कुल मिलाकर साउथ एमसीडी एरिया में करीब 100 बिल्डिंगों को नोटिस जारी किया गया है, जिनमें ग्रुप हाउसिंग सोसायटी, स्कूल और कमर्शल बिल्डिंग्स हैं। नॉर्थ एमसीडी के जोनल अफसरों ने भी 6 जोन में करीब 100 ऐसी बिल्डिंगों को नोटिस जारी किया है। ईस्ट एमसीडी में 66 बिल्डिंगों को नोटिस जारी किया गया है, साउथ एमसीडी अफसरों के अनुसार, जिन बिल्डिंगों को स्ट्रक्चरल ऑडिट के लिए नोटिस जारी किया गया है, उन्हें 90 दिनों में स्ट्रक्चरल ऑडिट कराने के लिए कहा गया है। नोटिस मिलने के बाद कुछ बिल्डिंगों का स्ट्रक्चरल ऑडिट भी शुरू हो चुका है। जिन बिल्डिंगों की स्ट्रक्चरल ऑडिट हो चुकी है, उनमें से ज्यादातर की रिपोर्ट में बीम और कॉलम में दरारें पाई गई है। यह किसी भी हाईराइज बिल्डिंग के लिए गंभीर समस्या है और ऐसी बिल्डिंगें भूकंप के तेज झटके सहन नहीं कर सकतीं।
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Monday, June 29, 2020
दिल्ली में भूकंप के तेज झटकों के लिए तैयार नहीं हैं 30 साल पुरानी 90 प्रतिशत बिल्डिंग
नई दिल्ली: नॉर्थ, साउथ और ईस्ट एमसीडी ने जिन 30 साल या इससे अधिक पुरानी हाई-राइज बिल्डिंगों को नोटिस जारी किया है, उनमें से कुछ बिल्डिंगों की ऑडिट रिपोर्ट आई है। रिपोर्ट काफी चौंकाने वाली है। इसमें 90 प्रतिशत बिल्डिंगों के बीम और कॉलम में दरारें पाई गई हैं, जो भूकंप के तेज झटकों को झेल नहीं सकतीं। साउथ एमसीडी ने अभी तक करीब 100, नॉर्थ एमसीडी ने भी लगभग इतने ही और ईस्ट एमसीडी ने 66 बिल्डिंगों को नोटिस जारी किया है। साउथ एमसीडी ने नेहरू प्लेस स्थित 16 मंजिला मोदी टावर, 17 मंजिला प्रगति देवी टावर, 15 मंजिला अंसल टावर, 17 मंजिला हेमकुंट टावर को स्ट्रक्चरल ऑडिट के लिए नोटिस जारी किया है। आश्रम चौक पर स्थित नैफेड बिल्डिंग, सफदरजंग एन्क्लेव एरिया में स्थित कमल सिनेमा और जनकपुरी स्थित भारती कॉलेज को भी नोटिस जारी किया है।
कुल मिलाकर साउथ एमसीडी एरिया में करीब 100 बिल्डिंगों को नोटिस जारी किया गया है, जिनमें ग्रुप हाउसिंग सोसायटी, स्कूल और कमर्शल बिल्डिंग्स हैं। नॉर्थ एमसीडी के जोनल अफसरों ने भी 6 जोन में करीब 100 ऐसी बिल्डिंगों को नोटिस जारी किया है। ईस्ट एमसीडी में 66 बिल्डिंगों को नोटिस जारी किया गया है, साउथ एमसीडी अफसरों के अनुसार, जिन बिल्डिंगों को स्ट्रक्चरल ऑडिट के लिए नोटिस जारी किया गया है, उन्हें 90 दिनों में स्ट्रक्चरल ऑडिट कराने के लिए कहा गया है। नोटिस मिलने के बाद कुछ बिल्डिंगों का स्ट्रक्चरल ऑडिट भी शुरू हो चुका है। जिन बिल्डिंगों की स्ट्रक्चरल ऑडिट हो चुकी है, उनमें से ज्यादातर की रिपोर्ट में बीम और कॉलम में दरारें पाई गई है। यह किसी भी हाईराइज बिल्डिंग के लिए गंभीर समस्या है और ऐसी बिल्डिंगें भूकंप के तेज झटके सहन नहीं कर सकतीं।
