Friday, August 30, 2019

मालवीय नगर थाने में तैनात SI ने फांसी लगाकर दी जान

(mtmediadelhi.blogspot.com) दिल्ली के मालवीय नगर थाने में तैनात रहे एएसआइ सतवीर यादव ने अपने पैतृक गांव खेड़ा खुरमपुर स्थित घर के कमरे में फांसी लगा आत्महत्या कर ली। परिजनों के मुताबिक एएसआइ कई माह से मानसिक तनाव में थे, उनका इलाज गुरुग्राम स्थित पारस अस्पताल में चल रहा था। इलाज के लिए वे 18 अगस्त को अवकाश लेकर घर आए थे। सतवीर की पत्नी राजवंती ने पुलिस को बताया कि चार पांच माह से उनके पति गुमसुम रहने लगे थे। दो माह से परेशानी कुछ अधिक हो गई थी। जिसके बाद उन्हें पारस अस्पताल में दिखाया गया था। शुक्रवार की सुबह सतवीर उठे और दिनचर्या के काम करने के बाद सुबह करीब 11 बजे अपने कमरे में चले गए। परिजनों ने  समझा वे सो रहे होंगे। कुछ देर बाद पत्नी कमरे में गई तो पति को पंखे से लटका देखा। शोर मचने पर पड़ोसी व बेटे की मदद से सतवीर के शरीर को नीचे उतारा और अस्पताल ले जाया गया। डॉक्टर ने देखते ही मृत घोषित कर दिया। सतवीर को एक बेटा और बेटी है। बेटी की शादी हो चुकी है। फरुखनगर थाना पुलिस मामले की जांच कर रही है।

Thursday, August 29, 2019

विश्व की सबसे सेफ सिटी में भारत के 2 बड़े शहर

अर्थशास्त्री खुफिया इकाई (Economist Intelligence Unit) की ताजा रिपोर्ट में विश्व के सबसे सुरक्षित शहरों में भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई को 45वां तो देश की राजधानी दिल्ली को 52वां स्थान दिया गया है। सुरक्षित शहरों की सूची में इन दोनों शहरों के अलावा भारत के किसी और शहर को जगह नहीं दी गई है। वहीं, रैंकिंग में पाकिस्तान के कराची शहर को 57 स्थान हासिल हुआ है तो बांग्लादेश की राजधानी ढाका 56वें नंबर पर है।  यह रैंकिंग अर्थशास्त्री खुफिया इकाई (Economist Intelligence Unit) की सेफ सिटीज इंडेक्स (Safe Cities Index) द्वारा जारी सूची में दी गई है। बृहस्पतिवार को जारी इस सूची के मुताबिक, विश्व के 10 शहरों में 6 एशिया-पैसिफिक के हैं, जिनमें जापान की राजधानी टोक्यो को सबसे सुरक्षित शहर का दर्जा हासिल है। वहीं ओसाका को तीसरा, एम्सटर्डम को चौथा, सिडनी को पांचवां और टोरंटो को छठा स्थान मिला है,जबकि ब्रिटेन की राजधानी लंदन को 14वां दर्ज हासिल हुआ है। सूची में कुआलालंपुर को 35वां, इस्तांबुल को 36वां और रूस की राजधानी मॉस्को को 37वां स्थान मिला है। वहीं, भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश की राजधानी ढाका को 56वां और पाकिस्तान के शहर कराची को 57वां स्थान प्राप्त हुआ है।
भारत के कई शहरों के लिए झटका: जहां सुरक्षित शहरों में भारत के सिर्फ मुंबई और दिल्ली में स्थान मिला है तो इसे झटके के तौर पर भी देखा जा रहा है। इस सूची में चंडीगढ़, बेंगलुरु जैसे शहरों को कोई स्थान नहीं मिलना एक झटका माना जा रहा है। दरअसल, सेफ सिटीज इंडेक्स में मुंबई और दिल्ली के अलावा और किसी शहर को स्थान ही नहीं दिया गया है।  इन पैमानों पर हुआ शहरों को चयन: सेफ सिटीज इंडेक्स के मुताबिक, सुरक्षित शहरों की सूची जारी करते समय स्वास्थ्य, बुनियादी सुविधाएं-ढांचा, सुरक्षा समेत कुल 57 पैमानों पर शहरों को परखा गया, फिर इन्हें रैंकिंग दी गई। फिर इस आधार पर विश्व के 60 शहरों को इस सूची में शुमार किया गया।

Wednesday, August 28, 2019

'भ्रष्टाचार से लोकतंत्र की बुनियाद कमज़ोर होती है'

भ्रष्टाचार लोकतांत्रिक संस्थानों को कमज़ोर करता है, आर्थिक विकास की रफ़्तार को धीमा करता है और सरकार में अस्थिरता पैदा करने में एक भूमिका अदा करता है. ये कहना है मिरेला डम्मर फ्रेही का जो संयुक्त राष्ट्र के मादक पदार्थों और अपराध कार्यालय (यूएनओडीसी) में सिविल सोसायटी टीम लीडर हैं. उन्होंने ऊटाह के साल्ट लेक सिटी में संयुक्त राष्ट्र की सिविल सोसायटी कान्फ्रेंस में मंगलवार को ये बात कही.

सुश्री डम्मर फ्रेही ने सरकारों के बीच और सिविल सोसायटी, निजी क्षेत्र और अंतरराष्ट्रीय संगठनों की सक्रिय भागीदारी के साथ और ज़्यादा आपसी सहयोग और क़ानूनी सहायता का भी आहवान किया. मंगलवार को यूएन न्यूज़ के साथ ख़ास बातचीत में संयुक्त राष्ट्र की वरिष्ठ अधिकारी फ्रेही ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि भ्रष्टाचार का मुक़ाबला करना टिकाऊ विकास लक्ष्यों के एजेंडा 2030 में भी अहम भूमिका में है. उनका कहना था, “भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ाई टिकाऊ विकास के लक्ष्य संख्या 16 में बहुत गहराई से नीहित है. इस लक्ष्य में सभी को न्याय की उपलब्धता सुनिश्चित करना और हर स्तर पर प्रभावशाली, जवाबदेह और समावेशी संस्थानों का निर्माण शामिल हैं.” उन्होंने बताया कि इस लक्ष्य के तहत एक उप-लक्ष्य है 6.15 जिसमें भ्रष्टाचार और रिश्वतख़ोरी को हर रूप में टिकाऊ तौर पर कम करने की बात कही गई है. संयुक्त राष्ट्र का मादक पदार्थों और अपराध पर कार्यालय संयुक्त राष्ट्र के भ्रष्टाचार विरोधी कन्वेंशन की देखरेख करता है. ये कन्वेंशन फिलहाल विश्व स्तर पर एक मात्र भ्रष्टाचार विरोधी दस्तावेज़ है. संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश बड़ी संख्या में इस कन्वेंशन के पक्ष हैं. इस लक्ष्य की कामयाबी को इस तरह मापा जाता है कि वार्षिक स्तर पर ऐसे लोगों और कारोबारी संस्थानों की संख्या में कितनी कमी आई जिन्होंने किसी सरकारी अधिकारी को या तो रिश्वत दी या फिर उनसे रिश्वत मांगी गई. डम्मर फ्रेही का कहना था, “भ्रष्टाचार की वैश्विक समस्या का मुक़ाबला करने के लिए एक व्यापक और सामूहिक रणनीति तैयार करने में इस कन्वेंशन के दूरगामी तरीक़े असाधारण साधन के तौर पर मौजूद हैं.” उन्होंने कहा, “जो देश इस कन्वेंशन के पक्ष हैं उनमें इस क्षेत्र में अच्छी प्रगति हुई है और उन देशों में भ्रष्टाचार विरोधी नियम व क़ानूनों में सुधार हुआ है.” डम्मर फ्रेही ने कहा कि इस क्षेत्र में प्रगति से भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ाई एक उच्च स्तर पर पहुँच गई है. साथ ही देशों के नियम व क़ानूनों और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग व तालमेल बढ़ाने में भी मदद मिली है. 2009 में सहयोगियों द्वारा प्रगति की समीक्षा करने की एक प्रक्रिया भी शुरू की गई थी जिससे भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ाई की रफ़्तार बढ़ाने में मदद मिली है और इस कन्वेंशन को देशों के घरेलू क़ानूनों में शामिल कराने और उन्हें लागू कराने का काम भी आगे बढ़ा है.

