Thursday, December 31, 2020

साल 2020 में बिछुड़ी हस्तियां : पूर्व राष्ट्रपति से लेकर मोदी सरकार के मंत्री तक, कई सितारों का भी अस्त

 

साल 2020 में राजनीतिक जगत से लेकर सिनेमा और अन्य क्षेत्र की कई नामचीन हस्तियों का निधन हो गया. कुछ का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया तो कुछ को कोरोना वायरस ने हमसे छीन लिया. एक उभरते सितारे ने खुदकुशी भी कर ली.



प्रणब मुखर्जी:
देश के 13वें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का निधन 84 साल की उम्र में 31 अगस्त, 2020 को हो गया. बाथरूम में गिरने से उन्हें ब्रेन इन्ज्यूरी हो गई थी. इसके बाद उन्हें दिल्ली के आरआर अस्पताल में भर्ती कराया गया था. 21 दिनों तक जिंदगी और मौत के बीच झूलने के बाद उन्होंने 31 अगस्त 2020 को दम तोड़ दिया. उन्होंने राजनीति में काफी ऊंचा मुकाम बनाया लेकिन देश का प्रधानमंत्री न बन पाने की कसक उन्हें ताउम्र सालती रही. उनका जीवन विवादों से परे रहकर राजनीति में काम करने का एक अनुपम उदाहरण रहा है.

रामविलास पासवान:
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार में खाद्य, उपभोक्ता एवं संरक्षण मामलों के मंत्री और लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक नेता रामविलास पासवान का निधन 8 अक्टूबर, 2020 को हो गया. देश के बड़े दलित नेताओं में शुमार पासवान 74 साल के थे. 5 जुलाई 1946 को बिहार के खगड़िया जिले के शाहरबन्‍नी गांव के एक दलित परिवार में जन्‍मे रामविलास पासवान की गिनती बिहार ही नहीं, देश के कद्दावर नेताओं में की जाती थी. जेपी के दौर में वे भारतीय राजनीति में उभरे. उन्होंने 1977 के आम चुनावों में सर्वाधिक मतों (4.25 लाख वोट) से जीतने का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया था. उन्होंने 1989 में अपने ही पुराने रिकॉर्ड को तोड़कर 5.05 लाख वोट से जीतने का नया गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया था.

अहमद पटेल:
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और कोषाध्यक्ष अहमद पटेल का 25 नवंबर, 2020 को निधन हो गया.  करीब चार दशक का राजनीतिक जीवन जीने वाले अहमद पटेल कांग्रेस के शर्मीले नेता के तौर पर जाने जाते थे. साल 2017 में जब गुजरात में राज्य सभा का चुनाव हो रहा था, तब उन्हें हराने के लिए अमित शाह और पीएम नरेंद्र मोदी की जोड़ी ने उनके खिलाफ जबर्दस्त किलेबंदी की थी, बावजूद इसके उन्होंने जीत दर्ज की थी. इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और सोनिया गांधी के वे काफी करीब रहे. सोनिया गांधी के तो वो राजनीतिक सलाहकार थे. मधुर वाणी, मिलनसार और आतिथ्य सत्कार के उस्ताद अहमद पटेल को न चाहते हुए भी राहुल गांधी ने पार्टी का कोषाध्यक्ष बनाया था.अहमद पटेल कांग्रेस के संकटमोचकों में सबसे प्रमुख थे. वह 1993 से लगातार राज्यसभा के सदस्य थे.

जसवंत सिंह:
भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक नेताओं में शामिल रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह का 27 सितंबर, 2020 को निधन हो गया. सिंह 82 साल के थे. उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का हनुमान कहा जाता था. वाजपेयी सरकार में वो वित्त, विदेश और रक्षा मंत्री रहे थे. भारत-पाकिस्तान के बीच रिश्ते सुधारने से लेकर 1998 में परमाणु परीक्षण के बाद पूरी दुनिया से भारत के रिश्तों को मजबूत करने तक के अपने सियासी सफर में जसवंत सिंह ने कई मील के पत्थर साबित किए. हालांकि, भारत-पाकिस्तान-बांग्लादेश के बीच शांति स्थापना का उनका सपना अधूरा रह गया. उनका मानना था कि ये तीनों देश एक ही मां की सिजेरियन प्रसव से पैदा हुई संतानें हैं, जिनके बीच आपसी रिश्ते बेहतर होने चाहिए. 2001 में जब संसद पर हमले हुए थे, तब सभी राजनीतिक पार्टियां पाकिस्तान को जवाबी कार्रवाई देने का दबाव बना रही थी, सेना पर सैनिकों की तैनाती भी हो चुकी थी लेकिन जसवंत सिंह ने एड़ी चोटी का जोर लगाकर ऐसा होने से रुकवा दिया था.

अमर सिंह:
बीजेपी के राज्यसभा सदस्य और समाजवादी पार्टी के पूर्व नेता अमर सिंह का निधन 1 अगस्त, 2020 को  सिंगापुर के एक अस्पताल में हो गया था. उन्हें भारतीय राजनीति का मिडिल मैन से लेकर मिडिएटर तक कहा जाता था. इसी साल मार्च में भी उनके निधन की खबर उड़ी थी जिसका उन्होंने खुद खंडन किया था. मुलायम सिंह यादव और अमिताभ बच्चन के परिवार के काफी करीब रहे अमर सिंह का जीवन काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है. वो एक ऐसे नेता थे जिनके विपक्षी दलों के बड़े नेताओं से भी मधुर रिश्ते होते थे. वो दोस्त बनाने और उसे निभाने के उस्ताद थे. उनके दोस्त सियासत की दुनिया से लेकर मनोरंजन, खेल, बिजनेस जगत तक सभी जगह थे. यहां तक की उनकी दोस्ती का असर वॉशिंगटन में व्हाइट हाउस तक था. तभी तो उन्होंने बिल क्लिंटन को मुलायम सिंह यादव से मिलवाने लखनऊ बुलवा लिया था. उन्होंने एक प्रेस कॉन्प्रेन्स में खुले आम कहा था कि "हां, वो मुलायम सिंह के दलाल हैं."

तरुण गोगोई:
साल 2001 से लेकर 2016 तक तीन बार असम के मुख्यमंत्री रहे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता तरुण गोगोई का 23 नवंबर 2020 को निधन हो गया. वह 86 साल के थे. कोरोना वायरस संक्रमण से ठीक होने के बाद उन्हें दोबारा कई बीमारियों और जटिलताओं ने घेर लिया था. उन्हें असम का शालीन और कद्दावर नेता माना जाता था. वो बहुत कम बोलते थे. छह बार लोकसभा सांसद चुने जाने वाले तरुण गोगोई राजीव गांधी और इंदिरा गांधी के करीबी रहे. इंदिरा गांधी के वक्त उन्हें कांग्रेस का संयुक्त सचिव बनाया गया था. बाद में राजीव गांधी ने उन्हें महासचिव नियुक्त किया था. नरसिम्हा राव सरकार में वो खाद्य प्रसंस्करण मंत्री बनाए गए थे. बाद में 2001 में हितेश्वर सैकिया की जगह उन्हें असम का सीएम बनाया गया था.

सुशांत सिंह राजपूत:
बॉलीवुड के युवा और उभरते अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत ने 14 जून, 2020 को आत्महत्या कर ली थी. बांद्रा स्थित एक अपार्टमेंट में उनके घर में उनकी लाश छत से लटकती हुई मिली थी. बिहार के रहने वाले युवा अभिनेता के 34 साल में ही दुनिया को अलविदा कहने से बॉलीवुड के साथ-साथ उनके फैन्स को गहरा सदमा लगा है. उनके परिजनों से लेकर फैन्स ने उनकी आत्महत्या पर संदेह जताया और उसकी सीबीआई जांच की मांग की. बिहार में इस पर काफी हंगामा हुआ. बिहार पुलिस इसकी जांच के लिए मुंबई तक गई. इसके बाद परिजनों की मांग पर नीतीश सरकार ने सीबीआई जांच की इजाजत दे दी. बाद में मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और कोर्ट ने भी जांच का जिम्मा मुंबई पुलिस से लेकर सीबीआई को सौंप दिया. सीबीआई ने एम्स में विसरा रिपोर्ट की जांच कराई, जिसमें दम घुटने से मौत की बात कही गई है. एक्टर ने टीवी सीरियल 'किस देश में है मेरा दिल' से एक्टिंग की दुनिया में कदम रखा था. इसके बाद उन्होंने 'काय पो चे' के जरिए बॉलीवुड में कदम रखा था.

ऋषि कपूर:
इस साल बिछुड़ने वाले सितारों में बॉलीवुड अभिनेता ऋषि कपूर भी शामिल हैं. बोन मैरो कैंसरी की असाध्य और लंबी बीमारी के बाद 30 अप्रैल, 2020 को 67 साल की उम्र में उनका निधन हो गया था. वह एक अभिनेता के साथ-साथ फिल्म निर्माता और निर्देशक भी थे. 'मेरा नाम जोकर' फिल्म में वह बाल कलाकार के तौर पर भी काम कर चुके थे. उन्हें 'बॉबी' फिल्म के लिए साल 1974 में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर अवार्ड  दिया गया था. 2008 में इस हरफनमौले सितारे को लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था. उनके करीबी लोग और बॉलीवुड की हस्तियां ऋषि कपूर को प्यार से चिंटू जी कहकर पुकारते थे. वो युवा अवस्था में बॉलीवुड के चॉकलेटी हीरो के रूप में भी मशहूर रहे. वह कपूर खानदान के चिराग थे.

इरफान खान:
साल 2011 में पद्म श्री से सम्मानित और साल 2012 में 60वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित अभिनेता इरफान खान ने भी साल 2020 में दुनिया को अलविदा कह दिया. 54 साल की उम्र में 29 अप्रैल, 2020 को लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया. इरफान खान न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर से पीड़ित थे. इसका इलाज कराने के लिए वो लंदन भी गए थे. साल भर इलाज कराने के बाद वो भारत लौटे थे. 2018 में उन्हें इस बीमारी के बारे में पता चला था. राजस्थान के टोंक जिले में मुस्लिम परिवार में पैदा हुए इरफान खान ने अपनी प्रतिभा के बल पर दुनिया में नाम रोशन किया. करीब 30 साल के करियर में उन्होंने 50 से अधिक फिल्मों में काम किया था.