कुल मिलाकर साउथ एमसीडी एरिया में करीब 100 बिल्डिंगों को नोटिस जारी किया गया है, जिनमें ग्रुप हाउसिंग सोसायटी, स्कूल और कमर्शल बिल्डिंग्स हैं। नॉर्थ एमसीडी के जोनल अफसरों ने भी 6 जोन में करीब 100 ऐसी बिल्डिंगों को नोटिस जारी किया है। ईस्ट एमसीडी में 66 बिल्डिंगों को नोटिस जारी किया गया है, साउथ एमसीडी अफसरों के अनुसार, जिन बिल्डिंगों को स्ट्रक्चरल ऑडिट के लिए नोटिस जारी किया गया है, उन्हें 90 दिनों में स्ट्रक्चरल ऑडिट कराने के लिए कहा गया है। नोटिस मिलने के बाद कुछ बिल्डिंगों का स्ट्रक्चरल ऑडिट भी शुरू हो चुका है। जिन बिल्डिंगों की स्ट्रक्चरल ऑडिट हो चुकी है, उनमें से ज्यादातर की रिपोर्ट में बीम और कॉलम में दरारें पाई गई है। यह किसी भी हाईराइज बिल्डिंग के लिए गंभीर समस्या है और ऐसी बिल्डिंगें भूकंप के तेज झटके सहन नहीं कर सकतीं।
Friday, June 5, 2020
भूकंप के इतने झटके दिल्ली-एनसीआर में क्यों आ रहे?
भारत के दिल्ली-एनसीआर इलाक़े में इस साल की 12 अप्रैल और तीन मई के बीच में नेशनल सेंटर ऑफ़ सीसमोलोजी ने भूकंप के 7 झटके रिकार्ड किए. इनमें से किसी भी झटके की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 4 से ज़्यादा की नहीं थी और जानकरों को लगता है कि 5 से कम तीव्रता वाले भूकंप के झटकों से बड़ा नुक़सान नहीं होने की सम्भावना प्रबल रहती है. इस बीच दो सवाल ज़रूर उठ रहे हैं. पहला ये कि आख़िर दिल्ली-एनसीआर में भूकंप के झटकों के वाक़ये बढ़ क्यों रहे हैं और क्या भविष्य के लिए ये बड़ी चिंता का विषय बन सकता है लेकिन सबसे पहले इस बात को समझने की ज़रूरत है कि भारत में भूकंप की क्या आशंकाएं हैं. भूगर्भ विशेषज्ञों ने भारत के क़रीब 59% भू-भाग को भूकंप सम्भावित क्षेत्र के रूप में वर्गित किया है.
दुनिया के दूसरे देशों की तरह ही भारत में ऐसे ज़ोन रेखांकित किए गए हैं जिनसे पता चलता है कि किस हिस्से में सीस्मिक गतिविधि (पृथ्वी के भीतर की परतों में होने वाली भोगौलिक हलचल) ज़्यादा रहती हैं और किन हिस्सों में कम. वैज्ञानिकों ने इसका तरीक़ा निकाला है भूकंप सम्भावित क्षेत्रों के चार-पाँच सीस्मिक ज़ोन बना कर उन्हें चिन्हित करना. ज़ोन-1 में भूकंप आने की आशंका सबसे कम रहती है वहीं ज़ोन-5 में ज़्यादा प्रबल रहती है. दिल्ली-एनसीआर का इलाक़ा सीस्मिक ज़ोन-4 में आता है और यही वजह है कि उत्तर-भारत के इस क्षेत्र में सीस्मिक गतिविधियाँ तेज़ रहती हैं. जानकार सीस्मिक ज़ोन-4 में आने वाले भारत के सभी बड़े शहरों की तुलना में दिल्ली में भूकंप की आशंका ज़्यादा बताते हैं. ग़ौरतलब है कि मुबई, कोलकाता, चेन्नई और बेंगलुरु जैसे शहर सिस्मिक ज़ोन-3 की श्रेणी में आते हैं. जबकि भूगर्भशास्त्री कहते हैं कि दिल्ली की दुविधा यह भी है कि वह हिमालय के निकट है जो भारत और यूरेशिया जैसी टेक्टॉनिक प्लेटों के मिलने से बना था और इसे धरती के भीतर की प्लेटों में होने वाली हलचल का ख़मियाज़ा भुगतना पड़ सकता है. 'इंडियन एसोसिएशन ऑफ़ स्ट्रक्चरल इंजीनियर्स' के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर महेश टंडन को लगता है कि दिल्ली में भूकंप के साथ-साथ कमज़ोर इमारतों से भी ख़तरा है.