सिविल सोसायटी की भागीदारी बहुमूल्य : 2001 के बाद से ही यूएनओडीसी की टीमें सिविल सोसायटी संगठनों को राष्ट्रीय अधिकारियों के साथ काम करने में ट्रेनिंग दे रही हैं. साथ ही भ्रष्टाचार विरोधी आयोजनों, संपर्क अभियानों और अन्य गतिविधियों में हिस्सा लेने के लिए भी सिविल सोसायटी की मदद की जा रही है. सुश्री डम्मर फ्रेही ने कहा कि भ्रष्टाचार को रोकने और इसकी मौजूदगी के बारे में जागरूकता बढ़ाने के अभियान में सिविल सोसायटी, निजी क्षेत्र और नागरिकों को सक्रिय रूप से अपनी भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित करने की ज़रूरत है. साथ ही उन्होंने भ्रष्टाचार के कारणों और इसके ख़तरों की गंभीरता के बारे में जागरूक बनाने की ज़रूरत पर भी ज़ोर दिया. सुश्री डम्मर फ्रेही का कहना था, “भ्रष्टाचार का ख़ात्मा करने के लिए सिविल सोसायटी और अन्य ग़ैर-सरकारी साझीदार विशेष रूप से तीन क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं – एडवोकेसी, निगरानी और महारत हासिल करने के ज़रिए.” “भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ अभियान के ज़रिए सिविल सोसायटी इस समस्या की नब्ज़ को गहराई से समझने के लिए ज़रूरी जानकारी हासिल कर सकती है, और उसके ज़रिए आगे भी निगरानी बेहतर की जा सकती है. इस सबके ज़रिए फिर ये सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि मानकों और ज़िम्मेदारियों का स्तर बरक़रार रखा गया है. कमियों की निशानदेही की जा सकती है और फिर स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एडवोकेसी के लिए ठोस जानकारी और सबूत मुहैया कराए जा सकते हैं.” सुश्री डम्मर फ्रेहा ने कहा कि सिविल सोसायटी और भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ काम करने वाले सभी साझीदार जितनी विशेषज्ञता और महारत हासिल करेंगे उतना ही वो सरकारों को भ्रष्टाचार विरोधी कन्वेंशन और अन्य क़ानून लागू करने में मदद कर सकते हैं.