Report@NDTV

CBSE Board Exam Date 2021: परीक्षाएं चार मई से होंगी शुरू

 कोरोना के कारण बंद चल रहे स्‍कूलों के कारण बोर्ड परीक्षा की तारीख को लेकर चल रही उहापोह की स्‍थिति गुरुवार को खत्‍म हो गई। शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने बताया कि बोर्ड की परीक्षाएं चार मई से शुरू होगी। एक मार्च से प्रैक्‍टिकल एक्‍गजाम होंगे। एक मार्च से प्रैक्‍टिकल एक्‍गजाम होंगे। मंत्री निशंक ने बताया कि 10 वीं और 12वीं की परीक्षा चार मई से शुरू होकर 10 जून तक चलेंगी। 15 जुलाई तक बोर्ड परीक्षा के नतीजे आएंगे। 12वीं के प्रैक्‍टिकल परीक्षा मार्च से शुरू होगी। परीक्षाएं सामान्‍य तरीके से ही होंगी। ऑनलाइन परीक्षा नहीं होगी।

बता दें कि लंबे समय से बोर्ड परीक्षा की तारीख को लेकर चल रही संशय की स्‍थिति आज खत्‍म हो गई है। सीबीएसई बोर्ड की परीक्षा में लाखों बच्‍चे एक्‍जाम देते हैं। इस बार कोरोना के कारण मार्च के बाद से ही केंद्र की पीएम मोदी सरकार ने देश में लॉकडाउन लगा दिया था। इसके बाद से ही स्‍कूल कॉलेजों में पढ़ाई बंद हो गई है। सभी बच्‍चे ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं। इस कारण बच्‍चों के सिलेबस समय पर खत्‍म नहीं हुए हैं। हालांकि यह बता दें कि स्‍कूल की ओर से यह पूरी कोशिश की जा रही है कि सिलेबस को समय पर पूरा किया जाए। वहीं सिलेबस के कुछ पार्ट को कम कर बच्‍चे पर से लोड कम किया गया है। गुरुवार को शिक्षा मंत्री ने लाइव का आकर बोर्ड की परीक्षा की तारीख घोषित कर दी है इससे अब बच्‍चों के मन में चल रहा संशय खत्‍म हो जाएगा। बच्‍चों के साथ उनके माता-पिता भी परीक्षा की तारीख को लेकर काफी तनाव में थे। इस पर आज विराम लगा है। अब बच्‍चे सीमित समय में अपने सिलेबस को खत्‍म कर बोर्ड की परीक्षाएं देने में जुटेंगे।


Tuesday, December 29, 2020

प्रयागराज पुलिस ने रोका तो सड़क पर धरना देकर बैठे दिल्ली के पूर्व कानून मंत्री सोमनाथ भारती

आम आदमी पार्टी के विधायक व दिल्ली के पूर्व कानून मंत्री सोमनाथ भारती मंगलवार को दिन में शहर पश्चिमी विधानसभा क्षेत्र के बक्शी मोढ़ा में सरकारी विद्यालय और अस्पताल देखने निकले। करामत की चौकी के आगे बड़ी संख्या में तैनात पुलिस ने उनके काफिले को रोक लिया। इसे लेकर आप कार्यकर्ताओं और पुलिस के बीच नोकझोंक भी हुई। पुलिस पर अभद्रता का आरोप लगाते हुए पूर्व मंत्री वहीं सड़क पर कार्यकर्ताओं के साथ धरने पर बैठ गए। बाद में अधिकारियों ने उनको समझा-बुझाकर वापस भेजा।

सोमनाथ भारती मंगलवार को दिन में पार्टी जिलाध्यक्ष अल्ताफ अहमद समेत 10 कार्यकर्ताओं के साथ बक्शी मोढ़ा के लिए रवाना हुए। वहां उन्हें सरकारी विद्यालय और अस्पताल में व्यवस्था को देखना था। पूर्व मंत्री का काफिला करामत की चौकी के आगे अंधीपुर गांव की पुलिया के पास पहुंचा था कि पुलिसकर्मियों ने उनका रास्ता रोक लिया। कहा गया कि वहां जाने की अनुमति नहीं है। नोकझोंक के बाद पूर्व मंत्री वहीं सड़क पर कार्यकर्ताओं के साथ धरने पर बैठ गए। उनका कहना था कि सरकार द्वारा बिजली, पानी, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, सुरक्षा को लेकर कोई सार्थक कदम नहीं उठाया गया है। जबकि दिल्ली सरकार ने यह सब काम किए हैं।

दिल्ली के पूर्व कानून मंत्री सोमनाथ भारती द्वारा इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय (इविवि) में छात्रसंघ बहाली का समर्थन करने के बाद छात्र राजनीति फिर गरम हो गई। मंगलवार को अनशन को समर्थन देने पहुंचे सोमनाथ भारती ने कहा कि छात्रसंघ संवैधानिक और जनतांत्रिक अधिकार है। ऐसे में विश्वविद्यालय को इसे तत्काल बहाल कर देना चाहिए। छात्र युवा संघर्ष समिति के प्रदेश सचिव विराट तिवारी ने भी अनशन को समर्थन दिया। पूर्व छात्रसंघ उपाध्यक्ष अदील हमजा के खिलाफ कूटरचित वीडियो जारी करने वाले रणविजय सिंह राजन के खिलाफ पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर लिया। इस दौरान राहुल पटेल, मो. मुबाशिर हारुन, नवनीत यादव, मो. जाबिर रजा इलाहाबादी, शाश्वत श्रीवास्तव, अंकित परिहार, अलताफ अहमद, अॢपत त्रिपाठी, आनंद सांसद, मसूद अंसारी, प्रकाश सिंह, शिव शंकर सरोज, मो. अनस, रितेश गुप्ता, विजय सिंह, मो. सलमान आदि लोग उपस्थित रहे।

Tuesday, November 3, 2020

बाबा ढाबा छोड़ लगाने लगे थाने के चक्कर , फ्रॉड का मामला दर्ज

पिछले कुछ दिनों में अगर आप सोशल मीडिया यूजर हैं या बहुत कम सक्रिय रहते हैं तब भी आपने “बाबा का ढाबा” नाम जरूर देखा सुना या कहीं पढ़ा होगा । जी हाँ , दिल्ली के मालवीय नगर में स्थित बाबा का ये छोटा सा ढाबा है जिसको बाबा (कांता प्रसाद) अपनी धर्मपत्नी के साथ मिलकर चलाते हैं । पिछले महीने यानी कि अक्टूबर 7 को फूड ब्लॉगर एवं इंस्टाग्राम इंफ्लुएंसर गौरव वासन (Gaurav Wasan) ने इस बुजुर्ग दम्पति की एक वीडियो अपने शोशल मीडिया पेज एवं अकॉउंट्स पर साझा की जिसमें बाबा अपनी पत्नी के साथ , महामारी कोरोना के लॉकडौन काल के दौरान अपने ढाबे को सही से ना चला पाने का संघर्ष , अपनी आर्थिक तंगी एवं जीवनयापन के एक मात्र स्त्रोत यानी कि उनका ढाबा ग्राहकों से खाली रहने की व्यथा बताते हुवे नज़र आये थे । ये बताते हुवे वह काफी भावुक भी हुवे थे जिसके बाद सोशल मीडिया पर यह वीडियो जमकर वायरल हुआ था, जिसके बाद बाबा और उनका ढाबा फेमस हो गया था ।
क्योंकि मुद्दा भावनात्मक जुड़ाव का हो गया था तो लोगो ने वीडियो वायरल होने के बाद बहुतायत संख्या में बाबा के ढाबे पर जाना शुरू किया , एवं कई बड़ी बॉलीवुड हस्तियों जैसे – अमिताभ बच्चन, रवीना टण्डन आदि ने बाबा की आर्थिक मदद की और लोगो से भी ऐसा करने या उनके ढाबे पर जाने की अपील की । सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर्स तथा फ़ूड ब्लॉगर्स ने अपने अकॉउंट्स आदि के माध्यम से बाबा के ढाबे की वीडियो को शेयर करते हुवे उनका प्रचार किया जिससे लोग भारी मात्रा में उनके ढाबे पर पहुंचने लगे और उनकी अच्छी खासी आमदनी होने लगी और बुजुर्ग दम्पति के चेहरों पर मुस्कान फिर से वापस लौट आयी । लेकिन सोशल मीडिया के ज़माने में जो चीज़ जितनी जल्दी वायरल होती है उतनी ही जल्दी विलुप्त भी होती है या यूं कह लें कि अगला ट्रेंडिंग टॉपिक आने की देर है लोग दूसरी ओर रुख कर लेते हैं कुछ ऐसा ही बाबा जी के साथ हुआ कुछ दिन बाद एक वीडियो में वह यहां तक बताते हुवे दिखे की लोग अब सिर्फ वहां सेल्फी लेने आते हैं ।

अभी हाल ही में बाबा के ढाबा के मालिक कांता प्रसाद ने गौरव वासन जिन्होंने वीडियो बना के बाबा और उनके ढाबे को फेमस किया था ,के खिलाफ मालवीय नगर में पुलिस शिकायत दर्ज कराई है जिसमे उन्होंने गौरव पर मदद के लिए जुटाए गए पैसों में हेर फेर एवं धोखाधड़ी तथा आपराधिक साज़िश का आरोप लगाया है । पुलिस ने रविवार को यह जानकारी सार्वजनिक की । कांता प्रसाद ने यह भी कहा कि गौरव ने जानबूझकर सोशल मीडिया पर अपने और अपने परिवार या दोस्तों को बैंक डिटेल्स डाली और उन्हें बिना कोई जानकारी दिये मदद की भारी रकम एकत्र की । कुछ youTubers ने यह आरोप लगाया है कि गौरव ने भारी मात्रा में दान की राशि एकत्र की और बाबा को उसका बहुत छोटा हिस्सा ही दिया है ।फिलहाल गौरव वासन ने यू ट्यूब वीडियो और फेसबुक पोस्ट्स के माध्यम से अपना पक्ष रखा है एवं दावा किया है कि उन्होंने किसी प्रकार की कोई बेईमानी नही की तथा अपनी बात को सही साबित करने के लिये वह आगे वीडियो के माध्यम से बैंक का वैरिफाईड स्टेटमेंट लोगो के सामने प्रस्तुत करेंगे ।

Wednesday, October 7, 2020

यूजीसी ने 24 विश्वविद्यालयों को फर्जी घोषित किया, सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश और दिल्ली में

यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) ने बुधवार को देश के 24 स्वयंभू और गैर मान्यता प्राप्त संस्थानों की एक सूची जारी की। यूजीसी ने इन संस्थानों को फर्जी करार दिया है। आयोग की सूची के अनुसार इसमें सबसे ज्यादा संस्थान उत्तर प्रदेश और उसके बाद राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में हैं। यूजीसी के सचिव रजनीश जैन ने कहा, छात्रों और जनता को बताया जाता है कि वर्तमान में 24 स्वयंभू और गैर मान्यता प्राप्त संस्थान यूजीसी कानून का उल्लंघन करते हुए संचालित हो रहे हैं। इन्हें फर्जी यूनिवर्सिटी घोषित किया गया है और इन्हें कोई भी डिग्री प्रदान करने का अधिकार नहीं है। बता दें कि यूजीसी की इस फर्जी विश्वविद्यालयों की सूची में शामिल आठ संस्थान अकेले उत्तर प्रदेश में हैं। वहीं, राजधानी दिल्ली में ऐसे सात और ओडिशा और पश्चिम बंगाल में दो-दो संस्थान हैं। इसके अलावा कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, पुडुचेरी और महाराष्ट्र में एक-एक फर्जी विश्वविद्यालय है। 

उत्तर प्रदेश में चल रहे हैं ये फर्जी विश्वविद्यालय

वारणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी

महिला ग्राम विद्यापीठ/विश्वविद्यालय, प्रयाग

गांधी हिंदी विद्यापीठ, प्रयाग

नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ इलेक्ट्रोकॉमप्लेक्स होम्योपैथी, कानपुर

नेताजी सुभाष चंद्र बोस यूनिवर्सिटी (ओपन यूनिवर्सिटी), अलीगढ़

उत्तर प्रदेश विश्वविद्यालय, कोसी कलां, मथुरा

महाराणा प्रताप शिक्षा निकेतन विश्वविद्यालय, प्रतापगढ़

इंद्रप्रस्थ शिक्षा परिषद, इंस्टीट्यूशनल एरिया, माकनपुर, नोएडा

राजधानी दिल्ली में चल रहे ये फर्जी विश्वविद्यालय

कमर्शियल यूनिवर्सिटी लिमिटेड, दरियागंज

यूनाइटेड नेशन्स यूनिवर्सिटी, दिल्ली

वॉकेशनल यूनिवर्सिटी, दिल्ली

एडीआर-सेंट्रिक जूरीडीकल यूनिवर्सिटी, राजेंद्र प्लेस

विश्वकर्मा ओपन यूनिवर्सिटी फॉर सेल्फ एमप्लॉयमेंट, दिल्ली

आध्यात्मिक विश्वविद्यालय, रोहिणी

इन राज्यों में भी चल रहे हैं ये फर्जी विश्वविद्यालय

पश्चिम बंगाल : इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव मेडिसिन, कोलकाता और इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव मेडिसिन एंड रिसर्च, कोलकाता

