क्वरांटाइन...! हमारी देसी डिक्शनरी में अब यह शब्द नया नहीं रह गया है. क्वरांटाइन का मतलब बच्चा-बच्चा जानता है. खुद को घर में कैद कर लेना, समाज से दूरी बना लेना, खुद में खुद को समेंट लेना..बस यही तो क्वरांटाइन है. कोरोना संक्रमण के दौरान यह खुद को बचाए रखने का एकमात्र विकल्प है. पर दिक्कत ये है कि कुछ लोग इस क्वरांटाइन से भी तंग आ रहे हैं. इंसान मिलनसार प्राणी है. समाज के बिना उसका गुजारा संभव नहीं है. पर फिर भी खुद को जिंदा रखने की जद्दोजहद में हम सब एक-दूसरे से दूर हैं. फिर भले ही कितना ही अकेलापन महसूस हो रहा हो, पर ये जरूरी है. अब आज की ये जरूरत बहुत ज्यादा परेशान कर रही है तो आपको 350 साल पहले की एक घटना के बारे में जरूर जानना चाहिए. यह घटना "ग्रेट प्लेग ऑफ लंदन" के दौरान की है. जब एक गांव के लोगों ने महामारी को रोकने के लिए खुद को अपने आप ही क्वरांटाइन कर लिया था. यानि उस गांव ने मौत को अपने दरवाजे से बाहर नहीं जाने दिया. तो चलिए जानते हैं लंदन के पास बसे एक वीरान गांव एयम का किस्सा...
1665-66 की बीच इंग्लैंड ने भयानक प्लेग के कहर को झेला था. जब से दुनिया में कोरोना ने तबाही मचाना शुरू किया है, तब से प्लेग के उस दौर को कई बार याद किया जा चुका है. "ग्रेट प्लेग ऑफ लंदन" जिसके बारे में तमाम तरह की कहानियां कही गईं हैं, पर सबसे दर्दनाक और सीख देने वाली कहानी है एयम गांव की. एयम आज एक पर्यटक स्थल बन चुका है. ठीक वैसे ही जैसे हमारे राजस्थान का कुलधरा गांव. जहां एक वक्त में इंसानी बसाहट थी, खुशियां थीं, त्यौहार थे, मेले थे और फिर अचानक गांव ऐसे वीरान हुआ कि दोबारा बस नहीं पाया. एयम के वीरान होने की कहानी 350 साल पहले की है. यह गांव लंदन से तक़रीबन 3 घंटे की दूरी पर डर्बीशायर डेल्स जिला में है. इस गांव के बाहरी हिस्सों में अब भी 1 हजार से कम लोग रह रहे हैं पर जो मुख्य हिस्सा है वो प्लेग महामारी के बाद से पूरी तरह वीरान है. प्लेग ने 1665-66 में तकरीबन 14 महीनों तक इंग्लैंड के विभिन्न इलाकों, खासतौर पर लंदन और उसके इर्दगिर्द के क्षेत्रों में ख़ूब तबाही मचाई थी. सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, इस महामारी के वजह से 75,000 लोगों को जानें गंवानी पड़ी थी. हालांकि, कई इतिहासकार दावा करते हैं कि : 1 लाख से ज्यादा लोग मौत में मुंह में चले गए थे. खैर, किस्सा प्लेग के आंकड़ों का नहीं, बल्कि साहस का है. क्योंकि इस गांव ने अपनी जान पर खेल कर इस संक्रमण को फ़ैलने से रोका. अगर उस दौर में एयम गांव के लोगों ने पूरे गांव को क्वरांटाइन नहीं किया होता, तो शायद देश में इतनी मौतें होती कि उनकी गिनती नहीं की जा सकती थी.
सीखा खुद को क्वरांटाइन करना: जब पूरे लंदन में प्लेग फैल रहा था, तब कुछ समय तक एयम गांव सुरक्षित था. वजह ये थी कि लोग अपने गांव से कम ही बाहर जाया करते थे. लेकिन खतरे से बेखबर गांव का दर्जी अलेक्जेंडर हैडफील्ड लंदन पहुंचा, जहां से उसने कपड़े का थान खरीदा. वह नहीं जानता था कि जो थान खरीदा है वह प्लेग फैलाने वाले पिस्सू से संक्रमित है. थान गांव पहुंचा और उसकी दुकान में काम चलता रहा. पर हफ्ते के भीतर उस सहायक जॉर्ज विकर्स की मौत हो गई, जिसने बंडल को खोला था. हफ्तेभर के भीरत वह जिन-जिन लोगों से मिला थे, वे सभी संक्रमित हो चुके थे और धीरे-धीरे एक चेन तैयार हो गई. संक्रमण पूरे गांव में फैल गया. सितंबर से दिसंबर 1665 तक करीब 42 ग्रामीणों की मौत हो गई. 1666 की शुरूआत में लोगों ने गांव से बाहर निकलने की योजना बनाई. ताकि, बचे हुए लोग सुरक्षित रहें. हालांकि गांव के रेक्टर विलियम मोम्पेसन और निष्कासित पूर्व रेक्टर थॉमस स्टेनली ने ग्रामीणों को समझाया, कि ऐसा करना ज्यादा खतरनाक है. क्योंकि गांव के बाहर भी महामारी का प्रकोप है. अब उनके सामने बस एक ही रास्ता है कि वे खुद को कैद कर लें. वो भी कुछ इस तरह कि यह बीमारी आसपास के उन गांवों में ना फैले जहां तक अभी संक्रमण नहीं पहुंचा है. हालांकि, इस बलिदान के लिए गांव वालों को राजी करना इतना आसान नहीं था. बहुत समझाने के बाद अधिकांश ग्रामीण इस फैसले के लिए तैयार हो गए और जो तैयार नहीं थे वे गांव से बाहर निकल गए.