Tuesday, August 27, 2019

भारतीय पुलिस: 240 थानों में वाहन नहीं, 224 में फोन भी नहीं

भारत में पुलिस में काम करना आसान काम नहीं है. ख़ास तौर पर जब कोई निचले ओहदों पर काम कर रहा हो.यहाँ बात भारतीय पुलिस सेवा यानी 'आईपीएस' अधिकारियों की नहीं बल्कि उनके नीचे काम करने वाले आम पुलिसकर्मियों की हो रही है जिनकी ड्यूटी का न वक़्त निर्धारित है साप्ताहिक छुट्टी. ये बात 'स्टेटस ऑफ़ पोलिसिंग इन इंडिया 2019' नामक रिपोर्ट में सामने आई है जिसे लोकनीति, कॉमन कॉज और 'सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ़ डेवलपिंग सोसाइटीज' यानी सीएसडीएस ने गहन सर्वेक्षण के बाद तैयार किया है. सर्वेक्षण में पाया गया है कि कई अपराध सिर्फ़ इसलिए दर्ज नहीं हो रहे हैं क्योंकि पुलिस के पास जाते हुए लोग डरते हैं. अगर नाबालिग़ बच्चे किसी अपराध में पकड़े जाते हैं तो उनके साथ वयस्क अपराधियों जैसा सुलूक किया जाता है. उसी तरह महिलाओं के प्रति पुलिसवालों में संवेदनशीलता की कमी के चलते मामले दर्ज नहीं हो पा रहे हैं. इस रिपोर्ट में कई ऐसे पहलुओं पर भी चर्चा की गई है जिनकी वजह से पुलिसकर्मियों को मानसिक और शारीरिक तनाव झेलना पड़ रहा है. रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिसकर्मियों की ड्यूटी का समय निर्धारित नहीं होने की वजह से उन पर हमेशा तनाव रहता है. रिपोर्ट में पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यक समुदाय से संबंध रखने वाले पुलिसकर्मियों के बारे में कहा गया है कि उन्हें अपने ही सहकर्मियों से भेदभाव का सामना करना पड़ता है.
सिर्फ़ 6 प्रतिशत पुलिसवाले ऐसे हैं जिन्हे कार्यकाल के दौरान कोई प्रशिक्षण मिला है. बाक़ी के पुलिस वाले ऐसे हैं जिन्होंने सिर्फ़ भर्ती के वक़्त ही प्रशिक्षण मिला था. वहीं वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को समय-समय पर प्रशिक्षण दिया जाता है. देश के 22 राज्यों में 70 थाने ऐसे हैं जहाँ वायरलेस उपलब्ध नहीं हैं जबकि 224 ऐसे हैं जहाँ फ़ोन की व्यवस्था भी नहीं है. 24 ऐसे हैं जहाँ न फ़ोन है न वायरलेस. लगभग 240 थाने ऐसे भी हैं जहाँ कोई वाहन उपलब्ध नहीं है. चूंकि 'क़ानून और व्यवस्था' राज्य सरकारों की ज़िम्मेदारी है इसलिए हर राज्य में पुलिसकर्मियों के सामने अलग-अलग तरह की समस्याएं आती हैं. और सबसे महत्वपूर्ण बात जो रिपोर्ट में दर्ज की गई है वो है कि ये पुलिसकर्मी इसके ख़िलाफ़ आवाज़ भी नहीं उठा सकते हैं. वर्ष 2015 के मई महीने में बिहार की गृह रक्षा वाहिनी के 53 हज़ार कर्मियों ने अनिश्चितकालीन हड़ताल की थी. वहीं साल 2016 के जून महीने में कर्नाटक के पुलिसकर्मियों ने कम वेतन, ड्यूटी का समय तय ना होने, साप्ताहिक छुट्टी नहीं मिलने को लेकर आंदोलन की धमकी दी थी.
सर्वेक्षण के आधार पर तैयार की गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इस तनाव का असर पुलिसकर्मियों के रवैये पर भी पड़ रहा है. दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में इस रिपोर्ट को औपचारिक रूप से जारी किया गया, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस चेलमेश्वर के अलावा उत्तर प्रदेश पुलिस और केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल के पूर्व महानिदेशक प्रकाश सिंह भी मौजूद थे. इसके अलावा सामजिक कार्यकर्ता वृंदा ग्रोवर और अरुणा रॉय भी थीं. जब-जब पुलिस बल में सुधार की बात आती है तो प्रकाश सिंह का नाम आता है, जिन्होंने इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था. वर्ष 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने सुधारों को लेकर एक अहम फ़ैसला सुनाया था. बीबीसी से बात करते हुए प्रकाश सिंह का कहना था कि भारत में पुलिस बल की जो संरचना है या फिर जो अनुसंधान का तरीक़ा है वो औपनिवेशिक है.
हलांकि वो कहते हैं कि सुधारों की बात नई नहीं है. वर्ष 1902 में लार्ड कर्ज़न ने भी सुधारों की पेशकश की थी. उनका मानना है कि क़ानून के पालन की बजाय पुलिसकर्मी हुक्मरानों के आदेश का पालन करने में ही अपनी बेहतरी समझते हैं. 'सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ़ डेवलपिंग सोसाइटीज' यानी सीएसडीएस और 'कॉमन कॉज' नमक ग़ैर सरकारी संस्था की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि महाराष्ट्र ही एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ पुलिसकर्मियों को साप्ताहिक अवकाश मिल रहा है. ओडिशा और छत्तीसगढ़ के 90 प्रतिशत पुलिसकर्मी ऐसे हैं जिन्होंने शोधकर्ताओं को बताया कि उन्हें एक दिन भी साप्ताहिक अवकाश नहीं मिलता और वो लगातार काम करने को मजबूर हैं.
काम करने के घंटों की अगर बात की जाए तो पूरे भारत में औसतन एक पुलिसकर्मी एक साथ 14 घंटे काम करने को मजबूर है जबकि पंजाब और ओडिशा में पुलिसकर्मियों ने बताया है कि वो एक साथ 17 से 18 घंटों तक काम कर रहे हैं. इसमें अपने वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के लिए घरेलू काम करने की भी शिकायत शोधकर्ताओं को मिली है. ये तो बात मानसिक तनाव और ड्यूटी के घंटों के निर्धारण नहीं होने की बात, जहाँ तक अपराध अनुसंधान और प्रशिक्षण का मामला है तो भारत इसमें भी काफ़ी पीछे है. रिपोर्ट में राजस्थान, ओडिशा और उत्तराखंड को 'वर्स्ट परफ़ॉर्मिंग स्टेट्स' के रूप में चिह्नित किया गया है.पश्चिम बंगाल, गुजरात और पंजाब पूरे देश में सबसे बेहतर हैं. चाहे वो बेहतर संरचना हो या फिर बेहतर संसाधन और आधुनिकीकरण की बात हो. प्रकाश सिंह ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया मगर सरकार ने समय-समय पर पुलिस सुधारों को लेकर कमिटियां और आयोगों का गठन किया था. इसमें राष्ट्रीय पुलिस आयोग, राज्य पुलिस आयोग के अलावा पुलिस प्रशिक्षण पर गोरे कमिटी, रिबेरो कमेटी पद्मनाभैया कमिटी और मालीमठ कमिटी शामिल हैं. लेकिन इन सब के बावजूद जो सुधार पुलिस के अमल में दिखने चाहिए थे वो नहीं दिख पाए. जस्टिस चेलमेश्वर कहते हैं कि 'एक पुलिसकर्मी को कई काम करने पड़ते हैं. जैसे किसी विशिष्ठ व्यक्ति के सुरक्षा ही देखना, प्रदर्शनों से भी निपटना, हिंसा से निपटना और तब जाकर अनुसंधान भी उसके ज़िम्मे आता है.'
अनुसंधानकर्ता पुलिस अधिकारियों को प्रशिक्षण के अभाव में पता ही नहीं है कि अदालत में मामला कैसे पक्ष किया जाए या प्राथमिकी किस तरह दर्ज की जाए. वैसे रिपोर्ट में इस बात पर भी चिंता व्यक्त की गई है कि अपराध के बदलते तरीक़ों से निपटने के लिए भारत उतना सक्षम है या नहीं जैसे आर्थिक अपराध, डेटा की चोरी, साइबर अपराध की भी चर्चा की गई है. पुलिस विभाग को मुहैया कराए गए संसाधन हों या पुलिस आधुनिकीकरण के मुद्दे पर भी भारत काफ़ी पीछे ही है. लेकिन सबसे बड़ी चुनौती है पुलिस बल की कमी. कई राज्य ऐसे हैं जहाँ पुलिस बल में रिक्तियां तो हैं मगर उन पर बहाली नहीं हुई है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, एक लाख की जनसंख्या पर 222 पुलिसकर्मी होने चाहिए जबकि भारत में इसका अनुपात सिर्फ 192 प्रति एक लाख व्यक्ति है. रिपोर्ट में पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो की 2007 से लेकर 2016 तक के डेटा का भी उल्लेख किया गया है. नगालैंड को छोड़कर बाक़ी के सभी राज्यों में पुलिस बल की भारी कमी है, जिसमें उत्तर प्रदेश का हाल सबसे ख़राब है. रिपोर्ट में उन पदों का भी ज़िक्र किया गया है जो पिछड़े और अति पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षित किए गए हैं और उन पर बहालियां नहीं हो रहीं हैं. उसी तरह अल्पसंख्यकों का अनुपात भी पुलिस बल में काफ़ी कम है 'स्टेटस ऑफ़ पोलिसिंग इन इंडिया 2019' यानी 'एसआईपीआर' की रिपोर्ट के निचोड़ में उल्लेख किया गया है कि आम नागरिकों के मन में पुलिस का ख़ौफ़ सबसे ज़्यादा है. बीबीसी संवाददाता, नई दिल्ली

अब ATM से ₹10,000 से ज्यादा कैश निकालने पर भरना होगा OTP

आरबीआई के निर्देश के बाद अब एटीएम फ्रॉड रोकने के लिए बैंकों ने कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। केनरा बैंक ने कार्ड के जरिए 10,000 रुपये से ज्यादा की रकम एटीएम से निकालने पर पिन नंबर के साथ वन टाइम पासवर्ड (ओटीपी) जरूरी कर दिया है। इसका मतलब है कि अगर केनरा बैंक का कोई भी ग्राहक एटीएम से 10, 000 रुपये से ज्यादा निकालेगा तो उसे एटीएम पिन नंबर के साथ ओटीपी भी भरना होगा।  सूत्रों के अनुसार, अब अन्य बैंक भी केनरा बैंक को फॉलो कर सकते हैं और एटीएम से 10,000 रुपये से ज्यादा कैश निकालने पर ओटीपी अनिवार्य कर सकते हैं। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, आरबीआई के निर्देश का सभी बैंकों को पालन करना होगा। आरबीआई ने स्पष्ट रूप से कहा है कि एटीएम फ्रॉड रोकना होगा। एटीएम फ्रॉड रात 11 बजे से सुबह 6 तक ज्यादा होते हैं। 

