मेहरबान अमरोहवी: कुरआन और अहादीस में रमज़ान की बहुत सी फ़जीलते बयान की गई हैं। जहाँ तक की अगर लोगों को रमज़ान की हक़ीक़त मालूम हो जाए तो तमन्ना करें कि पूरे साल रमज़ान ही रहें। रमज़ान बरकत रहमत और अल्लाह की बे शुमार नेअमतों को पाने का ज़रिया है। रमज़ान के रोज़े हर आकिल बालिग मर्द और औरत पर फ़र्ज़ किए गए है, रोज़ा जहाँ एक तरफ़ तक़वा और परहेज़गारी सिखाता है वही सेकड़ों जिस्मानी बीमारियों को भी दूर करता है। रोज़ा बे हयाई और बुरे कामों से रुके रहने की प्रेक्टिस कराता है। रोज़े की फ़ज़ीलत का अंदाज़ा इस से लगाया जा सकता है कि अल्लाह तआला ने इसे अपनी तरफ़ निस्बत करते हुए फ़रमाया कि रोज़ा मेरे लिए है और मै ही इसकी जज़ा यानि बदला दूँगा।
रोज़दार के मुँह की बदबू जो भूखा रहने की वजह से उसके मुँह से आती है अल्लाह को मुश्क की खुशबू से भी ज़्यादा पसंद है। हदीस में आता है कि जन्नत में आठ दरवाज़े हैं उनमें से एक दरवाज़े का नाम रय्यान है उस दरवाज़े से रोज़दार दाख़िल होंगे। रोज़ा गरीब की भूख का एहसास दिलाता है। हदीस में आता है की हर चीज़ के लिए ज़कात है और बदन की ज़कात रोज़ा है। रमज़ान में तीन अशरे होते हैं इसका पहला अशरा यानि शुरू के दस दिन रहमत दूसरा अशरा मग़फिरत और तीसरा अशरा जहन्नम से आज़ादी है। मुसलमानों को चाहिए कि रमज़ान के दिनों में अपने नौकरों के काम में ढील दिया करें। हदीस में आता है कि जो अपने नौकरों पर इस महीने काम का बोझ इस लिए कम करे की नौकर रोज़े से हो तो अल्लाह तआला उसे बख्श देगा और जहन्नम से आज़ाद फरमाएगा। रमज़ान में हर आदमी के नेक काम का बदला दस से सात सौ गुना तक दिया जाता है। रमज़ान में मुसलमानों को चाहिए की खूब इबादतें करें, नेक कामों मे कसरत से लगा रहे अगर अल्लाह ने दौलत से नवाज़ा है तो खूब खैरातो इमदाद करे और हर वक़्त ज़िक्र ए इलाही से अपनी ज़बान को मुअत्तर रखे। रमज़ान में दुआऐं क़ुबूल होती है लिहाज़ा सभी के लिए दुआओं का एहतेमाम करें। और खाकसार को भी अपनी दुआओं में याद रखे।