Wednesday, October 30, 2019

स्तन कैंसर, जो 40 से कम उम्र की महिलाओं को बनाता है निशाना

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक प्रतिवर्ष लगभग 21 लाख महिलाएं स्तन (ब्रेस्ट) कैंसर की चपेट में आ जाती हैं। भारत में हर 28वीं महिला को किसी ने किसी रूप में ब्रेस्ट कैंसर होता है। इस तरह ब्रेस्ट कैंसर महिलाओं को सबसे ज्यादा होने वाली कैंसर की बीमारी है। दुर्भाग्य से इसे लेकर जागरुकता का बहुत अभाव है। कितने लोग जानते हैं कि अकेला ब्रेस्ट कैंसर 12 प्रकार का होता है। कैंसर के प्रकार इस बात पर निर्भर होते हैं कि वह आक्रामक (दूसरे अंगों में फैलने वाला है), गैर-आक्रामक (केवल एक ही अंग तक सीमित रहने वाला) या फिर यूनिफोकल (केवल एक ट्यूमर) या मल्टीफोकल (कई ट्यूमर्स) है।

myupchar.com से जुड़े एम्स के डॉ. उमर अफरोज के अनुसार, ब्रेस्ट कैंसर का इलाज शुरू करने से पहले यह जानना जरूरी होता है कि कैंसर किस प्रकार का है। जो महिलाएं स्तनपान करवाती हैं, उनमें ब्रेस्ट कैंसर का खतरा कम होता है। बहरहाल, दुनियाभर में अक्टूबर को ब्रेस्ट कैंसर जागरुकता माह के तौर पर मनाया जाता है। जानिए उन ब्रेस्ट कैंसर के बारे में जो आमतौर पर 40 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं को प्रभावित करते हैं। 

मेडुलरी ब्रेस्ट कैंसर - यह एक दुर्लभ, लेकिन आक्रामक किस्म का ब्रेस्ट कैंसर है। इसकी शुरुआत दुग्ध नलिकाओं (डक्टल कार्सिनोमा) से होती है। इन्हें यह नाम दिया गया है क्योंकि प्रभावित टिश्यूज दिमाग में मौजूद मेडुला की ही तरह मुलायम और मांसल होते हैं। मेडुलरी ब्रेस्ट कैंसर कुल ब्रेस्ट कैंसर के मामलों में केवल 3-5 प्रतिशत ही होते हैं। यह अधिकतर 40 से 50 वर्ष की महिलाओं को प्रभावित करता है। डॉ. उमर अफरोज के अनुसार, यह धीरे-धीरे फैलता है लेकिन स्तन के बाहर के किसी भी टिश्यू को प्रभावित नहीं करता। इसके लक्षण काफी स्पष्ट होने के कारण इसे पहचान कर इसके इलाज के ज्यादा आसार होते हैं।

पेजेट्स डिसीज ऑफ द ब्रेस्ट - यह बीमारी अधिकतर निप्पल के इर्द-गिर्द मौजूद काले हिस्से (एरोला) की त्वचा को प्रभावित करती है। इसकी पहचान के लिए डॉक्टर्स बड़े सेल्स (पेजेट्स सेल) को खोजते हैं। हालांकि अधिकांश मरीजों को ब्रेस्ट के भीतर भी एक-दो ट्यूमर होते हैं। इस तरह के कैंसर के मरीज 1-4 प्रतिशत होते हैं। पेजेट कैंसर हर उम्र की महिला को अपनी चपेट में ले सकता है। किशोरियों से लेकर 80 वर्ष तक की उम्र की महिलाओं को। 

ट्रिपल निगेटिव ब्रेस्ट कैंसर -  डॉ. उमर अफरोज के अनुसार, इस प्रकार के कैंसर के इलाज के लिए जरूरी है कि ट्यूमर में निम्नलिखित तीन लक्षण हो- एस्ट्रोजेन रिसेप्टर्स न हो, प्रोजेस्टेरोन रिसेप्ट्स न हो और एचईआर रिसेप्टर्स न हो।  इनमें से कोई-सा भी रिसेप्टर ट्रिपल निगेटिव ब्रेस्ट कैंसर के लिए जिम्मेदार नहीं होता। यह एक किस्म की समस्या है क्योंकि यह कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर के सामान्य इलाज को प्रभावी नहीं होने देता है। यह इलाज है हार्मोन थैरेपी जो एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरॉन रिसेप्टर्स के कामकाज को रोकती है और दूसरी दवा जो एचईआर-2 द्वारा उत्पन्न प्रोटीन को अपना निशाना बनाती है। ट्रिपल निगेटिव ब्रेस्ट कैंसर में इनमें से कोई भी रिसेप्टर्स नहीं होते और इस वजह से उसका इलाज बहुत मुश्किल हो जाता है। युवतियों में ज्यादा होने वाला यह ब्रेस्ट कैंसर तकरीबन 10-20 प्रतिशत में पाया जाता है। इस किस्म का कैंसर आक्रामक (नजदीकी टिश्यूज और लिम्फ नोड्स में फैलने वाला) हो सकता है और इसके दोबारा होने की आशंका बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। इलाज में कीमोथैरेपी भी शामिल है। हालांकि गांठ को हटाना या समूचे ब्रेस्ट को ही हटा देना सर्वश्रेष्ठ विकल्प होता है। 

बेसल-लाइक ब्रेस्ट कैंसर - इस कैंसर को यह नाम दिया गया है क्योंकि यह दुग्ध वाहिनियों की अंदरुनी परत (बेसल लेयर) में पाया जाता है। ज्यादातर मामले में यह 40 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं को प्रभावित करता है और इसकी पहचान मुश्किल होती है। इस किस्म के कैंसर को अधिकांश मामलों में ट्रिपल निगेटिव ब्रेस्ट कैंसर समझ लिया जाता है,क्योंकि इसमें भी ब्रेस्ट कैंसर के तीनों रिसेप्टर्स में से कोई नहीं होता। कनाडा कैंसर सोसायटी के मुताबिक, सभी बेसल-लाइक ब्रेस्ट कैंसर, ट्रिपल निगेटिव नहीं होते। साथ ही बेसल सेल टाइप कैंसर द्वारा प्रोटीन में कुछ ऐसे परिवर्तन किए जाते हैं जो ट्रिपल निगेटिव टाइप ब्रेस्ट कैंसर में नहीं होते। 
रिसर्च के मुताबिक युवतियों को प्रभावित करने वाले ब्रेस्ट कैंसर ऊंचे ग्रेड के होते हैं, हार्मोन रिसेप्टर निगेटिव और आमतौर पर ज्यादा आक्रामक होते हैं। जिन परिवारों में ब्रेस्ट कैंसर का इतिहास है, वहां कि लड़कियों को समय-समय पर डॉक्टर से संपर्क साधकर अल्ट्रासाउंड या एमआरआई करा लेना चाहिए।

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