ओडिशा : नवभारत शिक्षा परिषद, राउरकेला और नॉर्थ ओडिशा यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी, मयूरभंज

कर्नाटक : बडागानवी सरकार वर्ल्ड ओपन यूनिवर्सिटी एजुकेशन सोसायटी, बेलगाम

केरल : सेंट जॉन यूनिवर्सिटी कृष्णाटम, केरल

महाराष्ट्र : राजा अरेबिक यूनिवर्सिटी, नागपुर

आंध्र प्रदेश : क्राइस्ट न्यू टेस्टामेंट डीम्ड यूनिवर्सिटी, गुंटूर

पुडुचेरी : श्री बोधि एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन 

Monday, August 17, 2020

नए नियमों की अनदेखी करने पर रद्द हो सकता है ड्राइविंग लाइसेंस, पढ़िए कितना लगेगा जुर्माना....पढें पूरी खबर

सोमवार यानि 16 अगस्त से अगर आप नए मोटर व्हीकल एक्ट का पालन नहीं करते हैं तो आपकी जेब से भारी-भरकम चालान कटेगा. जी हां, नए मोटर व्हीकल एक्ट में चालकों की गलतियों पर जुर्मना 5 गुना से लेकर 30 गुना तक बढ़ा दिया गया है. ऐसे में घर से निकलते समय सारी बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी हो गया है। अगर आप अब बिना लाइसेंस के ड्राइविंग करते हुए पकड़े जाते हैं तो आपको अब 500 रुपये नहीं बल्कि पांच हजार का भारी चालान भरना पड़ेगा. इसके अलावा नियमों की अनदेखी करने पर आपका लाइसेंस भी जब्त हो सकता है और जेल भी जाना पड़ सकता है. तो चलिए जानते हैं कि, सोमवार से नियमों में क्या-क्या बदलाव होने वाले हैं।

अगर आप बिना हेलमेट दो पहिया वाहन चलाते हुए पाए जाते हैं तो आपको 500 रुपये नहीं बल्कि 1000 रुपये भरने पड़ेंगे. इसके साथ ही 3 महीने तक के लिए आपका लाइसेंस भी सस्पेंड होने की नौबत आ सकती है।पहले बिना ड्राइविंग लाइसेंस वाहन चलाने पर 500 रुपये का चालान था लेकिन अब 5 हजार रुपये भरने पड़ेंगेदोपहिया वाहनों पर अगर ओवर लोडिंग की जाती है तो अब 100 नहीं बल्कि 2 हजार रुपये भरने पड़ेंगे साथ ही तीन महीने तक लाइसेंस सस्पेंड हो सकता है। बिना सीट बेल्ट गाड़ी चलाने पर पहले 100 रुपये जुर्माना था जो बढ़कर 1 हजार रुपये हो गया है, कोई भी चालक अगर ड्राइव करते हुए फोन पर बात करता है तो अब 1 हजार नहीं बल्कि 5 हजार रुपये देने पड़ेंगे, पहली बार पकड़े जाने पर हल्के वाहनों पर एक से दो हजार जुर्माना लगेगा तो पहले महज 400 रुपये था। कोई भी चालक अगर बहुत तेज स्पीड में खतरनाक ड्राइविंग करता है तो पहली बार 6 महीने से 1 साल तक की जेल हो सकती है या 1 से 5 हजार रुपये तक जुर्माना भरना पड़ सकता है. जबकि दूसरी बार पकड़े जाने पर 10 हजार रुपये का जुर्माना। शराब पीकर ड्राइविंग करना बहुत गलत होता है और अब जो भी चालक शराब के नशे में वाहन चलाएगा उसे उसकी पहली गलती पर 6 महीने तक जेल या 10 हजार रुपये जुर्माना और दूसरी बार पकड़े जाने पर 15 हजार तक जुर्माना भरना पड़ेगा।

कोई भी चालक अगर रेसिंग और स्पीडनिंग करता है तो पहली बार में 1 महीने की जेल या 5000 जुर्माना और दूसरी बार में 10 हजार तक जुर्माना। अगर इंश्योरेंस नहीं है तो पहली गलती पर 2 हजार जुर्माना और/या 3 महीने तक की जेल हो सकती है. जबकि दूसरी बार में 4 हजार रुपये का जुर्माना। इमरजेंसी वाहनों का रास्ता न देने की स्थिति में चालक का 10,000 रुपये जुर्माना या 6 महीने तक जेल की सजा या फिर दोनों हो सकते हैं। अगर गाड़ी नाबालिग चलाते हुए पाया जाता है तो उसके साथ अभिभावक/वाहन मालिक भी दोषी माने जाएंगे. इस स्थिति में 25 हजार रुपये जुर्माना और तीन साल की जेल होगी. इसके साथ ही एक साल के लिए वाहन का रजिस्ट्रेशन रद्द हो सकता है। एसपी ट्रैफिक, जीतेंद्र कुमार श्रीवास्तव का कहना है कि, वैसे तो नई दरों का आदेश 1 अगस्त से ही लागू था लेकिन कंप्यूटर में फीङ्क्षडग नहीं होने की वजह से इस आदेश को लागू करने में देरी हुई. मगर सोमवार से चालान की नई दरें लागू हो जाएंगी. सबको नियमों का पालन करना चाहिए।


Monday, July 20, 2020

2019-20 में 'शानदार' रहा जामिया यूनिवर्सिटी का प्रदर्शन: HRD मंत्रालय का आकलन

जामिया मिल्लिया इस्लामिया (JMI) ने कहा कि अकादमिक वर्ष 2019-20 के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय (HRD Ministry) द्वारा किए गए केंद्रीय विश्वविद्यालयों के आकलन में जामिया के प्रदर्शन को ‘‘शानदार'' पाया गया. मंत्रालय द्वारा विश्वविद्यालय को भेजे गए पत्र में बताया गया है कि जामिया ने समग्र आकलन में 95.23 प्रतिशत अंक हासिल किए हैं.
विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर नजमा अख्तर ने इस शानदार प्रदर्शन का श्रेय अच्छी गुणवत्ता के अध्यापन एवं प्रासंगिक अनुसंधान को दिया. उन्होंने उम्मीद जताई कि विश्वविद्यालय आगामी वर्षों में अपने प्रदर्शन में और सुधार करेगा. अख्तर ने कहा कि हालिया अतीत में विश्वविद्यालय ने जो चुनौतीपूर्ण समय देखा है, उसके मद्देनजर यह उपलब्धि और महत्वपूर्ण है. जामिया उस समय संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शनों का केंद्र बन गया था, जब दिल्ली के पुलिसकर्मियों ने पिछले साल 15 दिसंबर को परिसर में घुसकर पुस्तकालय में पढ़ रहे छात्रों पर कथित रूप से लाठीचार्ज किया था. पुलिस का कहना है कि वह संशोधित नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा में शामिल बाहरी लोगों की तलाश में परिसर में घुसी थी. 
चुनिंदा अहम मानदंडों पर केंद्रीय विश्वविद्यालयों के प्रदर्शन के आकलन के उद्देश्य से विश्वविद्यालयों को मानव संसाधन विकास मंत्रालय एवं विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के साथ एक त्रिपक्षीय सहमति पत्र पर हस्ताक्षर करना होते हैं. जामिया मिल्लिया इस्लामिया सहमति पत्र पर सबसे पहले हस्ताक्षर करने वाला विश्वविद्यालय है.

विश्वविद्यालय ने 2017 में सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किए थे. विश्वविद्यालयों के प्रदर्शन का आकलन छात्रों की विविधता एवं समता, संकाय गुणवत्ता एवं संख्या, अकादमिक परिणामों, अनुसंधान प्रदर्शन, पहुंच, संचालन, वित्त, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग एवं मान्यता और पाठ्येतर गतिविधियों के पैमानों पर किया जाता है. मंत्रालय के ‘नेशनल इंस्टिट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क' (एनआईआरएफ) की पिछले महीने घोषित रैंकिंग में जामिया विश्वविद्यालय 10वें स्थान पर रहा था. ‘समग्र' श्रेणी में विश्वविद्यालय को 16वां स्थान मिला था. 


Thursday, July 16, 2020

दिल्ली दंगे सुनियोजित और संगठित थे: दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग

दिल्ली के उत्तर-पूर्वी ज़िले में फ़रवरी में हुए दंगे सुनियोजित, संगठित थे और निशाना बनाकर किए गए थे. ये कहना है दंगों की जाँच के लिए दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग की गठित कमेटी का. दिल्ली में 23 से 27 फ़रवरी के बीच दंगे हुए थे जिसमें आधिकारिक तौर पर 53 लोग मारे गए थे. इसकी जाँच के लिए दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग ने नौ मार्च को नौ सदस्यीय कमेटी का गठन किया था. सुप्रीम कोर्ट के वकील एमआर शमशाद कमेटी के चेयरमैन थे जबकि गुरमिंदर सिंह मथारू, तहमीना अरोड़ा, तनवीर क़ाज़ी, प्रोफ़ेसर हसीना हाशिया, अबु बकर सब्बाक़, सलीम बेग, देविका प्रसाद और अदिति दत्ता कमेटी के सदस्य थे.

कमेटी ने 134 पन्नों की अपनी रिपोर्ट 27 जून को दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग को सौंप दी थी लेकिन आयोग ने गुरुवार का ये रिपोर्ट सार्वजनिक की है. कमेटी का कहना है कि उसने दंगों की जगह पर जाकर पीड़ितों के परिवारों से बात की, उन धार्मिक स्थलों का भी दौरा किया जिनकों दंगों में नुक़सान पहुँचाया गया था. कमेटी ने दिल्ली पुलिस से भी इस मामले में संपर्क किया और उनका पक्ष जानना चाहा, लेकिन कमेटी के अनुसार दिल्ली पुलिस ने उनके किसी भी सवाल या संवाद को कोई जवाब नहीं दिया.

दिल्ली पुलिस पहले भी अपने ऊपर लगाए गए आरोपों से इनकार कर चुकी है और गृह मंत्री अमित शाह संसद में कह चुके हैं कि दिल्ली दंगों के दौरान दिल्ली पुलिस ने अच्छा काम किया, दिसंबर, 2019 में नागरिकता संशोधन क़ानून (सीएए) बनने के बाद देशभर में इसके ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन होने लगे. दिल्ली में भी कई जगहों पर सीएए के विरोध में प्रदर्शन होने लगे. दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी के कई नेताओं ने सीएए विरोधियों के ख़िलाफ़ हिंसा भड़काने के लिए भाषण दिए. ऐसे कई भाषणों को इस रिपोर्ट का हिस्सा बनाया गया है.


