Tuesday, December 31, 2019

मंत्री देने वाली सीट रही है मालवीय नगर

नई दिल्ली: मालवीय नगर विधानसभा सीट को दिल्ली को मंत्री देने वाले विधानसभा क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। अब तक इस सीट से चार विधायक मंत्री रह चुके हैं। आप के अस्तित्व में आने से पहले इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस के बीच टक्कर रहती थी, लेकिन आप के आने के बाद मुकाबला त्रिकोणीय हो गया और यह सीट भी आप की झोली में आ गई। हालांकि पिछली बार इस सीट से जीते आप उम्मीदवार को मंत्री पद नहीं मिला था। इस सीट से एक बार भाजपा, तीन बार कांग्रेस और दो बार आप को जीत मिली है।
विधानसभा गठन के बाद 1993 में हुए पहले चुनाव में भाजपा के राजेंद्र गुप्ता और कांग्रेस के डॉ. योगानंद शास्त्री के बीच कांटे का मुकाबला हुआ था। जिसमें शास्त्री को महज 258 मतों से शिकस्त मिली थी। राजेंद्र गुप्ता को भाजपा की पहली सरकार में परिवहन मंत्री बनाया गया। लेकिन, 1998 के विधानसभा चुनाव में डॉ. योगानंद शास्त्री ने राजेंद्र गुप्ता को आठ हजार मतों से पराजित किया और वह शीला सरकार में खाद्य आपूर्ति मंत्री बने। कांग्रेस ने 2003 के चुनाव में भी डॉ. योगानंद शास्त्री पर ही दांव लगाया, लेकिन भाजपा ने सीट को फिर से हासिल करने के लिए मोनिका अरोड़ा को चुनावी दंगल में उतारा। मोनिका को 4520 मतों से पराजित कर शास्त्री स्वास्थ्य मंत्री बने।
2008 में परिसीमन में इस क्षेत्र का काफी हिस्सा महरौली के साथ जोड़ दिया गया। इसलिए डॉ. योगानंद शास्त्री महरौली से चुनावी किस्मत आजमाने चले गए और कांग्रेस ने मालवीय नगर से प्रोफेसर किरण वालिया को उतारा। भाजपा ने रामभज को यहां से टिकट दिया। लेकिन किरण वालिया 3732 मतों से विजयी होकर विधानसभा में पहुंचीं और मंत्री बनीं।
वर्ष 2013 के चुनाव में आम आदमी पार्टी ने मुकाबले को रोचक बना दिया। कांग्रेस की ओर से एक बार फिर से प्रोफेसर किरण वालिया चुनाव मैदान में थीं। जबकि भाजपा ने आरती मेहरा पर दांव लगाया। वहीं, आप ने सोमनाथ भारती को चुनाव मैदान में उतारा। भारती ने 7772 मतों से जीत हासिल कर कांग्रेस व भाजपा को तगड़ा झटका दिया। उन्हें अर¨वद केजरीवाल की 49 दिनों की सरकार में कानून मंत्री बनाया गया था। 2015 में हुए चुनाव में आप ने फिर से सोमनाथ भारती को मैदान में उतारा। वहीं भाजपा ने एक बार फिर प्रत्याशी बदला और नंदिनी शर्मा को चुनाव मैदान में उतारा। कांग्रेस ने भी अपने पुराने दिग्गज डॉ. योगानंद शास्त्री पर दांव खेला, लेकिन जीत फिर से आप की झोली में आ टपकी। सोमनाथ भारती ने भाजपा की नंदिनी शर्मा को करीब 16 हजार मतों से पराजित किया।

Saturday, December 21, 2019

1987 से पहले जन्‍मे लोगों को माना जाएगा भारतीय नागरिक- CAA और NRC पर सरकार की सफाई

गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया है कि जन्मतिथि और जन्मस्थान से संबंधित दस्तावेजों से भी भारत की नागरिकता साबित हो सकती है. देश में नागरिकता कानून (Citizenship Act) और एनआरसी (NRC) के विरोध में चल रहे हिंसक प्रदर्शनों की बीच सरकार ने CAA और NRC पर अपनी सफाई दी है. गृह मंत्रालय ने शुक्रवार को एक बयान जारी कर कहा, “भारत में जिनका जन्म 1 जुलाई 1987 से पहले हुआ या जिनके माता-पिता 1987 से पहले जन्मे हैं, वे कानूनन भारतीय नागरिक हैं. नागरिकता कानून 2019 के कारण या देशभर में एनआरसी लागू होने पर उन्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है.” माता-पिता में से किसी एक भारतीय होना अनिवार्य : अधिकारियों ने बताया कि नागरिकता कानून (Citizenship Act) में 2004 में किए गए संशोधनों के मुताबिक, असम को छोड़कर शेष देश में अगर किसी के माता-पिता में कोई भी एक भारत का नागरिक है और अवैध अप्रवासी नहीं है तो ऐसे बच्चों को भारतीय नागरिक माना जाएगा.