इससे पहले एटीएम धोखाधड़ी को रोकने के लिए दिल्ली स्टेट लेवल बैंकर्स कमिटी (SLBC) ने कुछ उपाय सुझाए थे। कमिटी ने 2 एटीएम ट्रांजैक्शन के बीच में 6 से 12 घंटे का समय रखने का सुझाव दिया था। साल 2018-19 के दौरान दिल्ली में 179 एटीएम फ्रॉड केस दर्ज किए गए। इस मामले में दिल्ली, महाराष्ट्र से (233 एटीएम धोखाधड़ी के मामले) केवल कुछ कदम ही दूर है। हाल के महीनों में कार्ड की क्लोनिंग के मामले भी सामने आए हैं जिसमें बड़ी संख्या में विदेशी नागरिक शामिल थे। साल 2018-19 में देशभर में फ्रॉड के मामले बढ़कर 980 हो गए, इससे पहले साल इन मामलों की संख्या 911 थी। 

Monday, August 26, 2019

बटला हाउस के मुरादी रोड पिछले 6 महीने से बहुत बुरी हालत

ओखला विधानसभा के बटला हाउस के मुरादी रोड पिछले 6 महीने से बहुत बुरी हालत में है, स्थानिय लोग प्रशासन की उदासीनता से परेशान है, रोड टूटा हुआ व गड्ढों में पानी भरा है लोग चोटिल हो रहे हैं, लोग कहते कहते थक गय विधायक सुनते ही नही, सम्बंधित अधिकारी इस ओर ध्यान दे,

Saturday, August 24, 2019

बीजेपी के लिए ‘अशुभ’ हुआ अगस्त, अटल से लेकर अरुण तक का निधन

पूर्व वित्तमंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली का शनिवार को 66 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. ये तारीख है 23 अगस्त. इसी के साथ ये बात भी चल निकली है कि बीजेपी के लिए अगस्त का महीना काफी खराब रहा है. पार्टी के अनेक वरिष्ठ नेताओं का निधन इस महीने में हुआ है. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का निधन पिछले साल की 16 अगस्त को हुआ था. बीजेपी की राजनीति में सबसे बड़े वट वृक्ष की हैसियत रखने वाले अटल के निधन से अशुभ अगस्त की शुरुआत हुई थी. 2019 में ये आंकड़ा बढ़ गया. इस साल का अगस्त भी बीजेपी के लिए अशुभ रहा. 6 अगस्त को बीजेपी का एक और स्तंभ रहीं पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने संसार से विदा ली. उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में जन्मे और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे बीजेपी नेता बाबूलाल गौर का निधन 21 अगस्त 2019 को हो गया था. इतने नेताओं के बाद अब अरुण जेटली का जाना, ऐसे में अगस्त के अशुभ होने की बात बीजेपी के लिए उठना स्वाभाविक है.

अमरोहाः दर्द बढता गया ज्यों ज्यों दवा करी


देर से बरस कर रुकने का नाम न  लेने से नगर के लोग खासकर दुकानदार बरसात से परेशान हैं। घनी आबादी वाला यह पुराना शहर आजकल बरसाती कहर से पानी-पानी हो चुका है। आधी से ज्यादा आबादी सड़कों पर घरों के आगे जमा गंदे पानी और बदबू से परेशान है। लोगों को घरों में कैद होकर रहना पड़ रहा है तथा कई घरों में इंसान और बकरियां एक साथ रहने को मजबूर हैं। बार-बार पालिकाध्यक्ष बदलने का भी कोई लाभ नहीं हुआ। नगर की सबसे बड़ी समस्या जलभराव का निदान नहीं हो पाता बल्कि हर बार पहले से बदतर हालात पैदा होते जाते हैं। यहां की जलनिकासी को वर्षों से करोड़ों की योजनायें बनीं, धन भी आया, काम भी हुआ, मगर 'दर्द बढ़ता ही गया, ज्यों-ज्यों दवा की’ कहावत दोहरायी जाती रही।
जिले के बड़े से बड़े नेता, बड़े-बड़े समाजसुधारक (भोंपूबाज) शायर और बुद्धिजीवी अमरोहा शहर में आबाद हैं लेकिन फिर भी शहरी बरबादी की कहानी लिखने वाली जलभराव की समस्या का निदान कोई नहीं खोज पाया। हर साल बरसात आने पर कोई मौसमी समाजसेवी एक नदी की खुदाई जरुर शुरु कराने में जुटते हैं और फिर जल्दी ही खामोश भी हो जाते हैं। यहां सदाबहार नेता महबूब अली, चौ. चन्द्रपाल सिंह, डॉ. हरि सिंह ढिल्लों, जैन परिवार, टंडन परिवार, हकीत सिराजउद्दीन हाशमी, हरि सिंह मौर्य, चौ. जयदेव सिंह, आदि नेता और समाजसेवियों की लंबी फेहरिश्त है लेकिन आपसी तालमेल तथा खुदगर्जी उन्हें इस दिशा में आगे नहीं बढ़ने देती।


Friday, August 23, 2019

अगर पैसे नहीं हैं तो भी डॉक्टर को करना होगा इलाज, ये रहा कानून

अगर आप किसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं और इलाज के लिए किसी अस्पताल या क्लीनिक जाते हैं, तो डॉक्टर की लीगल ड्यूटी है कि वो आपका पूरी सतर्कता के साथ इलाज करे. अगर डॉक्टर आपका इलाज करने से इनकार करता है, तो आप कानून का सहारा लेकर उसको सबक सिखा सकते हैं. संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले मौलिक अधिकार में इलाज पाने का अधिकार भी शामिल है. परमानंद कटारा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कोई भी डॉक्टर या अस्पताल गंभीर रूप से घायल मरीज का इलाज करने से मना नहीं कर सकता है. डॉक्टर और अस्पताल की लीगल ड्यूटी है कि वो गंभीर रूप से घायल या गंभीर बीमारी से जूझ रहे मरीज को इमरजेंसी मेडिकल केयर उपलब्ध कराएं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर मरीज के पास पैसे भी नहीं हैं तो भी डॉक्टर या अस्पताल उसका इलाज करने में न तो किसी तरह की देरी करेंगे और न ही इलाज करने से इनकार करेंगे. डॉक्टर की पहली प्राथमिकता मरीज का तुरंत इलाज करने की होनी चाहिए, ताकि मरीज को बचाया जा सके. इसके अलावा इंडियन मेडिकल काउंसिल के प्रोफेशनल कंडक्ट रेगुलेशन के तहत भी डॉक्टर को मरीज का इलाज करना ही होगा. अगर वो किसी मरीज का इलाज करने से इनकार करता है, तो यह प्रोफेशनल मिसकंडक्ट माना जाएगा और उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है.
दंड प्रक्रिया संहिता यानी सीआरपीसी की धारा 357C के तहत डॉक्टर और अस्पताल को एसिड हमले की शिकार महिला या पुरुष का इमरजेंसी में फ्री इलाज करना होगा. इसके अलावा रेप पीड़िता का इलाज करने के लिए भी डॉक्टर और अस्पताल कानूनी तौर पर बाउंड हैं. कोई भी सरकारी या प्राइवेट डॉक्टर या अस्पताल एसिड हमले की पीड़ित और रेप पीड़िता का आपातकालीन इलाज करने से इनकार नहीं कर सकते हैं. अगर कोई डॉक्टर या अस्पताल एसिड और रेप पीड़िता का आपातकालीन स्थिति में फ्री में इलाज करने से मना करता है, तो उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की धारा 166B के तहत कार्रवाई की जा सकती है. इसके तहत डॉक्टर को एक साल तक की जेल की सजा हो सकती है. साथ ही जुर्माना भरना पड़ सकता है.