उन्होंने कहा, "हमारे अनुमान के मुताबिक़ दिल्ली की 70-80% इमारतें भूकंप का औसत से बड़ा झटका झेलने के लिहाज़ से डिज़ाइन ही नहीं की गई हैं. पिछले कई दशकों के दौरान यमुना नदी के पूर्वी और पश्चिमी तट पर बढ़ती गईं इमारतें ख़ास तौर पर बहुत ज़्यादा चिंता की बात है क्योंकि अधिकांश के बनने के पहले मिट्टी की पकड़ की जाँच नहीं हुई है". भारत के सुप्रीम कोर्ट ने चंद वर्षों पहले आदेश दिया था कि ऐसी सभी इमारतें जिनमें 100 या उससे अधिक लोग रहते हैं, उनके ऊपर भूकंप रहित होने वाली किसी एक श्रेणी का साफ़ उल्लेख होना चाहिए. फ़िलहाल तो ऐसा कुछ देखने को नहीं मिलता. दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र की एक बड़ी समस्या आबादी का घनत्व भी है. डेढ़ करोड़ से ज़्यादा आबादी वाले दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में लाखों इमारतें दशकों पुरानी हो चुकी हैं और तमाम मोहल्ले एक दूसरे से सटे हुए बने हैं.
भूगर्भशास्त्रियों के अनुसार दिल्ली और उत्तर भारत में छोटे-मोटे झटके या आफ्टरशॉक्स तो आते ही रहेंगे लेकिन जो बड़ा भूकंप होता है उसकी वापसी पाँच वर्ष में ज़रूर होती है और इसीलिए ये चिंता का विषय है. वैसे भी दिल्ली से थोड़ी दूर स्थित पानीपत इलाक़े के पास भूगर्भ में फॉल्ट लाइन मौजूद है जिसके चलते भविष्य में किसी बड़ी तीव्रता वाले भूकंप की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता. वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ हिमालयन टेक्नोलोजी के प्रमुख भूगर्भशास्त्री डॉक्टर कालचंद जैन मानते हैं कि, "किसी बड़े भूकंप के समय, स्थान और रिक्टर पैमाने पर तीव्रता की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती".
लेकिन उन्ही के मुताबिक़, "हम इस बात को भी कह सकते हैं कि दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में सीस्मिक गतिविधियाँ सिलसिलेवार रहीं हैं और वे किसी बड़े भूकंप की भी वजह हो सकती हैं". भूकंप और सीस्मिक ज़ोन से जुड़ी एक और अहम बात है कि किसी भी बड़े भूकंप की रेंज 250-350 किलोमीटर तक हो सकती है. मिसाल के तौर पर 2001 में गुजरात के भुज में आए भूकंप ने क़रीब 300 किलोमीटर दूर स्थित अहमदाबाद में भी बड़े पैमाने पर तबाही मचाई थी. अगर दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में पिछले 300 वर्षों के भूकंप इतिहास को टटोला जाए तो सबसे ज़्यादा तबाही मचाने वाला भूकंप 15 जुलाई, 1720 का बताया जाता है.
भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के पूर्व सहायक महानिदेशक डॉक्टर प्रभास पांडे ने इस मामले पर वर्षों तक रिसर्च करके अपने स्टडी में इसका ज़िक्र किया है. उनके अनुसार, "1720 वाले भूकंप की तीव्रता का अंदाज़ा 1883 में प्रकाशित हुए 'द ओल्डहैम्स कैटालॉग ऑफ़ इंडियन अर्थक्वेक्स' से मिलता है और रिक्टर पैमाने पर ये 6.5-7.0 के बीच का रहा था. इसने पुरानी दिल्ली और अब नई दिल्ली इलाक़े में भारी तबाही मचाई थी और भूकंप के पाँच महीनों बाद तक हल्के झटके महसूस किए गए थे".