हिंदू दक्षिणपंथी गुटों के ज़रिए सीएए के विरोध में प्रदर्शन कर रहे लोगों को डराने धमकाने के लिए उनपर हमले किए गए. 30 जनवरी को जामिया मिल्लिया इस्लामिया में प्रदर्शनकारियों पर रामभक्त गोपाल ने गोली चलाई और एक फ़रवरी को कपिल गुर्जर ने शाहीन बाग़ में प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाई. 23 फ़रवरी को बीजेपी नेता कपिल मिश्रा के मौजपुर में दिए गए भाषण के फ़ौरन बाद दंगे भड़क गए. इस भाषण में कपिल मिश्रा ने जाफ़राबाद में सीएए के विरोध में बैठे प्रदर्शनकारियों को बलपूर्वक हटाने की बात की थी और दिल्ली पुलिस के डीसीपी वेद प्रकाश सूर्या की मौजूदगी में कपिल मिश्रा ने ये भडकाऊ भाषण दिया था.

हथियारबंद भीड़ ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली के कई इलाक़ों में लोगों पर हमले किए, उनके घरों और दुकानों को आग लगा दी. इस दौरान भीड़ जय श्रीरामहर-हर मोदीकाट दो इन. को और आज तुम्हें आज़ादी देंगे जैसे नारे लगा रही थी. मुसलमानों की दुकानों को चुन-चुन कर निशाना बनाया गया जिसमें स्थानीय युवक भी थे और कुछ लोग बाहर से लाए गए थे. अगर दुकान के मालिक हिंदू हैं और मुसलमान ने किराए पर दुकान ले रखी थी तो उस दुकान को आग नहीं लगाई गई थी, लेकिन दुकान के अंदर का सामान लूट लिया गया था. पीड़ितों से बातचीत के बाद लगता है कि ये दंगे अपने आप नहीं भड़के बल्कि ये पूरी तरह सुनियोजित और संगठित थे और लोगों को चुन-चुन कर निशाना बनाया गया था. रिपोर्ट के अनुसार 11 मस्जिद, पाँच मदरसे, एक दरगाह और एक क़ब्रिस्तान को नुक़सान पहुँचाया गया. मुस्लिम बहुल इलाक़ों में किसी भी ग़ैर-मुस्लिम धर्म-स्थल को नुक़सान नहीं पहुँचाया गया था.

इन दंगों में दिल्ली पुलिस की भूमिका बहुत ख़राब थी. कई जगहों पर वो तमाशाई बने रहे या फिर दंगाइयों को शह देते रहे. चश्मदीदों के अनुसार अगर किसी एक जगह एक पुलिस वाले ने दंगाइयों को रोकने की कोशिश भी की तो उसके साथी पुलिसवाले ने उसे ही रोक दिया. पीड़ितों के अनुसार पुलिस ने कई मामलों में एफ़आईआर लिखने से मना कर दिया और कई बार संदिग्ध का नाम हटाने के बाद एफ़आईआर लिखी. कई जगहों पर पुलिसवालों ने दंगाइयों को हमले के बाद ख़ुद सुरक्षित निकाल कर ले गए और कई जगह तो कुछ पुलिस वाले ख़ुद हमले में शामिल थे. महिला पीड़ितों के अनुसार कई जगहों पर उनके नक़ाब और हिजाब उतारे गए. दंगाई और पुलिस वालों ने धरने पर बैठी महिलाओं को निशाना बनाया और इसमें कई पुरुष पुलिसकर्मी ने महिलाओं के साथ बदतमीज़ी की. उनको रेप करने और एसिड हमले करने की धमकी दी गई.

कमेटी ने मुआवज़े के लिए लिखे गए 700 आवेदनों का अध्ययन किया. कमेटी ने पाया कि ज़्यादातर मामलों में क्षतिग्रस्त जगह का दौरा भी नहीं किया गया है और जिन मामलों में सही पाया गया है उनमें भी सिर्फ़ बहुत कम अंतरिम सहायता राशि दी गई है. दंगों के फ़ौरन बाद कई लोग घर छोड़ कर चले गए हैं, इसलिए वो मुआवज़े के लिए अपील भी नहीं कर सके हैं. मुआवज़े में भी सरकारी अधिकारी के मरने पर उनके परिवार वालों को एक करोड़ की रक़म दी गई जबकि आम नागरिकों की मौत पर केवल 10 लाख रुपए का मुआवज़ा दिया गया.

रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में क़ानून-व्यवस्था की ज़िम्मेदारी केंद्र सरकार की है फिर भी दंगों में पीड़ितों को केंद्र सरकार की तरफ़ से कोई मदद नहीं की गई. कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में सिफ़ारिश की है कि सरकार या अदालत से अनुरोध किया जाए कि हाईकोर्ट के किसी रिटायर्ज जज की अध्यक्षता में एक पाँच सदस्यीय कमेटी बनााई जाए.

जज की अध्यक्षता वाली कमेटी एफ़आईआर नहीं लिखने, चार्जशीट की मॉनिटरिंग, गवाहों की सुरक्षा, दिल्ली पुलिस की भूमिका और उनके ख़िलाफ़ उचित कार्रवाई जैसे मामलों में अपना फ़ैसला सुनाए. कमेटी ने ये भी कहा है कि दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग को अपने एक्ट के अनुसार दंगों में शामिल होने या अपनी भूमिका ठीक से नहीं निभाने वाले दिल्ली पुलिस के अधिकारियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करनी चाहिए. कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में अभियोजक की बहाली, मुआवज़ा, क्षतिग्रस्त धार्मिक स्थलों की मोरम्मत जैसे मामलों में भी कई सुझाव दिए हैं.

हालांकि दिल्ली पुलिस ने दिल्ली हाईकोर्ट में पेश किए गए एक हलफ़नामे में कहा है कि अब तक उन्हें ऐसे कोई सबूत नहीं मिले हैं जिनके आधार पर ये कहा जा सके कि बीजेपी नेता कपिल मिश्रा, परवेश वर्मा और अनुराग ठाकुर ने किसी भी तरह लोगों को 'भड़काया हो या दिल्ली में दंगे करने के लिए उकसाया हो.' दिल्ली पुलिस ने ये हलफ़नामा एक याचिका के जवाब में पेश किया. इस याचिका में उन नेताओं के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज करने की बात कही गई है, जिन्होंने जनवरी-फ़रवरी में विवादित भाषण दिया था. हलफ़नामे को पेश करते हुए डिप्टी कमिश्नर (क़ानून विभाग) राजेश देव ने ये भी कहा कि अगर इन कथित भड़ाकाऊ भाषणों और दंगों के बीच कोई लिंक आगे मिलेगा तो उचित एफ़आईआर दर्ज़ की जाएगी.

दिल्ली पुलिस की तरफ़ से दंगों को लेकर दर्ज कुल 751 अपराधिक मामलों का ज़िक्र करते हुए कोर्ट में कहा गया कि शुरुआती जाँच में ये पता चला है कि ये दंगे 'त्वरित हिंसा' नहीं थे बल्कि बेहद सुनियोजित तरीक़े से सोच समझ कर 'समाजिक सामंजस्य बिगाड़ा' गया. दिल्ली पुलिस ने इसी महीने के शुरू में अदालत में अपनी प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में कहा है कि पूर्वी दिल्ली के दंगों के लिए सऊदी अरब और देश के अलग-अलग हिस्सों से मोटी रकम आई थी. पुलिस ने बुधवार को यह भी कहा ये दंगे अचानक नहीं भड़के थे, बल्कि दिल्ली में अधिक से अधिक जान-माल की हानि के लिए पहले से तैयारी की गई थी. दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने अदालत से आग्रह किया कि उन्हें इन दंगों की जड़ों तक पहुंचने और आरोप पत्र दाखिल करने के लिए वक़्त दिया जाए. इनमें आम आदमी पार्टी से निलंबित निगम पार्षद ताहिर हुसैन, जामिया मिल्लिया इस्लामिया के छात्र नेता मीरान हैदर और गुलिफ्सा खातून के नाम शामिल हैं. आम आदमी पार्टी के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन पर आईबी अधिकारी अंकित शर्मा की दंगों के दौरान हत्या मामले में अभियुक्त बनाया गया है. दिल्ली पुलिस ने ताहिर हुसैन के ख़िलाफ़ दाख़िल चार्जशीट में कहा है कि अंकित शर्मा के शव पर बरामदगी के समय 51 ज़ख़्म मिले थे, जैसे उनपर किसी धारदार हथियार से हमला किया गया हो, जिससे लगता है कि पूरा मामला किसी बड़ी साज़िश का नतीजा थी.

Report@BBC HINDI https://www.bbc.com/hindi/india-53431935?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bbbc.news.twitter%5D-%5Bheadline%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D&at_campaign=64&at_custom4=57EE8C58-C76C-11EA-B8C9-2CC84744363C&at_custom1=%5Bpost+type%5D&at_medium=custom7&at_custom2=twitter&at_custom3=BBC+Hindi

Saturday, July 11, 2020

'न्याय के मंदिर का दरवाजा कभी नहीं होगा बंद'...सुप्रीम कोर्ट ने दिया भरोसा

न्याय के मंदिर का दरवाजा कभी भी बंद नहीं किया जा सकता। उच्चतम न्यायालय ने यह टिप्पणी शुक्रवार को उस विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) की सुनवाई के दौरान की जिसमें एक कर्मचारी के कोरोना से संक्रमित होने के कारण राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (एनसीएलएटी) में सुनवाई लंबित होने के खिलाफ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया गया था। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा, न्यायमूर्ति एस अब्दुल नज़ीर और न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी की खंडपीठ ने कहा कि न्याय के मंदिर का दरवाजा कभी भी बंद नहीं किया जा सकता। न्यायालय ने एसएलपी का यह कहते हुए निपटारा कर दिया कि एनसीएलएटी को ऑनलाइन सुनवाई का कोई तरीका ढूंढना चाहिए था। न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि हम एनसीएलएटी से आग्रह करते हैं कि वह अंतरिम रोक के मामले में न्यायाधिकरण के खुलते है सुनवाई करे। इसके साथ ही न्यायालय ने ‘मैसर्स मराठे हॉस्पिटैलिटी बनाम महेश सुरेखा' मामले का निपटारा कर दिया। अपीलकर्ता ने एनसीएलटी, मुंबई के आदेश को एनसीएलएटी में चुनौती दी है, लेकिन गत दो जुलाई से वहां न्यायिक कार्य निलंबित कर दिया गया है। जिसके बाद मराठे हॉस्पिटैलिटी ने शीर्ष अदालत का रुख किया था। 

फर्जी एसबीआई शाखा चलाने के लिए तीन लोग गिरफ्तार

भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की डुप्लीकेट शाखा चलाने के आरोप में पुलिस ने आज तीन लोगों को गिरफ्तार किया। तीन लोगों में से एक, पूर्व बैंक कर्मचारियों का बेटा था। पानरूटी में पुलिस के एक निरीक्षक अम्बेठकर ने विकास की पुष्टि की है और कहा है कि पुलिस ने एक बेरोजगार युवक, जिसके माता-पिता पूर्व बैंक कर्मचारी थे, सहित तीन लोगों को गिरफ्तार किया है।उनके पिता का 10 साल पहले निधन हो गया था, जबकि उनकी मां दो साल पहले एक बैंक से सेवानिवृत्त हुई थीं। गिरफ्तार किए गए अन्य दो लोगों में एक व्यक्ति शामिल है जो प्रिंटिंग प्रेस चलाता है जहां से सभी रसीदें, चालान और अन्य दस्तावेज मुद्रित किए गए थे। अन्य मुद्रण रबर टिकटों में था। तीन महीने पुरानी शाखा एक लेंस के तहत आई थी, जब एसबीआई के एक ग्राहक ने पन्रुति में देखा और मामले को अपने शाखा प्रबंधक के साथ उठाया। इसके तुरंत बाद, यह मामला ज़ोनल कार्यालय में स्थानांतरित कर दिया गया, जिसने शाखा प्रबंधक को सूचित किया कि केवल एसबीआई की दो शाखाएँ पन्रुति में चल रही हैं, और कोई तीसरी शाखा नहीं खोली गई थी। एसबीआई के अधिकारियों ने उस जगह (डुप्लीकेट ब्रांच) का दौरा किया और वे हैरान रह गए जब उन्होंने पूरे सेट को देखा, जो बिल्कुल बैंक शाखा की तरह था, जिसमें सभी सिस्टम और इन्फ्रास्ट्रक्चर थे। पुलिस अधिकारियों ने कहा कि एसबीआई अधिकारियों ने तुरंत तीन लोगों को गिरफ्तार कर लिया। उन्होंने कहा कि शुक्र है कि कोई लेन-देन नहीं हुआ, इसलिए किसी के पास पैसे नहीं थे। तीनों को अदालत में पेश किया गया।

