विश्वविद्यालय ने 2017 में सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए थे. विश्वविद्यालयों के प्रदर्शन का आकलन छात्रों की विविधता एवं समता, संकाय गुणवत्ता एवं संख्या, अकादमिक परिणामों, अनुसंधान प्रदर्शन, पहुंच, संचालन, वित्त, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग एवं मान्यता और पाठ्येतर गतिविधियों के पैमानों पर किया जाता है. मंत्रालय के ‘नेशनल इंस्टिट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क' (एनआईआरएफ) की पिछले महीने घोषित रैंकिंग में जामिया विश्वविद्यालय 10वें स्थान पर रहा था. ‘समग्र' श्रेणी में विश्वविद्यालय को 16वां स्थान मिला था.
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Monday, July 20, 2020
2019-20 में 'शानदार' रहा जामिया यूनिवर्सिटी का प्रदर्शन: HRD मंत्रालय का आकलन
Thursday, July 16, 2020
दिल्ली दंगे सुनियोजित और संगठित थे: दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग
दिल्ली के उत्तर-पूर्वी ज़िले में फ़रवरी में हुए दंगे सुनियोजित, संगठित थे और निशाना बनाकर किए गए थे. ये कहना है दंगों की जाँच के लिए दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग की गठित कमेटी का. दिल्ली में 23 से 27 फ़रवरी के बीच दंगे हुए थे जिसमें आधिकारिक तौर पर 53 लोग मारे गए थे. इसकी जाँच के लिए दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने नौ मार्च को नौ सदस्यीय कमेटी का गठन किया था. सुप्रीम कोर्ट के वकील एमआर शमशाद कमेटी के चेयरमैन थे जबकि गुरमिंदर सिंह मथारू, तहमीना अरोड़ा, तनवीर क़ाज़ी, प्रोफ़ेसर हसीना हाशिया, अबु बकर सब्बाक़, सलीम बेग, देविका प्रसाद और अदिति दत्ता कमेटी के सदस्य थे.
कमेटी ने 134 पन्नों की अपनी रिपोर्ट 27 जून को दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग को सौंप दी थी लेकिन आयोग ने गुरुवार का ये रिपोर्ट सार्वजनिक की है. कमेटी का कहना है कि उसने दंगों की जगह पर जाकर पीड़ितों के परिवारों से बात की, उन धार्मिक स्थलों का भी दौरा किया जिनकों दंगों में नुक़सान पहुँचाया गया था. कमेटी ने दिल्ली पुलिस से भी इस मामले में संपर्क किया और उनका पक्ष जानना चाहा, लेकिन कमेटी के अनुसार दिल्ली पुलिस ने उनके किसी भी सवाल या संवाद को कोई जवाब नहीं दिया.
दिल्ली पुलिस पहले भी अपने ऊपर लगाए गए आरोपों से इनकार कर चुकी है और गृह मंत्री अमित शाह संसद में कह चुके हैं कि दिल्ली दंगों के दौरान दिल्ली पुलिस ने अच्छा काम किया, दिसंबर, 2019 में नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) बनने के बाद देशभर में इसके ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन होने लगे. दिल्ली में भी कई जगहों पर सीएए के विरोध में प्रदर्शन होने लगे. दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी के कई नेताओं ने सीएए विरोधियों के ख़िलाफ़ हिंसा भड़काने के लिए भाषण दिए. ऐसे कई भाषणों को इस रिपोर्ट का हिस्सा बनाया गया है.
