जामिया पर बीजेपी के तमाम नेता अनाप-शनाप बयान दे रहे हैं। मीडिया में यूनिवर्सिटी को लेकर पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर ख़बरे़ परोसी जा रही हैं। लेकिन आपको जामिया का इतिहास जानना होगा। क्योंकि जामिया में लगी एक-एक ईंट राष्ट्रवाद और मुल्क़ की मोहब्बत में डूबी हुई हैं। यह सिर्फ़ एक यूनिवर्सिटी नहीं बल्कि राष्ट्रवाद की मज़बूत ईमारत है। जामिया राष्ट्रवादियों की यूनिवर्सिटी है। जामिया की बुनियाद ही अंग्रेज़ी हुक़ूमत के ख़िलाफ़ बग़ावत के तौर पर पड़ी थी। महात्मा गांधी के राष्ट्रवाद के आह्वान पर 19 अक्टूबर 1920 में मौलाना हसन अली, मौलाना मोहम्मद अली जौहर, हकिम अजमल ख़ान, डॉ मुख़्तार अहमद अंसारी अब्दुल माजिद ख़्वाजा ने जामिया की बुनियाद रखी। पूरा नाम रखा “जामिया मिल्लिया इस्लामिया” तीन भाषाओं के इस नाम का अर्थ आप समझिए। जामिया के माने विश्वविद्यालय, मिल्लिया के माने राष्ट्रीय और इस्लामिया के माने इस्लाम। पूरा मतलब आप हिन्दी में समझें तो “राष्ट्रीय मुस्लिम यूनिवर्सिटी”। 1920 में जब देश 550 रियासतों में बंटा था। जब यही तय नहीं था कि राष्ट्र का स्वरूप कैसा होगा। तब राष्ट्र सिर्फ़ एक सपना और उम्मीद के सिवा भारतीयों के लिए कुछ नहीं था। ऐसे वक़्त में “राष्ट्रीय मुस्लिम विश्वविद्यालय” की स्थापना की गई।
अंग्रेज़ों से बग़ावत करके बनी जामिया तमाम तरह की दिक्कतों से गुजरती रही। पैसों की किल्लत हमेशा रही। कोई सरकारी मदद नहीं मिलती थी। जामिया के संस्थापक तिरपाल के टेंट में यूनिवर्सिटी चला रहे थे। दिक्कतों की वजह से 1925 में जामिया को अलीगढ़ से दिल्ली के करोल बाग़ शिफ्ट किया गया। एक वक़्त ऐसा आया जब जामिया को बंद करने की नौबत आ गई। तब महात्मा गांधी ने कहा था “जामिया किसी भी हालत में बंद नहीं होनी चाहिए। अगर पैसों की दिक्कत होगी तो मैं कटोरा लेकर भीख मांगूंगा लेकिन जामिया को बंद नहीं होने दूंगा। पैसों सहित की तमाम तरह की परेशानियों के बावजूद भी जामिया चलती रही। राष्ट्रवाद की भावनाओं से ओत-प्रोत जामिया के छात्र जंग ए आज़ादी में कूदते रहे। आज़ादी के दीवानों की इस यूनिवर्सिटी का एक-एक छात्र हर उस सत्याग्रह में शामिल हुआ, जो अंग्रेजी हुक़ूमत के ख़िलाफ़ था। 1928 में सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में गुजरात में बारदोली सत्याग्रह की शुरूआत हुई। इस आंदोलन में जामिया का एक-एक छात्र शामिल रहा। यहां के छात्र पूरे देश में घूम घूमकर लोगों को आज़ादी के लिए जागरूक कर रहे थे।
जामिया परिसर से हिन्दी के प्रसिद्ध उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद की यादें भी जुड़ी हैं। जामिया परिसर में ही बैठकर प्रेमचंद ने अपनी आख़िरी कहानी “कफ़न” लिखी थी। जामिया स्थित मुंशी प्रेमचंद अभिलेखागार में प्रेमचंद के वो वाक्य भी शिलापट्ट पर लिखे गए हैं, जो उन्होंने जामिया के लिए कहे थे। प्रेमचंद ने कहा था “जामिया राष्ट्र के प्रति सच्ची सेवा का आदर्श रखता है।” भारत की कोकिला सरोजिनी नायडू‘ के अनुसार उन्होंने ”तिनका-तिनका जोड़कर और तमाम कुर्बानियाँ देकर जामिया का निर्माण किया था।” जामिया का इतिहास पढ़िए और सोचिए। साथ ही मीडिया के फैलाए ग़लत न्यूज़ से प्रभावित मत होइए। यह आंदोलनों से उपजी यूनिवर्सिटी है। यहां की मिट्टी में आंदोलन है, इमारतों में हक़परस्ती है, दर-ओ-दीवार में इंसाफ़ है और यहां पढ़नेवालों के दिल में राष्ट्र है।
(निसार सिद्दीक़ी: लेखक जामिया मिलिया इस्लामिया के रिसर्च स्कॉलर हैं)

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