Thursday, July 9, 2020

"नटराज आर्ट क्लब" ओर "दिल्ली म्यूजिक क्लब" के सहयोग से ऑनलाइन कांटेस्ट का आयोजन

राजेश वधवा: दिल्ली: "नटराज आर्ट क्लब" ओर "दिल्ली म्यूजिक क्लब" के सहयोग से ऑनलाइन कांटेस्ट का आयोजन बीते दिन प्रीत विहार में किया गया जिसमें डांस, मॉडलिंग, सिगिंग का प्रोग्राम रखा गया। जिसमे जूरी रहे पारुल (माही रॉक), वीना राजपूत, गीता शर्मा,साधना तिवारी , गुलफाम ने जज किया। सिगिंग विनर में रूपा कांति,अशोक भारद्वाज,एवं विनीत कुमार विजयी रहे तो मॉडलिंग में नियति  लावण्या,सान्या राजपूत,पायल तोमर,तान्या चौहान विनर रहे। शो ऑफलाइन में शिप्रा कुशवाहा ओर चंद्रा गौतम रहे।स्पेशल मॉडल विनर में परी तोमर ओर डांस में अलका कथूरिया विजेता रही। कार्यक्रम के आयोजक लक्की कश्यप ने बताया कि दूसरे ऑनलाइन शो के सफल विजेताओं को अगले महीने 4 अगस्त में दोबारा एक आयोजन में सम्मानित किया जाएगा। दिल्ली म्यूजिक क्लब के चेयरमैन कबीर ओर जनरल सेकेट्री राजेश वधवा ने आगामी प्रोग्राम में  आने वाले प्रतिभागियों को विशेष रूप से अपने आने वाले प्रोग्राम में विशेष रूप से आमंत्रण दिया जाएगा।

Friday, July 3, 2020

प्राईवेट स्कूल में फीस की मनमानी और अभिभावक की परेशानी : मिर्जा़ ज़की अहमद बेग

आज कल प्राइवेट स्कूल के खिलाफ कार्रवाई की माँग काफी बढ़ गई है, कुच्छ लोग धरने पर बैठे हुए हैं तो कुछ प्रेस बयान दे रहे हैं, इस में सामाजिक चिंता भी है और सियासत भी है. चुनावी मौसम आ रहा है, 
इस लिए इस बहाने जनता के बीच अपनी मौजूदगी लोग दर्ज करा रहे हैं. कुछ अभिभावक का कहना है कि जब पढ़ाई नहीं तो फीस क्यूँ, उनकी बात को नकारा नहीं जा सकता है लेकिन प्रश्न य़ह भी है कि स्कूल पूरे साल का कार्यक्रम बनाते हैं. शिक्षकों की नियुक्ति पूरे साल के लिए होती है, स्कूल में टूट फुट और दूसरे खर्च अलग हैं. अब अगर स्कूल वाले फीस नहीं लेंगे तो शिक्षकों की तनख्वाहें और दूसरे ख़र्चे कैसे पूरे करेंगे. स्कूल सिर्फ स्कूल मैनेजमेंट से नहीं चलता, अभिभावकों का साथ भी चाहिए. अगर इतनी ही तकलीफ़ है तो अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ने क्यूँ भेजा, सरकारी स्कूल में दाखिला लिया होता. इतनी ही चिंता है तो सरकारी स्कूल की दशा और दिशा ठीक करें और वहाँ अपने बच्चों को भेजें. हाँ कुछ स्कूल ऐसे हैं जो फीस में मन मानी करते हैं उस पर बात की जाए. इसके लिए स्कूल के मैनेजमेंट से बात की जा सकती है, अथवा अभिभावक संघ होता है जिसे पी टी ए भी कहते हैं. अगर स्कूल की कुछ शिकायत है तो बात करें नहीं माने तो सरकारी शिक्षा विभाग है. बहुत से स्कूल ने लॉक डाउन में भी क्लास जारी रखा और ऑन लाइन की सुविधाएं उपलब्ध कराया और बच्चों को उन के घरों पर शिक्षा दी. स्कूल के बारे में दोनों पक्षों के हित को ध्यान में रखते हुए ही कुछ कदम उठाए जाएं. विरोध करने से पहले दोनों पक्षों का अध्ययन करें फिर जो उचित हो करें.


Monday, June 29, 2020

दिल्‍ली में भूकंप के तेज झटकों के लिए तैयार नहीं हैं 30 साल पुरानी 90 प्रतिशत बिल्डिंग

नई दिल्ली: नॉर्थ, साउथ और ईस्ट एमसीडी ने जिन 30 साल या इससे अधिक पुरानी हाई-राइज बिल्डिंगों को नोटिस जारी किया है, उनमें से कुछ बिल्डिंगों की ऑडिट रिपोर्ट आई है। रिपोर्ट काफी चौंकाने वाली है। इसमें 90 प्रतिशत बिल्डिंगों के बीम और कॉलम में दरारें पाई गई हैं, जो भूकंप के तेज झटकों को झेल नहीं सकतीं। साउथ एमसीडी ने अभी तक करीब 100, नॉर्थ एमसीडी ने भी लगभग इतने ही और ईस्ट एमसीडी ने 66 बिल्डिंगों को नोटिस जारी किया है। साउथ एमसीडी ने नेहरू प्लेस स्थित 16 मंजिला मोदी टावर, 17 मंजिला प्रगति देवी टावर, 15 मंजिला अंसल टावर, 17 मंजिला हेमकुंट टावर को स्ट्रक्चरल ऑडिट के लिए नोटिस जारी किया है। आश्रम चौक पर स्थित नैफेड बिल्डिंग, सफदरजंग एन्क्लेव एरिया में स्थित कमल सिनेमा और जनकपुरी स्थित भारती कॉलेज को भी नोटिस जारी किया है।

कुल मिलाकर साउथ एमसीडी एरिया में करीब 100 बिल्डिंगों को नोटिस जारी किया गया है, जिनमें ग्रुप हाउसिंग सोसायटी, स्कूल और कमर्शल बिल्डिंग्स हैं। नॉर्थ एमसीडी के जोनल अफसरों ने भी 6 जोन में करीब 100 ऐसी बिल्डिंगों को नोटिस जारी किया है। ईस्ट एमसीडी में 66 बिल्डिंगों को नोटिस जारी किया गया है, साउथ एमसीडी अफसरों के अनुसार, जिन बिल्डिंगों को स्ट्रक्चरल ऑडिट के लिए नोटिस जारी किया गया है, उन्हें 90 दिनों में स्ट्रक्चरल ऑडिट कराने के लिए कहा गया है। नोटिस मिलने के बाद कुछ बिल्डिंगों का स्ट्रक्चरल ऑडिट भी शुरू हो चुका है। जिन बिल्डिंगों की स्ट्रक्चरल ऑडिट हो चुकी है, उनमें से ज्यादातर की रिपोर्ट में बीम और कॉलम में दरारें पाई गई है। यह किसी भी हाईराइज बिल्डिंग के लिए गंभीर समस्या है और ऐसी बिल्डिंगें भूकंप के तेज झटके सहन नहीं कर सकतीं।

Friday, June 5, 2020

भूकंप के इतने झटके दिल्ली-एनसीआर में क्यों आ रहे?