हालांकि, उनमें से कभी कोई लौटकर बाहर नहीं आया. खैर 24 जून 1666 को गांव के सारे रास्ते बाहरी लोगों के लिए बंद कर दिए गए. विलियम मोम्पेसन के कहने पर गांव के चारों ओर एक पत्थर की दीवार बना दी गई. जिसे आज भी "मोम्पेस्सन वेल" के नाम से जाना जाता है. इस दीवार में एक छोटा सा छेद रखा गया. जहां से गांव वाले चंद सिक्के बाहर फेंक देते थे और दूसरे लोग जो मदद करना चाहते थे वे इस छेद से खाने और दूसरी जरूरत की चीजें पहुंचा दिया करते थे. इससे महामारी गांव से बाहर तो नहीं गई पर गांव से भी नहीं गई. लोगों ने अपने घरों के भीतर ही जमीन खोदकर सुरंगें तैयार कीं. घर की महिलाएं और बच्चे इसी सुरंग में रहते, ताकि उन्हें जिंदा रखा जा सके. प्लेग से मरने वालों की लाशें गांव से काफी दूर जंगलों में दफनाई जानें लगी. अंतिम संस्कार की प्रक्रिया में भी गांव वालों के जुटने पर रोक लगा दी गई. कोई अपने घर से बाहर नहीं निकलता था. चर्च बंद कर दिए गए, सभाएं खुले मैदान में होती थीं, जिसमें केवल जरूरी लोग ही शामिल होते थे. लोग मरते रहे, ताकि दूसरे जिंदा रहें : इतने कठिन नियमों के बाद भी गांव में मौत का सिलसिला जारी रहा. क्योंकि संक्रमण गांव के भीतर ही था. संक्रमण का सबसे विकराल रूप अगस्त 1666 में दिखाई दिया. जब गांव में एक दिन के भीतर 5 से 6 मौते होने लगी. ऐसा कोई घर नहीं था, जहां किसी का शव ना हो. इतिहास में एक औरत का जिक्र है. जिसका नाम था एलिजाबेथ हैनकॉक.
इस महिला ने केवल 8 दिन के भीतर अपने पति और 6 छोटे मासूस बच्चों को दम तोड़ते देखा. उस औरत के दुख की कल्पना भी नहीं की जा सकती. कहा जाता है कि लोग इतना डरे हुए थे कि कोई उसकी मदद के लिए आगे नहीं आया. तब भी नहीं, जब वह अकेले कब्र खोदती थी. लोग गांव की पहाड़ी स्टोनी मिडल्टन पर खड़े होकर बस देखते रहते थे. एलिजाबेथ रोज अपने घर से एक लाश घसीट कर लेकर आती, रोज कब्र खोदती और उन्हें दफनाती. धीरे-धीरे संक्रमितों की संख्या इतनी ज्यादा हो गई कि गांव के अधिकांश परिवार ही खत्म हो गए. पर इन सबने धैर्य का साहस दिया और बीमारी को दूसरे गांव तक फैलने नहीं दिया. मोम्पेसन ने अपनी डायरी में लिखा है कि, वह दौर बहुत भयानक था पर ग्रामीणों का अपने ईश्वर में इतना ज्यादा विश्वास था कि वे मौत से घबराए नहीं. वे भागे नहीं, डटे रहे, ताकि बाकी दुनिया सुरक्षित रहे. हजारों मौत के बाद सितंबर-अक्टूबर में संक्रमण के मामले कम होने लगे और फिर 1 नवम्बर को यह बीमारी अचानक गायब हो गई. पर इस दौरान एयम ने अपने आधे से ज्यादा परिवार खो दिए. सरकारी दस्तावेजों की मानें तो एक साल के भीतर गांव के 76 परिवारों के 260 लोगों की मौत हुई थी. जबकि उस वक्त गांव की कुछ आबादी 800 से भी कम थी. महामारी का प्रकोप खत्म हो जाने के बाद भी एयम गांव के लोग खुद को क्वरांटाइन रखने के आदि हो चुके थे, या यूं कहें कि वे डरे हुए थे. कई सालों बाद लोगों ने खुद को बाहर निकालना शुरू किया और फिर धीरे-धीरे करके मुख्य गांव खाली हो गया. आज एयम एक पर्यटक स्थल बन चुका है. जहां लोग प्लेग के भयानक प्रकोप और दर्दनाक कहानियों को महसूस करते हैं. हम आज जिस क्वरांटाइन को जी रहे हैं यह उस क्वरांटाइन से लाख दर्ज बेहतर है जो 350 साल पहले एयम गांव के लोगों ने भोगा था. इसलिए खुद को कैदी ना समझें, बल्कि ये मानें कि आपका घर पर रहना दुनिया को सुरक्षित रखेगा.
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