डॉक्टर प्रभास पांडे आगे लिखते हैं, "अगर 20वीं सदी की बात हो तो 1905 में काँगड़ा, 1991 में उत्तरकाशी और 1999 में चमोली में आए भूकंप उत्तर भारत में बड़े कहे जाएँगे और इनके कोई न कोई जुड़ाव पृथ्वी के बीचे वाली गतिविधियों से रहा है जो एक ही समय पर दिल्ली-एनसीआर में भी महसूस की गईं हैं" सवाल यह भी है कि दिल्ली भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए कितनी तैयार है.
सार्क डिज़ास्टर मैनेजमेंट सेंटर के निदेशक प्रोफ़ेसर संतोष कुमार को लगता है कि पहले की तुलना में अब भारत ऐसी किसी आपदा से बेहतर निपट सकता है. उन्होंने बताया, "देखिए आशंकाएं सिर्फ़ अनुमान पर आधारित होती हैं. अगर हम लातूर में आ चुके भूकंप को ध्यान में रखें तो निश्चित तौर पर दिल्ली में कई भवन असुरक्षित हैं. लेकिन बहुत सी जगह सुरक्षित भी हैं. सबसे अहम है कि हर नागरिक ऐसे ख़तरे को लेकर सजग रहे और सरकारें प्रयास करें कि नियमों का उल्लंघन क़त्तर्ई न हो."
'सेंटर फ़ॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट' की अनुमिता रॉय चौधरी का भी मानना है कि दिल्ली में हज़ारों ऐसी इमारतें हैं जिनमें रेट्रोफ़िटिंग यानी भूकंप निरोधी मरम्मत की सख़्त ज़रूरत है. उन्होंने कहा, "भारत के कई हिस्सों से इमारतों के ज़मीन में धसने की ख़बरें आती रहती हैं और वो भी बिना भूकंप के. अब चूँकि दिल्ली-एनसीआर का इलाक़ा पहले से ही यमुना नदी के दोआब पर फैलता गया है तो ज़ाहिर है बड़े भूकंप को झेल पाने की क्षमता भी कम होगी. ज़रूरत पुरानी इमारतों की पूरी मरम्मत करके, सभी नई इमारतों को कम से कम 7.0 रिक्टर स्केल की तीव्रता वाले भूकंप को झेलने वाला बनाने की है." नितिन श्रीवास्तव: बीबीसी संवाददाता
Monday, June 1, 2020
Delhi University Exams 2020: फाइनल ईयर के स्टूडेंट्स को देने होंगे ओपन बुक एग्जाम
दिल्ली यूनिवर्सिटी (DU) ने फाइनल ईयर के स्टूडेंट्स के लिए ओपन बुक एग्जामिनेशन (Open Book Exams) आयोजित कारने का फैसला लिया है. ओपन बुक एग्जामिनेशन (OBE) के लिए दिल्ली यूनिवर्सिटी ने ऑफिशियल वेबसाइट पर गाइडलाइन्स जारी कर दी हैं. नोटिफिकेशन को देखने के लिए इच्छुक उम्मीदवार ऑफिशियल वेबसाइट du.ac.in पर लॉग इन कर सकते हैं. दरअसल, कोरोनावायरस (Coronavirus) के प्रकोप के चलते परीक्षाएं आयोजित कराना संभव नहीं हैं. स्टूडेंट्स की पढ़ाई और अकेडमिक कैलेंडर को ध्यान में रखते हुए दिल्ली यूनिवर्सिटी ने इस बार फाइनल ईयर के स्टूडेंट्स के लिए ओपन बुक एग्जामिनेशन आयोजित कराने का निर्णय लिया है. हालांकि, ज्यादातर स्टूडेंट्स और शिक्षक इस तरह से परीक्षाएं आयोजित कराने का विरोध कर रहे हैं. लेकिन सभी विरोधों के बीच दिल्ली यूनिवर्सिटी ने एग्जाम के लिए गाइडलाइन्स जारी कर दी हैं. इससे ये साफ हो गया है कि फाइनल ईयर के स्टूडेंट्स को इस बार ओपन बुक एग्जामिनेशन ही देने होंगे. परीक्षाएं 1 जुलाई से आयोजित की जाएंगी.