भारत के दिल्ली-एनसीआर इलाक़े में इस साल की 12 अप्रैल और तीन मई के बीच में नेशनल सेंटर ऑफ़ सीसमोलोजी ने भूकंप के 7 झटके रिकार्ड किए. इनमें से किसी भी झटके की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 4 से ज़्यादा की नहीं थी और जानकरों को लगता है कि 5 से कम तीव्रता वाले भूकंप के झटकों से बड़ा नुक़सान नहीं होने की सम्भावना प्रबल रहती है. इस बीच दो सवाल ज़रूर उठ रहे हैं. पहला ये कि आख़िर दिल्ली-एनसीआर में भूकंप के झटकों के वाक़ये बढ़ क्यों रहे हैं और क्या भविष्य के लिए ये बड़ी चिंता का विषय बन सकता है लेकिन सबसे पहले इस बात को समझने की ज़रूरत है कि भारत में भूकंप की क्या आशंकाएं हैं. भूगर्भ विशेषज्ञों ने भारत के क़रीब 59% भू-भाग को भूकंप सम्भावित क्षेत्र के रूप में वर्गित किया है.
दुनिया के दूसरे देशों की तरह ही भारत में ऐसे ज़ोन रेखांकित किए गए हैं जिनसे पता चलता है कि किस हिस्से में सीस्मिक गतिविधि (पृथ्वी के भीतर की परतों में होने वाली भोगौलिक हलचल) ज़्यादा रहती हैं और किन हिस्सों में कम. वैज्ञानिकों ने इसका तरीक़ा निकाला है भूकंप सम्भावित क्षेत्रों के चार-पाँच सीस्मिक ज़ोन बना कर उन्हें चिन्हित करना. ज़ोन-1 में भूकंप आने की आशंका सबसे कम रहती है वहीं ज़ोन-5 में ज़्यादा प्रबल रहती है. दिल्ली-एनसीआर का इलाक़ा सीस्मिक ज़ोन-4 में आता है और यही वजह है कि उत्तर-भारत के इस क्षेत्र में सीस्मिक गतिविधियाँ तेज़ रहती हैं. जानकार सीस्मिक ज़ोन-4 में आने वाले भारत के सभी बड़े शहरों की तुलना में दिल्ली में भूकंप की आशंका ज़्यादा बताते हैं. ग़ौरतलब है कि मुबई, कोलकाता, चेन्नई और बेंगलुरु जैसे शहर सिस्मिक ज़ोन-3 की श्रेणी में आते हैं. जबकि भूगर्भशास्त्री कहते हैं कि दिल्ली की दुविधा यह भी है कि वह हिमालय के निकट है जो भारत और यूरेशिया जैसी टेक्टॉनिक प्लेटों के मिलने से बना था और इसे धरती के भीतर की प्लेटों में होने वाली हलचल का ख़मियाज़ा भुगतना पड़ सकता है. 'इंडियन एसोसिएशन ऑफ़ स्ट्रक्चरल इंजीनियर्स' के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर महेश टंडन को लगता है कि दिल्ली में भूकंप के साथ-साथ कमज़ोर इमारतों से भी ख़तरा है.
उन्होंने कहा, "हमारे अनुमान के मुताबिक़ दिल्ली की 70-80% इमारतें भूकंप का औसत से बड़ा झटका झेलने के लिहाज़ से डिज़ाइन ही नहीं की गई हैं. पिछले कई दशकों के दौरान यमुना नदी के पूर्वी और पश्चिमी तट पर बढ़ती गईं इमारतें ख़ास तौर पर बहुत ज़्यादा चिंता की बात है क्योंकि अधिकांश के बनने के पहले मिट्टी की पकड़ की जाँच नहीं हुई है". भारत के सुप्रीम कोर्ट ने चंद वर्षों पहले आदेश दिया था कि ऐसी सभी इमारतें जिनमें 100 या उससे अधिक लोग रहते हैं, उनके ऊपर भूकंप रहित होने वाली किसी एक श्रेणी का साफ़ उल्लेख होना चाहिए. फ़िलहाल तो ऐसा कुछ देखने को नहीं मिलता. दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र की एक बड़ी समस्या आबादी का घनत्व भी है. डेढ़ करोड़ से ज़्यादा आबादी वाले दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में लाखों इमारतें दशकों पुरानी हो चुकी हैं और तमाम मोहल्ले एक दूसरे से सटे हुए बने हैं.
भूगर्भशास्त्रियों के अनुसार दिल्ली और उत्तर भारत में छोटे-मोटे झटके या आफ्टरशॉक्स तो आते ही रहेंगे लेकिन जो बड़ा भूकंप होता है उसकी वापसी पाँच वर्ष में ज़रूर होती है और इसीलिए ये चिंता का विषय है. वैसे भी दिल्ली से थोड़ी दूर स्थित पानीपत इलाक़े के पास भूगर्भ में फॉल्ट लाइन मौजूद है जिसके चलते भविष्य में किसी बड़ी तीव्रता वाले भूकंप की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता. वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ हिमालयन टेक्नोलोजी के प्रमुख भूगर्भशास्त्री डॉक्टर कालचंद जैन मानते हैं कि, "किसी बड़े भूकंप के समय, स्थान और रिक्टर पैमाने पर तीव्रता की भविष्यवाणी नहीं की जा सकती".
लेकिन उन्ही के मुताबिक़, "हम इस बात को भी कह सकते हैं कि दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में सीस्मिक गतिविधियाँ सिलसिलेवार रहीं हैं और वे किसी बड़े भूकंप की भी वजह हो सकती हैं". भूकंप और सीस्मिक ज़ोन से जुड़ी एक और अहम बात है कि किसी भी बड़े भूकंप की रेंज 250-350 किलोमीटर तक हो सकती है. मिसाल के तौर पर 2001 में गुजरात के भुज में आए भूकंप ने क़रीब 300 किलोमीटर दूर स्थित अहमदाबाद में भी बड़े पैमाने पर तबाही मचाई थी. अगर दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में पिछले 300 वर्षों के भूकंप इतिहास को टटोला जाए तो सबसे ज़्यादा तबाही मचाने वाला भूकंप 15 जुलाई, 1720 का बताया जाता है.
भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के पूर्व सहायक महानिदेशक डॉक्टर प्रभास पांडे ने इस मामले पर वर्षों तक रिसर्च करके अपने स्टडी में इसका ज़िक्र किया है. उनके अनुसार, "1720 वाले भूकंप की तीव्रता का अंदाज़ा 1883 में प्रकाशित हुए 'द ओल्डहैम्स कैटालॉग ऑफ़ इंडियन अर्थक्वेक्स' से मिलता है और रिक्टर पैमाने पर ये 6.5-7.0 के बीच का रहा था. इसने पुरानी दिल्ली और अब नई दिल्ली इलाक़े में भारी तबाही मचाई थी और भूकंप के पाँच महीनों बाद तक हल्के झटके महसूस किए गए थे".
डॉक्टर प्रभास पांडे आगे लिखते हैं, "अगर 20वीं सदी की बात हो तो 1905 में काँगड़ा, 1991 में उत्तरकाशी और 1999 में चमोली में आए भूकंप उत्तर भारत में बड़े कहे जाएँगे और इनके कोई न कोई जुड़ाव पृथ्वी के बीचे वाली गतिविधियों से रहा है जो एक ही समय पर दिल्ली-एनसीआर में भी महसूस की गईं हैं" सवाल यह भी है कि दिल्ली भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा से निपटने के लिए कितनी तैयार है.
सार्क डिज़ास्टर मैनेजमेंट सेंटर के निदेशक प्रोफ़ेसर संतोष कुमार को लगता है कि पहले की तुलना में अब भारत ऐसी किसी आपदा से बेहतर निपट सकता है. उन्होंने बताया, "देखिए आशंकाएं सिर्फ़ अनुमान पर आधारित होती हैं. अगर हम लातूर में आ चुके भूकंप को ध्यान में रखें तो निश्चित तौर पर दिल्ली में कई भवन असुरक्षित हैं. लेकिन बहुत सी जगह सुरक्षित भी हैं. सबसे अहम है कि हर नागरिक ऐसे ख़तरे को लेकर सजग रहे और सरकारें प्रयास करें कि नियमों का उल्लंघन क़त्तर्ई न हो."
'सेंटर फ़ॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट' की अनुमिता रॉय चौधरी का भी मानना है कि दिल्ली में हज़ारों ऐसी इमारतें हैं जिनमें रेट्रोफ़िटिंग यानी भूकंप निरोधी मरम्मत की सख़्त ज़रूरत है. उन्होंने कहा, "भारत के कई हिस्सों से इमारतों के ज़मीन में धसने की ख़बरें आती रहती हैं और वो भी बिना भूकंप के. अब चूँकि दिल्ली-एनसीआर का इलाक़ा पहले से ही यमुना नदी के दोआब पर फैलता गया है तो ज़ाहिर है बड़े भूकंप को झेल पाने की क्षमता भी कम होगी. ज़रूरत पुरानी इमारतों की पूरी मरम्मत करके, सभी नई इमारतों को कम से कम 7.0 रिक्टर स्केल की तीव्रता वाले भूकंप को झेलने वाला बनाने की है." बीबीसी संवाददाता

 
 

Monday, June 1, 2020

Delhi University Exams 2020: फाइनल ईयर के स्टूडेंट्स को देने होंगे ओपन बुक एग्जाम

दिल्ली यूनिवर्सिटी (DU) ने फाइनल ईयर के स्टूडेंट्स के लिए ओपन बुक एग्जामिनेशन (Open Book Exams) आयोजित कारने का फैसला लिया है. ओपन बुक एग्जामिनेशन (OBE) के लिए दिल्ली यूनिवर्सिटी ने ऑफिशियल वेबसाइट पर गाइडलाइन्स जारी कर दी हैं. नोटिफिकेशन को देखने के लिए इच्छुक उम्मीदवार ऑफिशियल वेबसाइट du.ac.in पर लॉग इन कर सकते हैं. दरअसल, कोरोनावायरस (Coronavirus) के प्रकोप के चलते परीक्षाएं आयोजित कराना संभव नहीं हैं. स्टूडेंट्स की पढ़ाई और अकेडमिक कैलेंडर को ध्यान में रखते हुए दिल्ली यूनिवर्सिटी ने इस बार फाइनल ईयर के स्टूडेंट्स के लिए ओपन बुक एग्जामिनेशन आयोजित कराने का निर्णय लिया है. हालांकि, ज्यादातर स्टूडेंट्स और शिक्षक इस तरह से परीक्षाएं आयोजित कराने का विरोध कर रहे हैं. लेकिन सभी विरोधों के बीच दिल्ली यूनिवर्सिटी ने एग्जाम के लिए  गाइडलाइन्स जारी कर दी हैं. इससे ये साफ हो गया है कि फाइनल ईयर के स्टूडेंट्स को इस बार ओपन बुक एग्जामिनेशन ही देने होंगे. परीक्षाएं 1 जुलाई से आयोजित की जाएंगी.  
Delhi University Exams 2020: ये हैं गाइंडलाइन्स
1. OBE के लिए परीक्षार्थी को पूरे समय के लिए नेट के माध्यम से ऑनलाइन रहने की आवश्यकता नहीं होगी. बल्कि परीक्षार्थी को केवल प्रश्नपत्र डाउनलोड करने व उत्तर-पुस्तिकाओं को अपलोड करने के लिए ही इंटरनेट व हार्डवेयर ( जैसे- लैपटॉप, डेस्कटॉप, स्मार्ट फ़ोन आदि ) की ज़रूरत होगी. स्टूडेंट्स को प्रश्नों के उत्तर घर में ही ख़ाली शीट्स पर लिखकर उन्हें अपलोड करना होगा. 2. परीक्षा के लिए कुल समय सीमा तीन घंटे मिलेगी, जिसमें परीक्षा लिखने के लिए दो घंटे का समय दिया जाएगा. वहीं, एक घंटे का समय उत्तर-पुस्तिका को अपलोड करने के लिए होगा. दिव्यांग वर्ग के विद्यार्थियों के लिए कुल समय 5 घंटे का मिलेगा. 3. जिनके पास ऑनलाइन परीक्षा सम्बन्धी संसाधनों की सुविधा नहीं है, उनको इलेक्ट्रॉनिक्स व इंफॉर्मेशन टेक्नोलोजी मंत्रालय के देश भर में बने कॉमन सर्विस सेंटर की सहायता से विश्विद्यालय सुविधा मुहैया कराएगा. तकनीकी रूप से सुविधाविहीन विद्यार्थी अपना पंजीकरण करवाकर वहां से सुविधा ले सकते हैं. इससे संबंधित जानकारी कुछ दिनों बाद विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर उपलब्ध कराई जाएगी.4. OBE के लिए विद्यार्थियों को एक प्रैक्टिस सेशन भी दिया जाएगा, इसमें विद्यार्थी मॉक एग्ज़ाम दे सकेंगे. इसकी व्यवस्था परीक्षा शुरू होने से एक हफ़्ते पहले शुरू की जाएगी.5. ओपन बुक एग्जामिनेशन में शामिल होने वाले उम्मीदवार अगर अपनी परफॉर्मेंस में सुधार करना चाहते हैं तो उन्हें सेमेस्टर साइकिल के मुताबिक सुधार करने का मौका दिया जाएगा. 6. सभी छात्र इस बात को सुनिश्चित करें कि उनके द्वारा संबंधित पाठ्यक्रमों के लिए परीक्षा फॉर्म पहले ही भरे जा चुके हैं. 7. कॉलेज परीक्षा से पहले कुछ टेलीफोन नंबर जारी करेंगे. किसी भी तरह की जरूरत पड़ने या किसी भी जानकारी को पाने के लिए स्टूडेंट्स उन नंबरों का उपयोग कर सकेंगे. 8. एग्जाम के लिए टेंटेटिव शेड्यूल यूनिवर्सिटी की ऑफिशियल वेबसाइट पर जारी किया जा चुका है. स्टूडेंट्स वेबसाइट से शेड्यूल चेक कर सकते हैं और किसी भी तरह की समस्या होने पर ई-मेल के जरिए एग्जामिनेशन ब्रांच से पता कर सकते हैं. 9. अगर परीक्षा के दौरान किसी समस्या के कारण स्टूडेंट्स पोर्टल पर अपनी आंसर शीट्स अपलोड नहीं कर पाते हैं तो वे आंसर शीट की पीडीएफ फाइल जारी की गई ई-मेल आईडी पर भेज सकते हैं. इस विकल्प का इस्तेमाल सिर्फ एमरजेंसी में ही किया जा सकता है. 10.  विद्यार्थियों के भविष्य और हितों को ध्यान में रखते हुए विश्वविद्यालय की पूरी कोशिश रहेगी कि OBE रिजल्ट जुलाई के अंत तक जारी कर दिया जाए. 