Monday, August 19, 2019

जानें पेमेंट ऐप से ठगी से जुड़ी हर बात, ताकि कहीं लेने के देने न पड़ जाएं

गूगल पे, फोनपे, भीम ऐप आदि का चलन डिजिटल लेन-देन के लिए अब काफी बढ़ गया है।तमाम समझदार लोग भी हैं जो पेमंट ऐप पर आए मेसेज को ध्यान से नहीं पढ़ते और जल्दी से Pay वाली जगह पर टैप पर देते हैं और धोखाधड़ी का शिकार हो जाते हैं। आइए जानें, कैसे होती है ठगी, कैसे बच सकते हैं और पैसे वापस पाने की कोशिश कैसे की जा सकती है।

अगर आप भीम, गूगल पे, फोनपे, पेटीएम आदि पेमंट ऐप का प्रयोग करते हैं तो सावधान हो जाइए। इन दिनों इस प्लैटफॉर्म पर खूब ठगी हो रही है। ठगी से बचने के बारे में एक्सपर्ट्स से जानकारी लेकर बता रहे हैं राजेश भारती...  विनय ने एक वेबसाइट पर अपना पुराना मोबाइल बेचने के लिए लिस्ट किया। कुछ दिन बाद उनके पास एक कॉल आई। कॉल करने वाले शख्स ने उस मोबाइल को खरीदने की इच्छा जताई। सौदा 10 हजार रुपये में तय हो गया। मोबाइल खरीदने वाले शख्स ने कहा कि वह 5 हजार रुपये टोकन मनी के रूप में गूगल पे ऐप के जरिए भेज रहा है और बचे पैसे फोन लेते समय दे देगा। उस शख्स ने विनय के गूगल पे अकाउंट पर एक मेसेज भेजा जिसमें 5 हजार रुपये की बात थी। विनय ने उस मेसेज को गौर से नहीं देखा और Pay पर क्लिक कर दिया। विनय को उनके अकाउंट से 5 हजार रुपये कटने का मेसेज आया तो उनका सिर चकरा गया। उन्हें पता चला कि वह ठगी का शिकार हो गए हैं। जाहिर है, पेमंट ऐप पर ठगे जाने वाले विनय अकेले नहीं हैं। 

कौन बनता है शिकार : इस प्रकार की ठगी के शिकार वे लोग होते हैं जो पेमंट ऐप जैसे- गूगल पे, फोनपे, भीम ऐप आदि का प्रयोग करते हैं। डिजिटल लेन-देन के लिए अब इन ऐप का चलन काफी हो गया है। साथ ही, कुछ लोग शौक या फैशन के तौर पर भी इन ऐप्स का प्रयोग करने लगे हैं, जबकि उन्हें इन ऐप को सही तरीके से इस्तेमाल करना नहीं आता। और तो और, तमाम समझदार लोग भी हैं जो पेमंट ऐप पर आए मेसेज को ध्यान से नहीं पढ़ते और जल्दी से Pay वाली जगह पर टैप पर देते हैं। 


कितने का चूना : हर पेमंट ऐप बैंक अकाउंट से जुड़ा होता है। पेटीएम, ओला, ऐमजॉन जैसी कुछ कंपनियों के डिजिटल वॉलिट सीधे भी काम करते हैं। साथ ही, हर ऐप के लिए केवाईसी कराना जरूरी होता है। इसके बाद कोई भी पेमंट ऐप यूजर एक दिन में 1 लाख रुपये तक का लेन-देन कर सकता है। ऐसे में हो सकता है कि जालसाज आपके पेमंट ऐप से एक दिन में ही 1 लाख रुपये उड़ा ले। 



पेमंट ऐप की सुरक्षा : हर पेमंट ऐप की दो तरह से सुरक्षा की जाती है। पहला MPIN और दूसरी UPI PIN। MPIN चार या छह अंकों का होता है। इस पिन के बिना पेमंट ऐप को नहीं खोला जा सकता। कुछ ऐप में यह पिन जरूरी तो कुछ में वैकल्पिक होता है। वहीं किसी से पैसा मंगाना है तो ऐप को खोलने के लिए MPIN का प्रयोग करना होगा। UPI PIN भी चार या छह अंकों का होता है। UPI PIN के बिना न तो किसी को पैसा भेजा जा सकता है और न ही अकाउंट का बैलेंस चेक किया जा सकता है। हालांकि पैसा लेने के लिए किसी भी प्रकार के पिन की जरूरत नहीं पड़ती। पैसे देने यानी पे करने के लिए इसकी जरूरत होती है। 

ऐसे करते हैं ठगी : शिकार ढूंढनाः जालसाज ओएलएक्स जैसी वेबसाइट पर अपना शिकार ढूंढते हैं। ये जालसाज उस शख्स को फोन करते हैं और कुछ महंगे सामान जैसे मोबाइल, लैपटॉप, वीइकल, फर्नीचर आदि खरीदने का नाटक रचते हैं।  दाम तय करना : बात करते हुए जालसाज सामान बेच रहे शख्स से मोलभाव कर एक दाम तय करता है। जालसाज 50% रकम शुरू में देने की बात कहता है और बाकी की रकम सामान खरीदने पर। ऐसे में सामान बेचने वाला शख्स भी लालच में आ जाता है।  नंबर मांगना : सामान की कीमत तय होने पर जालसाज पेमंट ऐप के जरिए ही भेजने की बात कहता है। फिर पेमंट ऐप का नाम और उससे जुड़ा मोबाइल नंबर मांगता है। सामान बेचने वाला शख्स जालसाजों को पेमंट ऐप से जुड़ा मोबाइल नंबर दे देता है। 