Delhi University Exams 2020: ये हैं गाइंडलाइन्स
1. OBE के लिए परीक्षार्थी को पूरे समय के लिए नेट के माध्यम से ऑनलाइन रहने की आवश्यकता नहीं होगी. बल्कि परीक्षार्थी को केवल प्रश्नपत्र डाउनलोड करने व उत्तर-पुस्तिकाओं को अपलोड करने के लिए ही इंटरनेट व हार्डवेयर ( जैसे- लैपटॉप, डेस्कटॉप, स्मार्ट फ़ोन आदि ) की ज़रूरत होगी. स्टूडेंट्स को प्रश्नों के उत्तर घर में ही ख़ाली शीट्स पर लिखकर उन्हें अपलोड करना होगा. 2. परीक्षा के लिए कुल समय सीमा तीन घंटे मिलेगी, जिसमें परीक्षा लिखने के लिए दो घंटे का समय दिया जाएगा. वहीं, एक घंटे का समय उत्तर-पुस्तिका को अपलोड करने के लिए होगा. दिव्यांग वर्ग के विद्यार्थियों के लिए कुल समय 5 घंटे का मिलेगा. 3. जिनके पास ऑनलाइन परीक्षा सम्बन्धी संसाधनों की सुविधा नहीं है, उनको इलेक्ट्रॉनिक्स व इंफॉर्मेशन टेक्नोलोजी मंत्रालय के देश भर में बने कॉमन सर्विस सेंटर की सहायता से विश्विद्यालय सुविधा मुहैया कराएगा. तकनीकी रूप से सुविधाविहीन विद्यार्थी अपना पंजीकरण करवाकर वहां से सुविधा ले सकते हैं. इससे संबंधित जानकारी कुछ दिनों बाद विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर उपलब्ध कराई जाएगी.4. OBE के लिए विद्यार्थियों को एक प्रैक्टिस सेशन भी दिया जाएगा, इसमें विद्यार्थी मॉक एग्ज़ाम दे सकेंगे. इसकी व्यवस्था परीक्षा शुरू होने से एक हफ़्ते पहले शुरू की जाएगी.5. ओपन बुक एग्जामिनेशन में शामिल होने वाले उम्मीदवार अगर अपनी परफॉर्मेंस में सुधार करना चाहते हैं तो उन्हें सेमेस्टर साइकिल के मुताबिक सुधार करने का मौका दिया जाएगा. 6. सभी छात्र इस बात को सुनिश्चित करें कि उनके द्वारा संबंधित पाठ्यक्रमों के लिए परीक्षा फॉर्म पहले ही भरे जा चुके हैं. 7. कॉलेज परीक्षा से पहले कुछ टेलीफोन नंबर जारी करेंगे. किसी भी तरह की जरूरत पड़ने या किसी भी जानकारी को पाने के लिए स्टूडेंट्स उन नंबरों का उपयोग कर सकेंगे. 8. एग्जाम के लिए टेंटेटिव शेड्यूल यूनिवर्सिटी की ऑफिशियल वेबसाइट पर जारी किया जा चुका है. स्टूडेंट्स वेबसाइट से शेड्यूल चेक कर सकते हैं और किसी भी तरह की समस्या होने पर ई-मेल के जरिए एग्जामिनेशन ब्रांच से पता कर सकते हैं. 9. अगर परीक्षा के दौरान किसी समस्या के कारण स्टूडेंट्स पोर्टल पर अपनी आंसर शीट्स अपलोड नहीं कर पाते हैं तो वे आंसर शीट की पीडीएफ फाइल जारी की गई ई-मेल आईडी पर भेज सकते हैं. इस विकल्प का इस्तेमाल सिर्फ एमरजेंसी में ही किया जा सकता है. 10. विद्यार्थियों के भविष्य और हितों को ध्यान में रखते हुए विश्वविद्यालय की पूरी कोशिश रहेगी कि OBE रिजल्ट जुलाई के अंत तक जारी कर दिया जाए.
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