जन्म तिथि या जन्म स्थान से साबित कर सकते हैं नागरिकता : गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया है कि जन्मतिथि और जन्मस्थान से संबंधित दस्तावेजों से भी भारत की नागरिकता साबित हो सकती है. उन्होंने कहा, “भारत की नागरिकता जन्मतिथि या जन्मस्थान या दोनों से संबंधित कोई भी दस्तावेज देकर साबित की जा सकती है. आने वाले समय में गृह मंत्रालय नागरिकता साबित करने की प्रक्रिया को और आसान बनाने के लिए काम कर रहा है.” NRC- 1 और NRC -2 में कौन होगा शामिल? गृह मंत्रालय ने साफ किया कि अगर आप 26 जनवरी 1950 के बाद और 1 जुलाई 1987 से पहले भारत में पैदा हुए हैं तो आप NRC-1 में होंगे. वहीं, अगर आप 1 जुलाई 1987 से 3 दिसंबर 2004 के पहले तक भारत में पैदा हुए हैं तो आप NRC-2 में आएंगे. अगर 3 दिसंबर 2004 को या इसके बाद आप भारत में पैदा हुए हैं और आपके जन्‍म के समय आपके माता-पिता भारतीय नागरिक हैं तो आप भारतीय नागरिक माने जाएंगे.


Wednesday, December 18, 2019

जब महात्मा गांधी ने कहा था ‘मैं कटोरा लेकर भीख मांगूंगा लेकिन जामिया किसी भी हालत में बंद नहीं होनी चाहिए’

जामिया पर बीजेपी के तमाम नेता अनाप-शनाप बयान दे रहे हैं। मीडिया में यूनिवर्सिटी को लेकर पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर ख़बरे़ परोसी जा रही हैं। लेकिन आपको जामिया का इतिहास जानना होगा। क्योंकि जामिया में लगी एक-एक ईंट राष्ट्रवाद और मुल्क़ की मोहब्बत में डूबी हुई हैं। यह सिर्फ़ एक यूनिवर्सिटी नहीं बल्कि राष्ट्रवाद की मज़बूत ईमारत है। जामिया राष्ट्रवादियों की यूनिवर्सिटी है। जामिया की बुनियाद ही अंग्रेज़ी हुक़ूमत के ख़िलाफ़ बग़ावत के तौर पर पड़ी थी। महात्मा गांधी के राष्ट्रवाद के आह्वान पर 19 अक्टूबर 1920 में मौलाना हसन अली, मौलाना मोहम्मद अली जौहर, हकिम अजमल ख़ान, डॉ मुख़्तार अहमद अंसारी अब्दुल माजिद ख़्वाजा ने जामिया की बुनियाद रखी। पूरा नाम रखा “जामिया मिल्लिया इस्लामिया” तीन भाषाओं के इस नाम का अर्थ आप समझिए। जामिया के माने विश्वविद्यालय, मिल्लिया के माने राष्ट्रीय और इस्लामिया के माने इस्लाम। पूरा मतलब आप हिन्दी में समझें तो “राष्ट्रीय मुस्लिम यूनिवर्सिटी”। 1920 में जब देश 550 रियासतों में बंटा था। जब यही तय नहीं था कि राष्ट्र का स्वरूप कैसा होगा। तब राष्ट्र सिर्फ़ एक सपना और उम्मीद के सिवा भारतीयों के लिए कुछ नहीं था। ऐसे वक़्त में “राष्ट्रीय मुस्लिम विश्वविद्यालय” की स्थापना की गई।

