है। चाहे वह अल्पपोषण हो या एनीमिया या अधिक वजन और मोटापा, भारत की आबादी द्वारा ग्रहण किए जाने वाले भोजन की गुणवत्ता और विविधता पर ध्यान देने की आवश्यकता है। आहार की गुणवत्ता को किसी भी व्यक्ति के जीवन में भोजन के सभी स्नोतों के संदर्भ में देखना जरूरी है। चाहे वह सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत दिया गया भोजन हो, मिड-डे मील के तहत उपलब्ध कराया जा रहा भोजन हो, आइसीडीएस या देश के बाजारों में उपलब्ध खाद्य पदार्थ हो, वर्तमान चुनौती उच्च अनाज और कम प्रोटीन वाले खाद्य पदार्थों की है पीडीएस ज्यादातर चावल, गेहूं, तेल और चीनी की आपूर्ति करता है; आइसीडीएस खाद्य पदार्थो में भी अनाज की मात्रा अधिक होती है और चीनी के तत्व भी शामिल होते हैं। शोध बताते हैं कि भले ही स्वास्थ खाद्य पदार्थ जैसे अंडा, डेयरी, फल, सब्जियां और दालें बाजारों में उपलब्ध हों, लेकिन उनकी लागत अधिकांश लोगों की पहुंच से दूर है। भारत के बाजारों में डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों की बढ़ती उपलब्धता और प्रचार-प्रसार भी भारत में आहार की खराब गुणवत्ता में योगदान कर रहा है। भारत में कुपोषण को खत्म करने के लिए सरकार, कृषि और खाद्य प्रणाली के लिए एक बड़ी चुनौती उत्पादन, उपलब्धता और पहुंच में सुधार करने की है। आहार की गुणवत्ता में सुधार से मातृ और बाल कुपोषण में सुधार के साथ-साथ गैर-संचारी रोगों से छुटकारा मिलेगा।

हौजरानी प्रेस एन्क्लेव में बन सकता है फ्लाईओवर: 50 हजार से ज्यादा लोगों को जाम से मिलेगा छुटकारा

दिल्ली वालों को बड़ी राहत मिलने वाली है। साकेत मैक्स अस्पताल के बाहर पंडित त्रिलोक चंद शर्मा मार्ग पर लगने वाले जाम से जल्द मुक्ति मिलेगी। प...