हिंदू दक्षिणपंथी गुटों के ज़रिए सीएए के विरोध में प्रदर्शन कर रहे लोगों को डराने धमकाने के लिए उनपर हमले किए गए. 30 जनवरी को जामिया मिल्लिया इस्लामिया में प्रदर्शनकारियों पर रामभक्त गोपाल ने गोली चलाई और एक फ़रवरी को कपिल गुर्जर ने शाहीन बाग़ में प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाई. 23 फ़रवरी को बीजेपी नेता कपिल मिश्रा के मौजपुर में दिए गए भाषण के फ़ौरन बाद दंगे भड़क गए. इस भाषण में कपिल मिश्रा ने जाफ़राबाद में सीएए के विरोध में बैठे प्रदर्शनकारियों को बलपूर्वक हटाने की बात की थी और दिल्ली पुलिस के डीसीपी वेद प्रकाश सूर्या की मौजूदगी में कपिल मिश्रा ने ये भडकाऊ भाषण दिया था.
हथियारबंद भीड़ ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली के कई इलाक़ों में लोगों पर हमले किए, उनके घरों और दुकानों को आग लगा दी. इस दौरान भीड़ जय श्रीराम, हर-हर मोदी, काट दो इन. को और आज तुम्हें आज़ादी देंगे जैसे नारे लगा रही थी. मुसलमानों की दुकानों को चुन-चुन कर निशाना बनाया गया जिसमें स्थानीय युवक भी थे और कुछ लोग बाहर से लाए गए थे. अगर दुकान के मालिक हिंदू हैं और मुसलमान ने किराए पर दुकान ले रखी थी तो उस दुकान को आग नहीं लगाई गई थी, लेकिन दुकान के अंदर का सामान लूट लिया गया था. पीड़ितों से बातचीत के बाद लगता है कि ये दंगे अपने आप नहीं भड़के बल्कि ये पूरी तरह सुनियोजित और संगठित थे और लोगों को चुन-चुन कर निशाना बनाया गया था. रिपोर्ट के अनुसार 11 मस्जिद, पाँच मदरसे, एक दरगाह और एक क़ब्रिस्तान को नुक़सान पहुँचाया गया. मुस्लिम बहुल इलाक़ों में किसी भी ग़ैर-मुस्लिम धर्म-स्थल को नुक़सान नहीं पहुँचाया गया था.
इन दंगों में दिल्ली पुलिस की भूमिका बहुत ख़राब थी. कई जगहों पर वो तमाशाई बने रहे या फिर दंगाइयों को शह देते रहे. चश्मदीदों के अनुसार अगर किसी एक जगह एक पुलिस वाले ने दंगाइयों को रोकने की कोशिश भी की तो उसके साथी पुलिसवाले ने उसे ही रोक दिया. पीड़ितों के अनुसार पुलिस ने कई मामलों में एफ़आईआर लिखने से मना कर दिया और कई बार संदिग्ध का नाम हटाने के बाद एफ़आईआर लिखी. कई जगहों पर पुलिसवालों ने दंगाइयों को हमले के बाद ख़ुद सुरक्षित निकाल कर ले गए और कई जगह तो कुछ पुलिस वाले ख़ुद हमले में शामिल थे. महिला पीड़ितों के अनुसार कई जगहों पर उनके नक़ाब और हिजाब उतारे गए. दंगाई और पुलिस वालों ने धरने पर बैठी महिलाओं को निशाना बनाया और इसमें कई पुरुष पुलिसकर्मी ने महिलाओं के साथ बदतमीज़ी की. उनको रेप करने और एसिड हमले करने की धमकी दी गई.
कमेटी ने मुआवज़े के लिए लिखे गए 700 आवेदनों का अध्ययन किया. कमेटी ने पाया कि ज़्यादातर मामलों में क्षतिग्रस्त जगह का दौरा भी नहीं किया गया है और जिन मामलों में सही पाया गया है उनमें भी सिर्फ़ बहुत कम अंतरिम सहायता राशि दी गई है. दंगों के फ़ौरन बाद कई लोग घर छोड़ कर चले गए हैं, इसलिए वो मुआवज़े के लिए अपील भी नहीं कर सके हैं. मुआवज़े में भी सरकारी अधिकारी के मरने पर उनके परिवार वालों को एक करोड़ की रक़म दी गई जबकि आम नागरिकों की मौत पर केवल 10 लाख रुपए का मुआवज़ा दिया गया.
रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में क़ानून-व्यवस्था की ज़िम्मेदारी केंद्र सरकार की है फिर भी दंगों में पीड़ितों को केंद्र सरकार की तरफ़ से कोई मदद नहीं की गई. कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में सिफ़ारिश की है कि सरकार या अदालत से अनुरोध किया जाए कि हाईकोर्ट के किसी रिटायर्ज जज की अध्यक्षता में एक पाँच सदस्यीय कमेटी बनााई जाए.
जज की अध्यक्षता वाली कमेटी एफ़आईआर नहीं लिखने, चार्जशीट की मॉनिटरिंग, गवाहों की सुरक्षा, दिल्ली पुलिस की भूमिका और उनके ख़िलाफ़ उचित कार्रवाई जैसे मामलों में अपना फ़ैसला सुनाए. कमेटी ने ये भी कहा है कि दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग को अपने एक्ट के अनुसार दंगों में शामिल होने या अपनी भूमिका ठीक से नहीं निभाने वाले दिल्ली पुलिस के अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करनी चाहिए. कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में अभियोजक की बहाली, मुआवज़ा, क्षतिग्रस्त धार्मिक स्थलों की मोरम्मत जैसे मामलों में भी कई सुझाव दिए हैं.
हालांकि दिल्ली पुलिस ने दिल्ली हाईकोर्ट में पेश किए गए एक हलफ़नामे में कहा है कि अब तक उन्हें ऐसे कोई सबूत नहीं मिले हैं जिनके आधार पर ये कहा जा सके कि बीजेपी नेता कपिल मिश्रा, परवेश वर्मा और अनुराग ठाकुर ने किसी भी तरह लोगों को 'भड़काया हो या दिल्ली में दंगे करने के लिए उकसाया हो.' दिल्ली पुलिस ने ये हलफ़नामा एक याचिका के जवाब में पेश किया. इस याचिका में उन नेताओं के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज करने की बात कही गई है, जिन्होंने जनवरी-फ़रवरी में विवादित भाषण दिया था. हलफ़नामे को पेश करते हुए डिप्टी कमिश्नर (क़ानून विभाग) राजेश देव ने ये भी कहा कि अगर इन कथित भड़ाकाऊ भाषणों और दंगों के बीच कोई लिंक आगे मिलेगा तो उचित एफ़आईआर दर्ज़ की जाएगी.
दिल्ली पुलिस की तरफ़ से दंगों को लेकर दर्ज कुल 751 अपराधिक मामलों का ज़िक्र करते हुए कोर्ट में कहा गया कि शुरुआती जाँच में ये पता चला है कि ये दंगे 'त्वरित हिंसा' नहीं थे बल्कि बेहद सुनियोजित तरीक़े से सोच समझ कर 'समाजिक सामंजस्य बिगाड़ा' गया. दिल्ली पुलिस ने इसी महीने के शुरू में अदालत में अपनी प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में कहा है कि पूर्वी दिल्ली के दंगों के लिए सऊदी अरब और देश के अलग-अलग हिस्सों से मोटी रकम आई थी. पुलिस ने बुधवार को यह भी कहा ये दंगे अचानक नहीं भड़के थे, बल्कि दिल्ली में अधिक से अधिक जान-माल की हानि के लिए पहले से तैयारी की गई थी. दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने अदालत से आग्रह किया कि उन्हें इन दंगों की जड़ों तक पहुंचने और आरोप पत्र दाखिल करने के लिए वक़्त दिया जाए. इनमें आम आदमी पार्टी से निलंबित निगम पार्षद ताहिर हुसैन, जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र नेता मीरान हैदर और गुलिफ्सा खातून के नाम शामिल हैं. आम आदमी पार्टी के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन पर आईबी अधिकारी अंकित शर्मा की दंगों के दौरान हत्या मामले में अभियुक्त बनाया गया है. दिल्ली पुलिस ने ताहिर हुसैन के ख़िलाफ़ दाख़िल चार्जशीट में कहा है कि अंकित शर्मा के शव पर बरामदगी के समय 51 ज़ख़्म मिले थे, जैसे उनपर किसी धारदार हथियार से हमला किया गया हो, जिससे लगता है कि पूरा मामला किसी बड़ी साज़िश का नतीजा थी.