Sunday, May 31, 2020

डिजिटल स्पेस को रियल स्पेस बनाने की ज़रूरत-सुमन कुमार

दिल्ली: समय के अनुसार अब डिजिटल स्पेस को रियल स्पेस बनाने की आवश्यकता है इसी के साथ, नगर स्तर से लेकर, एकेडमिक संस्थानो, कॉरपोरेट सेक्टर के साथ संस्कृति संस्थानो को आगे आकर कलाओं को स्पॉन्सर करना चाहिए, और इसके लिए कलाकारों को भी एक अप्रोच  डेवलप करनी पड़ेगी, यह बात  प्रख्यात रंगकर्मी एवं संगीत नाटक अकादमी  के डिप्टी सेकेट्री (ड्रामा) श्री सुमन कुमार ने प्रासंगिक द्वारा आज दोपहर आयोजित 'डिजिटल प्लेटफार्म पर रंगकलाओं के अर्थतंत्र' की परिचर्चा के दौरान कही। सुमन कुमार जी ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि डिजिटल स्पेस के अनुसार कलाकारों को अब छोटी और रोचक प्रस्तुतियां तैयार करने के साथ उसकी मार्केटिंग करना भी सीखने की आवश्यकता पर बल दिया, परिचर्चा में यह भी निकल कर आया कि आर्ट के लिए अमेजॉन या नेटफ्लिक्स जैसे चैंनल बनने के साथ कलाकर्मियों का CINTA या SWA जैसा एक राष्ट्रीय स्तर का संगठन भी बनना चाहिए । उनकी इस बात से परिचर्चा में शामिल प्रसिद्ध लेखक एवं रंगनिदेशक श्री नज़ीर कुरैशी, प्रख्यात रंगकर्मी श्री रामचन्द्र सिंह, प्रसिद्ध नृत्यांगना प्रतिभा सिंह, गायक एवं संगीतकार श्री नवनीत पांडेय, वरिष्ठ रंगकर्मी श्री बृजेश अनय, श्री  सौरभ कौशिक, श्री शैलेन्द्र द्विवेदी, श्री बृजेश मिश्रा, श्री शिव पटेल आदि सभी ने सहमति व्यक्त की। क़रीब ढाई घण्टे चली इस डिजिटल चर्चा में मुख्य वक्ता सुमन जी सहित सभी लोगों का हार्दिक आभार व्यक्त करते हुए संस्था के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ रंगकर्मी आलोक शुक्ला ने जून में जल्द ही पुनः आयोजित नाट्य पाठ में आने का आग्रह किया।  रिपोर्ट@WJI सोशल मीडिया

Tuesday, May 19, 2020

मजदूरों का दर्द: फुरकान शाह

मजदूर घरों को लौट रहे हैं। भूख, लाचारी, गरीबी, अभाव, तिरस्कार, अवहेलना, भय, अनिश्चितता या अपनों से दूरी। कारण जो भी हो आज इनका मुख्य उद्देश्य अपने उसी घर को लौट जाना है जिसको छोड़कर रोजी रोटी की तलाश में निकले थे। शहरों की चकाचौंध ने गाँव में अंधेरे पसार दिए हैं। खण्डहरों में तबदील होते गाँव वर्षों से बुद्धिजीवियों की चिंता का विषय बने हुए हैं। शहरों में भी चुनौतियाँ कम नहीं हैं किन्तु भौतिक सुख की चाहत ने ग्रामीणों को गाँव का स्वर्ग जैसा सुख छोड़कर शहरों में नारकीय जीवन जीने को मजबूर कर दिया है। आज जब घर या गाँव लौटने का समय आया तो लगता है कि समूचा भारत उमड़ पड़ा हो। लोग देखकर हैरान है कि इतनी बड़ी संख्या में लोग इधर उधर हैं। ये सब एकाएक नहीं हुआ है बल्कि पलायन में सदियाँ लगीहैं। इन्हें दोबारा स्थापित होने में भी लंबा समय लगेगा। लोग आज हर अव्यवस्था के लिए सरकार को दोषी ठहराते हैं क्या लोगों का खुद का कोई दोष नहीं जो विकास के मुद्दों को न देखकर सिर्फ धर्म और जाति के नाम पर वोट देते रहे। और जनता के सेवक जो चुनाव के दौरान प्रत्येक घर तक पहुंचने की कोशिश करते हैं, चुनाव जीतने के बाद पांच साल तक और पांच ही क्या जिंदगी भर मोटा वेतन और पेंशन, भत्ते प्राप्त कर मौज की ज़िन्दगी गुजारते हैं ये देखने की जहमत तक नहीं उठाते कि उनके क्षेत्र में लोगों की समस्याएं क्या हैं। याद आती हैं उन राजाओं की कहानियां जो भेष बदलकर घूमते थे। जो अपनी प्रजा के दुख को अपना दुख समझते थे। आज जब देश में त्राहि त्राहि मची हुई है, निर्धन और मध्यम वर्ग के माथे पर चिंता की लकीरें हैं तमाम राजनैतिक पार्टियाँ इसे भी एक अवसर के रूप में देख रही हैं। देखें लेकिन इन गरीबों के बारे में सोचना होगा। इन्हें गले लगाना होगा। स्थानीय लोगों को काम मिले इसके लिए प्रत्येक स्तर पर दबाव बनाना होगा। सिर्फ सरकारी दफ्तरों में बैठे ,सरकारी वेतन ले रहे लोग और धनी वर्ग ही प्रजा नहीं है प्रजा वो भी है जिसका किसी सरकारी सहायता वाले दफ्तर में नाम नहीं किन्तु चुनाव के समय बड़ी आस से तुम्हें वोट देते हैं। # फुरकान शाह, प्रबन्धक, शाहजहाँ पब्लिक स्कूल याकूबपुर अमरोहा यूपी 

Wednesday, May 13, 2020

PM Modi ने दिए 20 लाख करोड़ : आबादी के हिसाब से आपके हिस्से में कितना आया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना वायरस की वजह से लॉकडाउन झेल रहे देश की आर्थिक हालत सुधारने के लिए 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज का ऐलान किया है. इस पैकेज की पूरी जानकारी आज वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण शाम 4 बजे देंगी. माना जा रहा है कि वित्त मंत्री यह बताएंगी कि इस पूरे पैकेज में किस सेक्टर तो कितना दिया गया है. वहीं मंगलवार को पीएम मोदी ने कहा कि इस पैकेज का इस्तेमाल देश के हर वर्ग किसान, मजदूर, लघु उद्योगों और कामगारों की मदद के लिए मदद किया जाएगा. पीएम मोदी ने यह भी कहा कि कोरोना वायरस की वजह से देश की आर्थिक गतिविधियों को ज्यादा नहीं रोका जा सकता है. अब हमें दो गज की दूरी और तमाम दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए इसके साथ ही रहना सीखना होगा. उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस से जंग अभी लंबी चलने वाली है. फिलहाल पीएम मोदी के 20 लाख करोड़ के पैकेज के ऐलान के बाद लोगों के मन में चार सवाल हैं जिसे वे जानना चाहते हैं. 
आपके हिस्से में कितने: अगर भारत की आबादी 133 करोड़ (1,33,00,00,000 - 133 के बाद सात शून्य) मानी जाए, तो इस हिसाब से हर एक के हिस्से में 15,037.60 रुपये आएंगे. अगर आबादी 130 करोड़ (1,30,00,00,000 - 13 के बाद आठ शून्य) मानी जाए, तो इस हिसाब से हर एक के हिस्से में 15,384.60 रुपये आएंगे. हालांकि यह एक बात साफ कर दें कि यह आर्थिक प्रति व्यक्ति के हिसाब से नहीं बांटा जाएगा, ऐसा कोई प्रावधान नहीं है.
20 लाख करोड़ में कितने जीरो: पीएम मोदी ने के 20 लाख करोड़ के पैकेज पर कई लोग यह भी जानने की कोशिश कर रहे हैं कि यह कुल कितनी रकम है और इसमें कितने शून्य आते हैं. इस सवाल पर कॉमेडियन कुणाल कामरा ने बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा पर तंज भी कसा है. आपको हता दें कि 20 लाख लाख करोड़ को अगर संख्या यानी नंबरों में बदलें तो 20000000000000 होगा. देश की कुल जीडीपी का कितना : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोरोना वायरस महामारी के कारण लड़खड़ाई अर्थव्यवस्था को फिर से मजबूती देने के लिये 20 लाख करोड़ रुपये के जिस प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा मंगलवार को की वह दुनिया में विभिन्न देशों द्वारा अब तक घोषित बड़े आर्थिक पैकेजों में से एक है. प्रधानमंत्री ने बताया कि 20 लाख करोड़ रुपये का यह पैकेज देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब 10 प्रतिशत के बराबर होगा. इस लिहाज से यह कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे देशों द्वारा घोषित बड़े पैकेजों में सुमार हो गया है. क्या होता है जीडीपी: सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) एक निश्चित समय में देश के अंदर बनने वाली सभी तैयार वस्तुओं और सेवाओं की कीमत या मौद्रिक मूल्य को जीडीपी कहा जाता है. जीडीपी में  निजी और सार्वजनिक उपभोग, निवेश, सरकारी खर्च, निजी आविष्कार, भुगतान-निर्माण लागत और व्यापार का विदेशी संतुलन शामिल है. जीडीपी एक तरह की आर्थिक सेहत के स्थिति जानने का पैमाना होता है.

Monday, May 11, 2020

ट्रेन चलने से 90 मिनट पहले पहुंचना होगा स्टेशन, रेलगाड़ी में सफर करने को लेकर RPF के विशेष निर्देश

कोरोनावायरस लॉकडाउन के बीच रेल मंत्रालय की कल (मंगलवार) से रेल सेवाओं को फिर से शुरू करने की योजना है. रेल मंत्रालय ने रविवार को कहा कि उसकी योजना चरणबद्ध तरीके से ट्रेनों को चलाने की है. इस बीच रेलवे सुरक्षा बल ने यात्रियों के कुछ विशेष निर्देश दिए हैं. आरपीएफ के महानिदेशक अरुण कुमार ने कहा, "यात्रियों से ट्रेन के निकलने के समय से 90 मिनट पहले रेलवे स्टेशन पर पहुंचने के लिए कहा जायेगा." कुमार ने कहा कि यात्रियों को स्टेशन के अंदर आने से पहले थर्मल स्क्रीनिंग से गुजरना होगा. साथ ही रेलवे यात्रियों से यात्रा के दौरान थोड़ा-बहुत सामान ले जाने का आग्रह करेगा. ट्रेन में यात्रा करने को लेकर पहले भी कुछ निर्देश जारी किए गए हैं. इसके तहत, ऐसे यात्री जो बुखार आदि से पीड़ि‍त है, यह यात्रा नहीं कर सकेंगे. इसके अलावा जिस यात्री में कोरोना वायरस के कोई भी लक्षण पाए जाएंगे, उसे यात्रा की इजाजत नहीं दी जाएगी.  रविवार को रेल मंत्रालय ने कोरोना वायरस लॉकडाउन के मद्देनदर बंद रेल सेवाओं को फिर से शुरू करने की घोषणा की थी. इसके तहत मंगलवार (12 मई) से ट्रेनों को चरणबद्ध तरीके से चलाने की योजना है. 
भारतीय रेलवे ने रविवार शाम को यह सूचना दी थी कि 12 मई से 15 जोड़ी ट्रेनें चलाई जाएंगी. रेलवे की तरफ से जारी प्रेस रिलीज के अनुसार इस दौरान नई दिल्ली स्टेशन से डिब्रूगढ़, अगरतला, हावड़ा, पटना, बिलासपुर, रांची, भुवनेश्वर, सिकंदराबाद, बेंगलुरु, चेन्नई, तिरुवनंतपुरम, मडगांव, मुंबई सेंट्रल, अहमदाबाद और जम्मू तवी को जोड़ने वाली इन ट्रेनों को विशेष ट्रेनों के रूप में चलाया जाएगा. इन ट्रेनों के लिए आज शाम 4 बजे से IRCTC से बुकिंग की जा सकेगी. इन ट्रेनों में सिर्फ एसी कोच होंगे.