Request Money : चूंकि डील पक्की हो चुकी होती है इसलिए ये जालसाज फोन पर बात करने के दौरान टोकन मनी की रकम अपने पेमंट ऐप से पैसे भेजने की जगह पैसे लेने यानी Request Money का ऑप्शन भेज देते हैं और सामने वाले शख्स से कहते हैं कि रकम भेज दी है, प्लीज आप उसे ओके कर दीजिए और UPI PIN डालकर बैलेंस चेक कर लीजिए।  UPI PIN : बातचीत के दौरान सामान बेचने वाला व्यक्ति मेसेज को ध्यान से पढ़ नहीं पाता। वह बस रकम देखता है और Pay को ओके समझकर उस पर टैप पर देता है। साथ ही बैलेंस चेक करने के लिए UPI PIN डाल देता है। ऐसा करते ही उसके पेमंट ऐप से पैसे कट जाते हैं और जालसाज के अकाउंट में आ जाते हैं। 

फोन बंद करना: फोन डिस्कनेक्ट होने के बाद उस शख्स को पता चलता है कि उसके पेमंट ऐप से जालसाज ने पैसे अपने अकाउंट में ट्रांसफर करा लिए हैं। जब जालसाज को फिर से फोन किया जाता है तो वह फोन नहीं उठाता या उसका मोबाइल नंबर बंद आता है।  इन बातों का रखें ध्यान : पैसे भेजने पर :अगर आप किसी शख्स को पेमंट ऐप के जरिए पैसे भेज रहे हैं, तो इसके लिए MPIN और UPI PIN की जरूरत होती है। बिना UPI PIN के किसी को भी पैसा नहीं भेजा जा सकता।  ऐसे समझें: यह ठीक उसी तरह है जैसे आप अपने बैंक में जाकर पैसे निकालते हैं। इसके लिए पैसे निकालने वाली स्लिप या चेक पर आपका साइन होना जरूरी है। UPI PIN ही एक तरह से आपका साइन है। 


पैसे लेने पर : अगर कोई आपको पेमेंट ऐप के जरिए पैसे भेज रहा है तो आपको पेमेंट ऐप पर कहीं टैप करने की जरूरत नहीं है और न ही कोई पिन डालने की।  ऐसे समझें: यह ठीक उसी तरह है जैसे कोई भी आपके बैंक अकाउंट में पैसे जमा करा सकता है। इसके लिए पैसे जमा करने वाली स्लिप पर आपका साइन होना जरूरी नहीं है।  पैसे मांगने पर : यह पेमंट ऐप में Request के नाम से होता है। इसका अर्थ है कि जिस शख्स ने यह मेसेज भेजा है, वह आपसे पैसे मांगना चाहता है। अगर आपने Pay पर क्लिक करके UPI PIN डाल दिया तो आपके अकाउंट से पैसे उसके अकाउंट में चले जाएंगे।  सतर्क रहना जरूरी : बैंक जिम्मेदार नहीं : पेमंट ऐप का प्रयोग करते समय सतर्क रहना बहुत जरूरी है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के अनुसार, अगर पेमंट ऐप यूजर UPI PIN डाल देता है और उसके बाद उसके अकाउंट से रकम कट जाती है तो ऐसे में बैंक जिम्मेदार नहीं होता। ऐसे में पेमंट ऐप के यूजर को ही सतर्क रहना होगा। 


अकाउंट में कम रखें रकम : अधिकतर पेमंट ऐप यूजर के बैंक अकाउंट से जुड़े होते हैं या वे उस ऐप के वॉलेट में पैसे रखते हैं। अगर किसी का एक ही बैंक अकाउंट है और उसमें बड़ी रकम है तो ऐसे में ठगी होने पर बड़ी रकम अकाउंट से निकाली जा सकती है। ऐसे में बेहतर होगा कि एक नया बैंक अकाउंट खुलवाएं और उसमें 10-15 हजार से ज्यादा रकम न रखें। इसी अकाउंट को पेमंट ऐप से कनेक्ट रखें। अगर किसी कारणवश पेमंट ऐप से ठगी होती है तो बड़ी रकम का नुकसान नहीं होगा।  बैंक का ऐप करें प्रयोग : ज्यादातर पेमंट ऐप थर्ड पार्टी होते हैं यानी ये बैंक के ऑफिशल ऐप नहीं होते। आज के समय में काफी बैंकों जैसे SBI, HDFC आदि के भी पेमंट ऐप हैं। बेहतर होगा कि बैंकों के ऐप का ही प्रयोग करें ताकि किसी भी प्रकार का गलत लेन-देन होने पर बैंक से सीधे शिकायत की जा सके। 



इसलिए पकड़ में नहीं आते जालसाज : दरअसल जालसाज फर्जी डॉक्यूमेंट्स के जरिए निजी या छोटे बैंकों में अकाउंट खुलवा लेते हैं। साथ ही फर्जी डॉक्यूमेंट्स से सिम भी खरीद लेते हैं। फिर वे अपने मोबाइल नंबर और बैंक अकाउंट से पेमंट ऐप पर रजिस्टर करा लेते हैं और केवाईसी भी पूरी करा लेते हैं। इसके बाद ये जालसाज लोगों की रकम अपने बैंक अकाउंट में ट्रांसफर करा लेते हैं। इस रकम को वे या तो एटीएम कार्ड के जरिए निकाल लेते हैं या शॉपिंग कर लेते हैं। चूंकि इनके डॉक्यूमेंट्स फर्जी होते हैं जिनके आधार पर बैंक अकाउंट से लेकर मोबाइल नंबर तक लिया होता है, इसलिए इन्हें पकड़ पाना मुश्किल होता है। 

जालसाजों से ऐसे कर सकते हैं बचाव 

BHIM : UPI के जरिए पैसे भेजने या लेने में BHIM ऐप का इस्तेमाल खूब किया जाता है। जिस शख्स से पैसों की मांग की जाती है उसे Request भेजी जाती है। Request में वह रकम दी होती है, जिसे वह शख्स मंगाना चाहता है।  Approve  अगर आप Request भेजने वाले शख्स को जानते हैं और पैसे देना चाहते हैं तो APPROVE पर टैप कर दें। APPROVE पर क्लिक करते ही नीचे की ओर Pay लिखा दिखाई देगा। इस पर टैप करने के बाद आपको UPI PIN डालना होगा। यह पिन डालते ही आपके अकाउंट से पैसे कट जाएंगे और Request भेजने वाले के अकाउंट में पहुंच जाएंगे।  Decline  वहीं अगर आप Request भेजने वाले को नहीं जानते या पैसे देना नहीं चाहते तो DECLINE पर टैप कर दें। इसके बाद आपको दो ऑप्शन DECLINE और Decline+Block Sender दिखाई देंगे। अगर आप DECLINE पर टैप करेंगे तो ट्रांजेक्शन कैंसिल हो जाएगा और Decline+Block Sender पर टैप करने पर ट्रांजेक्शन कैंसिल के साथ Request भेजने वाला अकाउंट ब्लॉक भी हो जाएगा।  निष्कर्ष: सामने वाला शख्स कौन है और ट्रांजेक्शन किस प्रकार का है, यह देखकर ही UPI PIN इस्तेमाल करें। 


