एक जवान इस वतन के लिए अपनी जान कुर्बान कर शहीद हो जाता है उसका जिस्म या तो अग्नि में विलीन हो जाता है या वतन की मिट्टी को चादर की तरह ओढ़ कर सो जाता है मगर उसकी आत्मा से उसकी रूह से फिर भी यही लफ्ज़ निकलते है की...
काश मुझे एक जन्म और मिल जाता ।
जो बाकी था वो फर्ज भी पूरा कर जाता ।
इस बार तो में लड़ते लड़ते शहीद हो गया ।
अगले जन्म दुश्मन की छाती पर चढ़ जाता ।
काश मुझे एक जन्म और मिल जाता ।
वो जन्म भी इस वतन के नाम लिख जाता ।
जिस तिरंगे में लिपटा हुआ है आज जिस्म ।
वही तिरंगा दुश्मन के सरहद पर फहरा जाता ।
काश मुझे एक जन्म और मिल जाता ।
उस में भी भारत मां का बेटा बन रह जाता ।
तेरे दामन पर जिस ने खून के छींटे डाले है ।
कसम उस दमन की खून से उस को नहला जाता ।
काश मुझे एक जन्म और मिल जाता ।
तो तेरे हर आंख के आंसू का बदला ले जाता ।
जिस जमीं में पांव रख नापाक किया जालिम ने ।
उसी जमी की मिट्टी में दुश्मन को दफन कर जाता ।
काश मुझे एक जन्म और मिल जाता ।
जो कर्ज था सर पर वो कर्ज चुका जाता ।
बारूद से जिस ने वार किया है तेरे सीने पर ।
उसकी हर नस्ल के जिस्म में बारूद मैं भर जाता ।
काश मुझे एक जन्म और मिल जाता ।
फिर तेरी रक्षा को तेरी सरहद पर मैं जाता ।
दुश्मन के घर में घुस कर उसको सबक सिखाता ।
बन कर शहीद फिर मैं तेरी गोद में हमेशा के लिए सो जाता ।
अब्बास खान
चूरू राजस्थान
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