अंग्रेज़ों से बग़ावत करके बनी जामिया तमाम तरह की दिक्कतों से गुजरती रही। पैसों की किल्लत हमेशा रही। कोई सरकारी मदद नहीं मिलती थी। जामिया के संस्थापक तिरपाल के टेंट में यूनिवर्सिटी चला रहे थे। दिक्कतों की वजह से 1925 में जामिया को अलीगढ़ से दिल्ली के करोल बाग़ शिफ्ट किया गया। एक वक़्त ऐसा आया जब जामिया को बंद करने की नौबत आ गई। तब महात्मा गांधी ने कहा था “जामिया किसी भी हालत में बंद नहीं होनी चाहिए। अगर पैसों की दिक्कत होगी तो मैं कटोरा लेकर भीख मांगूंगा लेकिन जामिया को बंद नहीं होने दूंगा। पैसों सहित की तमाम तरह की परेशानियों के बावजूद भी जामिया चलती रही। राष्ट्रवाद की भावनाओं से ओत-प्रोत जामिया के छात्र जंग ए आज़ादी में कूदते रहे। आज़ादी के दीवानों की इस यूनिवर्सिटी का एक-एक छात्र हर उस सत्याग्रह में शामिल हुआ, जो अंग्रेजी हुक़ूमत के ख़िलाफ़ था। 1928 में सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में गुजरात में बारदोली सत्याग्रह की शुरूआत हुई। इस आंदोलन में जामिया का एक-एक छात्र शामिल रहा। यहां के छात्र पूरे देश में घूम घूमकर लोगों को आज़ादी के लिए जागरूक कर रहे थे।
जामिया परिसर से हिन्दी के प्रसिद्ध उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद की यादें भी जुड़ी हैं। जामिया परिसर में ही बैठकर प्रेमचंद ने अपनी आख़िरी कहानी “कफ़न” लिखी थी। जामिया स्थित मुंशी प्रेमचंद अभिलेखागार में प्रेमचंद के वो वाक्य भी शिलापट्ट पर लिखे गए हैं, जो उन्होंने जामिया के लिए कहे थे। प्रेमचंद ने कहा था “जामिया राष्ट्र के प्रति सच्ची सेवा का आदर्श रखता है।” भारत की कोकिला सरोजिनी नायडू‘ के अनुसार उन्होंने ”तिनका-तिनका जोड़कर और तमाम कुर्बानियाँ देकर जामिया का निर्माण किया था।” जामिया का इतिहास पढ़िए और सोचिए। साथ ही मीडिया के फैलाए ग़लत न्यूज़ से प्रभावित मत होइए। यह आंदोलनों से उपजी यूनिवर्सिटी है। यहां की मिट्टी में आंदोलन है, इमारतों में हक़परस्ती है, दर-ओ-दीवार में इंसाफ़ है और यहां पढ़नेवालों के दिल में राष्ट्र है।
(निसार सिद्दीक़ी: लेखक जामिया मिलिया इस्लामिया के रिसर्च स्कॉलर हैं)

Wednesday, December 11, 2019

हौजरानी में अवैध कब्ज़ों से आपात स्थिति में आवगमन मुश्किल

साउथ दिल्ली का मालवीय नगर के हौजरानी जहाँपनाह खिड़की एक्सटेंशन रोड़ पर दुकानों के अवैध कब्ज़ों ओर रेहड़ी ठेलों से पूरा रोड इतना जाम रहता है की आपात स्थिति में आवगमन मुश्किल है होटल, ढाबे, फेक्ट्री ओर छोटी छोटी गालियो की भरमार, जहाँ एम्बुलेंस व फायर ब्रिगेड की गाड़ी कभी आसानी से आ ही नहीं सकती, मिंटो का सफर घण्टो में तय होता है, पिछले दिनों हमारी गली के एक लाइट पोल में आग लगी, मगर फायर बिग्रेड की गाड़ी कॉलोनी में नही आई, मजबूरी में लोगो ने ख़ुद रेत मिट्टी डाल कर आग बुझाई, फायर ब्रिगेड की गाड़ी मेन रोड से ही वापस चली गयी, इन अवैध कब्ज़ों ओर रेहड़ी के बारे में कई बार दिल्ली पुलिस व साउथ नगर निगम को अवगत कराया गया मगर कोई समाधान नही हुआ, हौजरानी इलाका 'फायर एक्सीडेंट' जैसी आपदा के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं है प्रशासन को समय रहते उचित करेवाही करनी चाहिए, हमें डर है कि कहीं ये प्रशासन की लापरवाही जान लेवा साबित न हो जाय,  (मालवीय नगर सुरक्षा कवच)


Thursday, December 5, 2019

27 साल पहले 6 दिसंबर 1992 को क्या हुआ था अयोध्या में..?

