Wednesday, March 29, 2023

रमजान में भी कुछ लोगों के गुनाह माफ नहीं होते

 फुरकान शाह: रमजान अरबी भाषा का शब्द है। रमजान का शाब्दिक अर्थ है 'जला देना'। यह रोजा रखने वाले के गुनाहों को जला देता है। रमजान के पहले दिन दस दिन रहमत, अगले दस दिन मग़फिरत और बाकी दस दिन जहन्नम से आजादी के हैं। दुनिया में तीन तरह के लोग हैं- पहले वे लोग हैं जो गुनहगार नहीं हैं उनके लिए तो शुरु से ही रहमत और इनाम की बारिश हो जाती है। दूसरे वे लोग हैं जो मामूली गुनहगार हैं, उनके लिए रोजा रखने की बरकत से गुनाहों की माफी हो जाती है। तीसरे वे लोग हैं जो ज्यादा गुनहगार हैं, उनके लिए पूरे महीने के रोजे रखने और इबादत करने के बाद आग से निजात (जहन्नम से आजादी) है। रमजान के पवित्र महीने में भी चार प्रकार के लोगों के गुनाह माफ नहीं होते। ऐसे लोगों की रोज़े रखने पर भी मग़फिरत नहीं होती। वे चार प्रकार के लोग हैं- (1) शराब पीने वाले (2) मां-बाप का दिल दुखाने वाले (3) सगे- संबंधियों से झगड़ा रखने वाले (4) अपनों से नफरत करने वाले और उन को नुकसान पहुंचाने की ताक में रहने वाले।

इस्लाम में शराब हराम है और इसके पीने वाले अगर तौबा करके पीना नहीं छोड़ते हैं तो उनकी बख़्शीश नहीं है। मां-बाप का दिल दुखाने वाले नाफरमानों के लिए तो माफी की कोई गुंजाइश ही नहीं। करीबी रिश्तेदारों से  झगड़ने के बाद सुलह न करने वालों को माफी नहीं मिलती। अपने करीबियों और रिश्तेदारों से किना रखने वाले, उन्हें नुकसान और तकलीफ पहुंचाने की ताक में रहने वाले, उनसे नफरत करने वाले की भी माफी नहीं। इसके अलावा यदि रब चाहे तो किसी को भी माफ कर सकता है। उसकी रहमत से मायूस नहीं होना चाहिए और अपने गुनाहों से तौबा कर के फिर से गुनाह न करने का प्रण लेना चाहिए। 

रोजा सिर्फ़ भूखे- प्यासे रहने का नाम नहीं है बल्कि शरीयत के अनुसार अपने दिन- रात गुजारने का नाम भी है। रोजे की भूख और प्यास हमें गरीब और लाचारों की भूख- प्यास का एहसास कराती है। रोजा हमें सब्र और संयम सिखाता है। रोजा रखने के अनेक लाभ आज विज्ञान से भी प्रमाणित हो चुके हैं। यह शरीर के साथ-साथ आत्मा को भी पवित्र बनाता है।यह हमें अनेक बीमारियों से बचाता है। कैंसर जैसी ख़तरनाक बीमारियां रोजा रखने से समाप्त हो जाती हैं। रमजान में लोग दिल खोलकर खर्च करते हैं। गरीबों को जकात और खैरात दी जाती है। हमें चाहिए कि हम सहरी और इफ्तार के समय भी अपने पड़ोसियों और गरीब रिश्तेदारों का ख़ास ख़्याल रखें। एक मुसलमान पर फर्ज है कि दुनिया की तालीम के साथ-साथ दीन की तालीम भी हासिल करे। रमजान के महीने में सहरी और इफ्तार के समय की जाने वाली दुआएं ख़ास तौर पर कबूल होती हैं। सभी रोजेदारों से ख़ास अपील है कि अपने साथ-साथ पूरी मानवता के लिए दुआ करें।

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