PayTm : पेटीएम के जरिए जब भी कोई पैसों की मांग करता है तो वह शख्स पैसे मांगने वाले को QR कोड भेजता है। QR कोड के बीच में वह रकम होती है जितने की मांग की जाती है। साथ ही, QR कोड के साथ पेटीएम का लिंक भी होता है। इस लिंक को जालसाज आपको मेसेज, फेसबुक मेसेंजर, वॉट्सऐप, ई-मेल या किसी अन्य तरीके से भेज सकता है।  क्या करें, क्या न करें : अगर आप QR कोड भेजने वाले को जानते हैं और उसे पैसे देना चाहते हैं तो उस लिंक पर क्लिक करके Paytm अकाउंट ओपन करें।  निष्कर्ष : R कोड कौन भेज रहा है, यह अच्छी तरह जाने बिना लिंक को टैप न करें। 

PhonePe : डिजिटल पेमंट के लिए फोनपे का इस्तेमाल भी काफी अधिक हो रहा है। पैसे मांगने वाला जालसाज Request वाले ऑप्शन का प्रयोग करता है और उसे जो रकम मंगानी होती है उसे भरकर आपको भेज देता है।  क्या करें, क्या न करें : मेसेज मिलने पर आपके पास PAY, LATER और DECLINE का विकल्प आता है। अगर आप पैसे देना चाहते हैं तो PAY पर टैप करें। इसके बाद अपना बैंक अकाउंट सिलेक्ट करें। अब आपको UPI PIN डालना होगा। यह पिन डालते ही रकम आपके अकाउंट से कट जाएगी। वहीं अगर आप पैसा नहीं भेजना चाहते तो DECLINE पर टैप पर दें। 

निष्कर्ष: PAY पर टैप करने की हड़बड़ी न दिखाएं। 



Google Pay : पहले इस पेमंट ऐप का नाम Tez था। कहीं भी पेमंट करने के लिए लोग इस ऐप का भी प्रयोग करते हैं। जब भी इस ऐप के जरिए पैसों की Request भेजी जाती है तो ऐप में ऊपर की ओर ही पैसे मांगने वाले का फोटो (अगर है तो) या नाम के पहले अक्षर (अंग्रेजी के) दिखने लगते हैं। इस पर क्लिक करने के बाद मांगी गई रकम दिखाई देती है। इसके ठीक नीचे Pay और Decline लिखा होता है।  क्या करें, क्या न करें : अगर आप पैसे देना चाहते हैं तो Pay पर टैप करना होगा। इसके बाद अपना बैंक अकाउंट सिलेक्ट करना होगा और UPI PIN डालना होगा। यह पिन डालते ही रकम आपके अकाउंट से कट जाएगी। वहीं अगर आप पैसा नहीं भेजना चाहते तो Decline पर टैप पर दें।  निष्कर्ष: रिक्वेस्ट करने वाले के नाम पर जाएं और फोटो पर भी ध्यान दें, जो उसके अकाउंट से जुड़ी हुई है। अगर जरा-सा भी शक हो तो पैसे मांगने वाले से फोन पर बात करें। 



कोशिश करें, शायद रकम वापस मिल जाए : अगर आपके साथ इस तरह की कोई ठगी हो गई है तो रकम वापस मिलना मुश्किल होता है। फिर भी बेहतर है कि आप कुछ कदम उठाएं। हो सकता है कि जालसाज पकड़ में आ जाए और आपकी रकम वापस मिल जाए। इसके लिए ये काम करें।  -जालसाज का फोन नंबर जिस पर आपकी बात हुई थी, उसे अपने पास संभालकर रखें। साथ ही ट्रांजेक्शन आईडी और उसका स्क्रीन शॉट भी ले लें। ये सबूत के तौर पर काम आएंगे।  -नजदीकी क्राइम ब्रांच में सबूत देकर शिकायत दर्ज कराएं और उसकी एक कॉपी जरूर ले लें।  -जिस पेमंट ऐप के जरिए ठगी हुई है, उस पर शिकायत दर्ज कराएं। अगर आप कॉल करके शिकायत दर्ज करा रहे हैं तो उस ऐप की वेबसाइट से ही नंबर लें। अगर आप दूसरे माध्यमों से कंपनी का नंबर लेते हैं तो हो सकता है कि आपको और ज्यादा रकम से हाथ धोना पड़ जाए क्योंकि फर्जी कस्टमर केयर का ऑनलाइन खेल भी आजकल खूब चल रहा है। इसमें गूगल पर साइट बनाकर नामी कंपनियों के कस्टमर केयर के गलत नंबर लिखे जाते हैं। आप जब गूगल सर्च में इन नंबरों को ढूंढकर फोन करते हैं तो वे जालसाजों का नंबर निकलते हैं और आपको पता भी नहीं चलता। वे आपसे जरूरी सूचनाएं, मसलन PIN, जन्मतिथि आदि ले लेते हैं और अकाउंट खाली कर देते हैं।  -पुलिस की जांच-पड़ताल में अगर आरोपी पकड़ में आ जाता है तो हो सकता है कि उससे ठगी गई रकम वापस मिल जाए। 



गूगल सर्च से न लें कस्टमर केयर नंबर : हाल में जोमैटो के एक यूजर ने ऑर्डर कैंसिल करने और उसका रिफंड लेने के लिए लेकर कस्टमर केयर से बात करनी चाही। यूजर ने गूगल के जरिए जोमैटो का कस्टमर केयर नंबर लिया और फोन लगाया। वहां से कस्टमर से कहा गया कि वह Anydesk ऐप डाउनलोड करे। वहां बताई गईं डिटेल्स भरने के बाद एक कोड आएगा वह बता दे। पैसे उनके अकाउंट में आ जाएंगे। कुछ देर बाद उस यूजर के अकाउंट से पैसे निकल गए।  Anydesk ऐप के इस्तेमाल को लेकर रिजर्व बैंक ने भी चेतावनी जारी की है और इस ऐप को डाउनलोड नहीं करने को कहा है। इस ऐप के जरिए जलसाज कहीं भी बैठकर यूजर के फोन को ऐक्सेस कर उसका पूरा कंट्रोल अपने ले लेते है और UPI के जरिए पैसे की चोरी कर लेते हैं। ऐसा ही एक दूसरा ऐप है TeamViewer। यह भी AnyDesk के जैसे ही काम करता है। 



न करें डाउनलोड AnyDesk ऐप : -जालसाज खुद बैंक एग्जिक्यूटिव बनकर फोन करते हैं। कई बार ऐसे भी मामले सामने आए हैं जिनमें गूगल पर मौजूद गलत कस्टमर केयर नंबर पर यूजर खुद ही फोन कर देते हैं।  - इन दोनों ही मामलों में फर्जी बैंक अधिकारी बने जालसाज यूजर को AnyDesk या TeamViewer ऐप डाउनलोड करने के लिए कहते हैं। • ऐप के डाउनलोड होने के बाद इन साइबर क्रिमिनल्स को 9 अंकों वाले रिमोट डेस्क कोड की जरूरत पड़ती है। ये जालसाज यूजर से 9 अंकों का कोड मांग लेते हैं। यह कोड मिलते ही वे यूजर के मोबाइल या कंप्यूटर स्क्रीन को आसानी से देख और कंट्रोल कर सकते हैं।  -जैसे ही यूजर अपने बैंक अकाउंट का यूजरनेम और पासवर्ड डालता है, ये जालसाज उसे नोट कर लेते हैं। इसके बाद अकाउंट से पैसे उड़ा देते हैं। 


