मेरे आने मेरे जाने पे नज़र रखती है
मेरी बीवी मेरे हर पल की खबर रखती है।
एक आवाज़ पे सोते से मै उठ जाता हूँ
अपनी आवाज़ में वो इतना असर रखती है।
ये अलग बात है कुछ काम नही आता उसे
हाँ मगर बाते बनाने का हुनर रखती है।
ऐसा लगता है के मारेगी तमाचा शायद
गाल पर हाथ भी वो मेरे अगर रखती है।
सारे घर को ही अखाड़ा सा बना डाला है
दिल दहलता है मेरा पाँऊ जिधर रखती है।
मैके जाने की मुझे धौंस में ले रक्खा है
अपना तय्यार वो सामाने सफ़र रखती है।
औरते सारी यूँ ही रहती है डर कर उस से
वो तो मर्दों से भी लड़ने का जिगर रखती है।
कोरमा सोच के मै खौफ से खा लेता हूँ
जब मेरे सामने वो आलू मटर रखती है।
मेहरबाँ मेरी समझ में नही आया अब तक
माल वो जाने छुपा कर के किधर रखती है।
(मेहरबान अमरोहवी)