27 साल पहले आज ही के दिन यानी 6 दिसंबर को अयोध्या में वह सब हो गया, जिसकी सबको आशंका थी. लेकिन कोई ऐसा होते देखना नहीं चाहता था. अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के विवादित ढांचे को लाखों की संख्या में पहुंचे कारसेवकों ने गिरा दिया था, इस घटना के हुए आज 27 साल हो चुके हैं. 6 दिसंबर 1992 का दिन देश ही नहीं विश्व के इतिहास का सबसे काला दिन बन गया. हजारों लोग आपस में लड़े-भिड़े, कत्लेआम हुए, उन घावों की टीस आज भी दिलों में उठती है. 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में चारों तरफ धूल ही धूल थी. यहां कोई आंधी नहीं चल रही थी, लेकिन यह मंजर किसी आंधी से कम भी नहीं था. 'जय श्रीराम', 'रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे', 'एक धक्का और दो... जैसे नारों से अयोध्या गूंज रही थी. मौजूद कार सेवकों के साथ लोगों की बड़ी संख्या विवादित स्थल के अंदर घुस गई थी और विवादित गुंबद पर उनका कब्जा हो गया था. हाथों में बल्लम, कुदाल, छैनी-हथौड़ा लिए उन पर वार पर वार करने लगे. जिस कारसेवक हाथ में जो था, उसी ढांचे को ध्वस्त करने में लगा था और देखते ही देखते वर्तमान, इतिहास हो गया था. केंद्र की तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार और राज्य की तत्कालीन कल्याण सिंह सरकार देखती रह गई थी. दिलचस्प बात यह थी कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने सुप्रीम कोर्ट को भरोसा दिलाया था कि उसके आदेशों का पूरा पालन होगा, लेकिन मस्जिद के विध्वंस को रोक नहीं सके. इसके चलते कल्याण सिंह को एक दिन की सजा भी हुई थी. फिलहाल 6 दिसंबर के दिन सुबह लालकृष्ण आडवाणी कुछ लोगों के साथ विनय कटियार के घर गए थे. इसके बाद वे विवादित स्थल की ओर रवाना हुए. आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और विनय कटियार के साथ उस जगह पहुंचे, जहां प्रतीकात्मक कार सेवा होनी थी. वहां उन्होंने तैयारियों का जायजा लिया था. इसके बाद आडवाणी और जोशी 'राम कथा कुंज' की ओर चल दिए. यह उस जगह से करीब दो सौ मीटर दूर था. यहां वरिष्ठ नेताओं के लिए मंच तैयार किया गया था. यह जगह विवादित ढांचे के सामने थी. उस समय बीजेपी की युवा नेता उमा भारती भी वहां थीं, वो सिर के बाल कटवाकर आई थीं, ताकि सुरक्षाबलों को चकमा दे सकें. सुबह 11 बजकर 45 मिनट पर फैजाबाद के जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस अधीक्षक ने 'बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि परिसर' का दौरा किया. इसके बाद भी वहां कारसेवकों की भीड़ लगातार बढ़ती जा रही थी. दोपहर को अचानक एक कार सेवक किसी तरह गुंबद पर पहुंचने में कामयाब हो गया. इसके बाद जब भीड़ बढ़ी तो बेकाबू हो चुकी थी. विवादित ढांचे को गिराने की बकायदा रिहर्सल भी की गई थी. इसके घटना के बाद देश के कई राज्यों में सांप्रदायिक दंगे में हुए, जिनके सैकड़ो लोगों की जानें गई. इसी आंदोलन से देश की राजनीतिक दशा और दिशा बदल गई. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर को अयोध्या मामले में रामलला विराजमान के पक्ष में अपना फैसला सुनाया था. इस साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिमों को अयोध्या में अलग से 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया था. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने 1934, 1949 और 1992 में मुस्लिम समुदाय के साथ हुई ना-इंसाफी को गैरकानूनी करार दिया है..! aajtak.intoday.in

हौजरानी प्रेस एन्क्लेव में बन सकता है फ्लाईओवर: 50 हजार से ज्यादा लोगों को जाम से मिलेगा छुटकारा

दिल्ली वालों को बड़ी राहत मिलने वाली है। साकेत मैक्स अस्पताल के बाहर पंडित त्रिलोक चंद शर्मा मार्ग पर लगने वाले जाम से जल्द मुक्ति मिलेगी। प...