Monday, May 4, 2020

स्पेशल स्टोरी: 350 साल पहले खुद को क्वरांटाइन करने वाले गांव की कहानी!

क्वरांटाइन...! हमारी देसी डिक्शनरी में अब यह शब्द नया नहीं रह गया है. क्वरांटाइन का मतलब बच्चा-बच्चा जानता है. खुद को घर में कैद कर लेना, समाज से दूरी बना लेना, खुद में खुद को समेंट लेना..बस यही तो क्वरांटाइन है. कोरोना संक्रमण के दौरान यह खुद को बचाए रखने का एकमात्र विकल्प है. पर दिक्कत ये है कि कुछ लोग इस क्वरांटाइन से भी तंग आ रहे हैं. इंसान मिलनसार प्राणी है. समाज के बिना उसका गुजारा संभव नहीं है. पर फिर भी खुद को जिंदा रखने की जद्दोजहद में हम सब एक-दूसरे से दूर हैं. फिर भले ही कितना ही अकेलापन महसूस हो रहा हो, पर ये जरूरी है. अब आज की ये जरूरत बहुत ज्यादा परेशान कर रही है तो आपको 350 साल पहले की एक घटना के बारे में जरूर जानना चाहिए. यह घटना "ग्रेट प्लेग ऑफ लंदन" के दौरान की है. जब एक गांव के लोगों ने महामारी को रोकने के लिए खुद को अपने आप ही क्वरांटाइन कर लिया था. यानि उस गांव ने मौत को अपने दरवाजे से बाहर नहीं जाने दिया. तो चलिए जानते हैं लंदन के पास बसे एक वीरान गांव एयम का किस्सा...
1665-66 की बीच इंग्लैंड ने भयानक प्लेग के कहर को झेला था. जब से दुनिया में कोरोना ने तबाही मचाना शुरू किया है, तब से प्लेग के उस दौर को कई बार याद किया जा चुका है. "ग्रेट प्लेग ऑफ लंदन" जिसके बारे में तमाम तरह की कहानियां कही गईं हैं, पर सबसे दर्दनाक और सीख देने वाली कहानी है एयम गांव की. एयम आज एक पर्यटक स्थल बन चुका है. ठीक वैसे ही जैसे हमारे राजस्थान का कुलधरा गांव. जहां एक वक्त में इंसानी बसाहट थी, खुशियां थीं, त्यौहार थे, मेले थे और फिर अचानक गांव ऐसे वीरान हुआ कि दोबारा बस नहीं पाया. एयम के वीरान होने की कहानी 350 साल पहले की है. यह गांव लंदन से तक़रीबन 3 घंटे की दूरी पर डर्बीशायर डेल्स जिला में है. इस गांव के बाहरी हिस्सों में अब भी 1 हजार से कम लोग रह रहे हैं पर जो मुख्य हिस्सा है वो प्लेग महामारी के बाद से पूरी तरह वीरान है. प्लेग ने 1665-66 में तकरीबन 14 महीनों तक इंग्लैंड के विभिन्न इलाकों, खासतौर पर लंदन और उसके इर्दगिर्द के क्षेत्रों में ख़ूब तबाही मचाई थी. सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, इस महामारी के वजह से 75,000 लोगों को जानें गंवानी पड़ी थी. हालांकि, कई इतिहासकार दावा करते हैं कि : 1 लाख से ज्यादा लोग मौत में मुंह में चले गए थे. खैर, किस्सा प्लेग के आंकड़ों का नहीं, बल्कि साहस का है. क्योंकि इस गांव ने अपनी जान पर खेल कर इस संक्रमण को फ़ैलने से रोका. अगर उस दौर में एयम गांव के लोगों ने पूरे गांव को क्वरांटाइन नहीं किया होता, तो शायद देश में इतनी मौतें होती कि उनकी गिनती नहीं की जा सकती थी.
सीखा खुद को क्वरांटाइन करना: जब पूरे लंदन में प्लेग फैल रहा था, तब कुछ समय तक एयम गांव सुरक्षित था. वजह ये थी कि लोग अपने गांव से कम ही बाहर जाया करते थे. लेकिन खतरे से बेखबर गांव का दर्जी अलेक्जेंडर हैडफील्ड लंदन पहुंचा, जहां से उसने कपड़े का थान खरीदा. वह नहीं जानता था कि जो थान खरीदा है वह प्लेग फैलाने वाले पिस्सू से संक्रमित है. थान गांव पहुंचा और उसकी दुकान में काम चलता रहा. पर हफ्ते के भीतर उस सहायक जॉर्ज विकर्स की मौत हो गई, जिसने बंडल को खोला था. हफ्तेभर के भीरत वह जिन-जिन लोगों से मिला थे, वे सभी संक्रमित हो चुके थे और धीरे-धीरे एक चेन तैयार हो गई. संक्रमण पूरे गांव में फैल गया. सितंबर से दिसंबर 1665 तक करीब 42 ग्रामीणों की मौत हो गई. 1666 की शुरूआत में लोगों ने गांव से बाहर निकलने की योजना बनाई. ताकि, बचे हुए लोग सुरक्षित रहें. हालांकि गांव के रेक्टर विलियम मोम्पेसन और निष्कासित पूर्व रेक्टर थॉमस स्टेनली ने ग्रामीणों को समझाया, कि ऐसा करना ज्यादा खतरनाक है. क्योंकि गांव के बाहर भी महामारी का प्रकोप है. अब उनके सामने बस एक ही रास्ता है कि वे खुद को कैद कर लें. वो भी कुछ इस तरह कि यह बीमारी आसपास के उन गांवों में ना फैले जहां तक अभी संक्रमण नहीं पहुंचा है. हालांकि, इस बलिदान के लिए गांव वालों को राजी करना इतना आसान नहीं था. बहुत समझाने के बाद अधिकांश ग्रामीण इस फैसले के लिए तैयार हो गए और जो तैयार नहीं थे वे गांव से बाहर निकल गए.
हालांकि, उनमें से कभी कोई लौटकर बाहर नहीं आया. खैर 24 जून 1666 को गांव के सारे रास्ते बाहरी लोगों के लिए बंद कर दिए गए. विलियम मोम्पेसन के ​कहने पर गांव के चारों ओर एक पत्थर की दीवार बना दी गई. जिसे आज भी "मोम्पेस्सन वेल" के नाम से जाना जाता है. इस दीवार में एक छोटा सा छेद रखा गया. जहां से गांव वाले चंद सिक्के बाहर फेंक देते थे और दूसरे लोग जो मदद करना चाहते थे वे इस छेद से खाने और दूसरी जरूरत की चीजें पहुंचा दिया करते थे. इससे महामारी गांव से बाहर तो नहीं गई पर गांव से भी नहीं गई. लोगों ने अपने घरों के भीतर ही जमीन खोदकर सुरंगें तैयार कीं. घर की महिलाएं और बच्चे इसी सुरंग में रहते, ताकि उन्हें जिंदा रखा जा सके. प्लेग से मरने वालों की लाशें गांव से काफी दूर जंगलों में दफनाई जानें लगी. अंतिम संस्कार की प्रक्रिया में भी गांव वालों के जुटने पर रोक लगा दी गई. कोई अपने घर से बाहर नहीं निकलता था. चर्च बंद कर दिए गए, सभाएं खुले मैदान में होती थीं, जिसमें केवल जरूरी लोग ही शामिल होते थे. लोग मरते रहे, ताकि दूसरे जिंदा रहें : इतने कठिन नियमों के बाद भी गांव में मौत का सिलसिला जारी रहा. क्योंकि संक्रमण गांव के भीतर ही था. संक्रमण का सबसे विकराल रूप अगस्त 1666 में दिखाई दिया. जब गांव में एक दिन के भीतर 5 से 6 मौते होने लगी. ऐसा कोई घर नहीं था, जहां किसी का शव ना हो. इतिहास में एक औरत का जिक्र है. जिसका नाम था एलिजाबेथ हैनकॉक.
इस महिला ने केवल 8 दिन के भीतर अपने पति और 6 छोटे मासूस बच्चों को दम तोड़ते देखा. उस औरत के दुख की कल्पना भी नहीं की जा सकती. कहा जाता है कि लोग इतना डरे हुए थे कि कोई उसकी मदद के लिए आगे नहीं आया. तब भी नहीं, जब वह अकेले कब्र खोदती थी. लोग गांव की पहाड़ी स्टोनी मिडल्टन पर खड़े होकर बस देखते रहते थे. एलिजाबेथ रोज अपने घर से एक लाश घसीट कर लेकर आती, रोज कब्र खोदती और उन्हें दफनाती. धीरे-धीरे संक्रमितों की संख्या इतनी ज्यादा हो गई कि गांव के अधिकांश परिवार ही खत्म हो गए. पर इन सबने धैर्य का साहस दिया और बीमारी को दूसरे गांव तक फैलने नहीं दिया. मोम्पेसन ने अपनी डायरी में लिखा है कि, वह दौर बहुत भयानक था पर ग्रामीणों का अपने ईश्वर में इतना ज्यादा विश्वास था कि वे मौत से घबराए नहीं. वे भागे नहीं, डटे रहे, ताकि बाकी दुनिया सुरक्षित रहे. हजारों मौत के बाद सितंबर-अक्टूबर में संक्रमण के मामले कम होने लगे और फिर 1 नवम्बर को यह बीमारी अचानक गायब हो गई. पर इस दौरान एयम ने अपने आधे से ज्यादा परिवार खो दिए. सरकारी दस्तावेजों की मानें तो एक साल के भीतर गांव के 76 परिवारों के 260 लोगों की मौत हुई थी. जबकि उस वक्त गांव की कुछ आबादी 800 से भी कम थी. महामारी का प्रकोप खत्म हो जाने के बाद भी एयम गांव के लोग खुद को क्वरांटाइन रखने के आदि हो चुके थे, या यूं कहें कि वे डरे हुए थे. कई सालों बाद लोगों ने खुद को बाहर निकालना शुरू किया और फिर धीरे-धीरे करके मुख्य गांव खाली हो गया. आज एयम एक पर्यटक स्थल बन चुका है. जहां लोग प्लेग के भयानक प्रकोप और दर्दनाक कहानियों को महसूस करते हैं. हम आज जिस क्वरांटाइन को जी रहे हैं यह उस क्वरांटाइन से लाख दर्ज बेहतर है जो 350 साल पहले एयम गांव के लोगों ने भोगा था. इसलिए खुद को कैदी ना समझें, बल्कि ये मानें कि आपका घर पर रहना दुनिया को सुरक्षित रखेगा.

हौजरानी प्रेस एन्क्लेव में बन सकता है फ्लाईओवर: 50 हजार से ज्यादा लोगों को जाम से मिलेगा छुटकारा

दिल्ली वालों को बड़ी राहत मिलने वाली है। साकेत मैक्स अस्पताल के बाहर पंडित त्रिलोक चंद शर्मा मार्ग पर लगने वाले जाम से जल्द मुक्ति मिलेगी। प...