Saturday, July 11, 2020
'न्याय के मंदिर का दरवाजा कभी नहीं होगा बंद'...सुप्रीम कोर्ट ने दिया भरोसा
फर्जी एसबीआई शाखा चलाने के लिए तीन लोग गिरफ्तार
Thursday, July 9, 2020
"नटराज आर्ट क्लब" ओर "दिल्ली म्यूजिक क्लब" के सहयोग से ऑनलाइन कांटेस्ट का आयोजन
Friday, July 3, 2020
प्राईवेट स्कूल में फीस की मनमानी और अभिभावक की परेशानी : मिर्जा़ ज़की अहमद बेग
आज कल प्राइवेट स्कूल के खिलाफ कार्रवाई की माँग काफी बढ़ गई है, कुच्छ लोग धरने पर बैठे हुए हैं तो कुछ प्रेस बयान दे रहे हैं, इस में सामाजिक चिंता भी है और सियासत भी है. चुनावी मौसम आ रहा है, इस लिए इस बहाने जनता के बीच अपनी मौजूदगी लोग दर्ज करा रहे हैं. कुछ अभिभावक का कहना है कि जब पढ़ाई नहीं तो फीस क्यूँ, उनकी बात को नकारा नहीं जा सकता है लेकिन प्रश्न य़ह भी है कि स्कूल पूरे साल का कार्यक्रम बनाते हैं. शिक्षकों की नियुक्ति पूरे साल के लिए होती है, स्कूल में टूट फुट और दूसरे खर्च अलग हैं. अब अगर स्कूल वाले फीस नहीं लेंगे तो शिक्षकों की तनख्वाहें और दूसरे ख़र्चे कैसे पूरे करेंगे. स्कूल सिर्फ स्कूल मैनेजमेंट से नहीं चलता, अभिभावकों का साथ भी चाहिए. अगर इतनी ही तकलीफ़ है तो अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ने क्यूँ भेजा, सरकारी स्कूल में दाखिला लिया होता. इतनी ही चिंता है तो सरकारी स्कूल की दशा और दिशा ठीक करें और वहाँ अपने बच्चों को भेजें. हाँ कुछ स्कूल ऐसे हैं जो फीस में मन मानी करते हैं उस पर बात की जाए. इसके लिए स्कूल के मैनेजमेंट से बात की जा सकती है, अथवा अभिभावक संघ होता है जिसे पी टी ए भी कहते हैं. अगर स्कूल की कुछ शिकायत है तो बात करें नहीं माने तो सरकारी शिक्षा विभाग है. बहुत से स्कूल ने लॉक डाउन में भी क्लास जारी रखा और ऑन लाइन की सुविधाएं उपलब्ध कराया और बच्चों को उन के घरों पर शिक्षा दी. स्कूल के बारे में दोनों पक्षों के हित को ध्यान में रखते हुए ही कुछ कदम उठाए जाएं. विरोध करने से पहले दोनों पक्षों का अध्ययन करें फिर जो उचित हो करें.
हौजरानी प्रेस एन्क्लेव में बन सकता है फ्लाईओवर: 50 हजार से ज्यादा लोगों को जाम से मिलेगा छुटकारा
दिल्ली वालों को बड़ी राहत मिलने वाली है। साकेत मैक्स अस्पताल के बाहर पंडित त्रिलोक चंद शर्मा मार्ग पर लगने वाले जाम से जल्द मुक्ति मिलेगी। प...
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निर्भया रेप केस में आखिरकार दोषियों को फांसी पर लटका ही दिया गया। इस पूरे केस में सुप्रीम कोर्ट की वकील सीमा कुशवाहा की जमकर तारीफ हो रही ह...