आईफोन की तुलना में ऐंड्रॉयड डिवाइसेज पर इस प्रकार से पैसे उड़ाने का ज्यादा खतरा होता है। दरअसल, ऐंड्रॉयड पर AnyDesk स्कैमर्स आसानी से स्क्रीन को मॉनिटर और रिकॉर्ड कर सकते हैं। वहीं दूसरी ओर आईफोन AnyDesk ऐप को स्क्रीन कास्ट नहीं करने देता।  समझदारी से करें काम : स्क्रीन शेयर करने वाले किसी भी ऐप को डाउनलोड करने से पहले उसके काम करने के तरीके को ढंग से समझ लेना बेहतर रहता है। बिना जानकारी ये ऐप यूजर को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसके साथ ही इस बात का जरूर ध्यान रखें कि कोई भी बैंक अपने ग्राहकों को थर्ड पार्टी ऐप डाउनलोड करने के लिए नहीं कहता है। 

Saturday, August 17, 2019

फास्ट फूड से बढ़ रही है पेट के मरीजों की संख्या

तेजी से बढ़ रहे फास्ट फूड के प्रचलन से लोगों का स्वास्थ्य बिगड़ रहा है. लोग जानते है फिर भी इसे खाने से बाज नहीं आ रहे हैं. अनहाईजेनिक फास्ट फूड खाने से पेट संबंधित बीमारियां बढ़ रही है. आजकल फास्ट फूड खाना एक फैशन और प्रचलन सा हो गया है. शाम को फास्ट फूड की दुकानों पर लोगों की कतारें लग जाती हैं. इससे मोटापा और अन्य प्रकार की समस्याएं भी होती हैं. डॉक्टरों का कहना है कि फास्ट फूड से बच्चों को दूर रहना चाहिए. यही फास्ट फूड बच्चों में सबसे ज्यादा लोकप्रिय है, लेकिन यदि हम बच्चों का स्वास्थ्य बेहतर रखना चाहते हैं तो उन्हें इन अनहाइजीनिक फूड से दूर रखना पड़ेगा.

कभी किसी जमाने में हमारे देश में स्वस्थ भोजन और स्वास्थ्य शरीर की सोंच हुआ करती थी. आज परिस्थितियां यह है कि हर चौराहे पर फास्ट फूड की दुकानें आपको बड़ी संख्या में नजर आएंगी.आश्चर्य की बात तो यह है कि सबसे ज्यादा युवा वर्ग के लोग फास्ट फूड खाते दिख जाएंगे. युवा फास्ट फूड के शौकीन हो गए हैं और इसे अपने इंजॉय का माध्यम समझ रहे हैं. यही इंजॉय उनकी पेट संबंधित समस्याओं को भी जन्म दे रहा है.

सिचुरेटेड फैट की वजह से, लोगों को कॉन्स्टिपेशन और तमाम प्रकार के उदर विकार होने की पूरी संभावना रहती है. बेबी डॉल मोटापा भी फास्ट फूड की ही देन है. तमाम अन्य प्रकार की बीमारियां बवासीर, फिशर और पेट से संबंधित लगभग सभी बीमारियां आजकल फास्ट फूड खाने से हो रही है. हमें अपने स्वास्थ्य का ख्याल स्वयं करना है. स्वस्थ भोजन और स्वस्थ खानपान रखना अत्यंत आवश्यक है. सभी को इस दिशा में सोचने की जरूरत है. यह मामला हमारी जेब और हमारे स्वस्थ शरीर से जुड़ा हुआ है. -डॉ. रमेश चंद्र, मुख्य चिकित्सा अधिकारी 

मालवीय नगर विधायक सोमनाथ भारती जी का विकास

हौजरानी जहाँपनाह कॉलोनी का रोड, आम आदमी पार्टी मालवीय नगर विधायक सोमनाथ भारती जी का विकास

हौजरानी जहाँपनाह कॉलोनी का रोड, आम आदमी पार्टी मालवीय नगर विधायक सोमनाथ भारती जी का विकास
 

हौजरानी जहाँपनाह कॉलोनी का रोड, आम आदमी पार्टी मालवीय नगर विधायक सोमनाथ भारती जी का विकास

हौजरानी जहाँपनाह कॉलोनी का रोड, आम आदमी पार्टी मालवीय नगर विधायक सोमनाथ भारती जी का विकास


इंदौर के आई हॉस्‍पिटल की बड़ी लापरवाही, 11 लोगों ने गंवाई आंख की रोशनी

मध्‍य प्रदेश के इंदौर में अस्‍पताल की लापरवाही का सनसनीखेज मामला सामने आया है. दरअसल, इंदौर आई अस्पताल में मोतियाबिंद का ऑपरेशन कराने आए 11 मरीजों की आंख की रोशनी चली गई है. बहरहाल, अस्‍पताल के लाइसेंस को रद्द कर दिया गया है. वहीं सरकार ने मामले के जांच के आदेश भी दे दिए हैं.
क्‍या है मामला: न्‍यूज एजेंसी आईएएनएस के मुताबिक मोतियाबिंद के ऑपरेशन के लिए इंदौर आई अस्पताल में 8 अगस्त को 'राष्ट्रीय अंधत्व निवारण कार्यक्रम' के तहत एक शिविर लगाया गया था, जिसमें मरीजों के ऑपरेशन हुए. इसके बाद आंख में दवा डाली गई, जिससे उन्हें संक्रमण हुआ और धीरे-धीरे उनकी आंखों की रोशनी ठीक होने की बजाय चली गई. जांच के बाद डॉक्टरों ने भी माना कि मरीजों की आंखों में इंफेक्शन हो गया है, लेकिन इसका कारण नहीं बता सके.
वहीं मामला सामने आने के बाद स्वास्थ्य विभाग ने अस्पताल की ओटी को सील कर दिया है. इसके साथ ही राज्‍य सरकार ने जांच के आदेश भी दे दिए हैं. इस मामले की जांच इंदौर कमिश्नर की अगुवाई में सात सदस्यीय कमेटी करेगी, जिसमें इंदौर कलेक्टर समेत स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी शामिल हैं. इस जांच रिपोर्ट को 72 घंटे के भीतर सब्‍मिट करना होगा.
50 हजार तक की मदद: मध्‍य प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट ने बताया कि मरीजों को बेहतर इलाज मुहैया कराया जा रहा है. स्वास्थ्य मंत्री ने कहा कि अस्पताल का लाइसेंस निरस्त करने के साथ ही पीड़ित परिवार को 20 हजार रुपये की तत्काल मदद दी जाएगी. वहीं, पूरे मामले पर मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी संज्ञान लिया है. कमलनाथ ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी.
मुख्‍यमंत्री कमलनाथ ने बताया कि पीड़ित मरीजों की हरसंभव मदद करने के निर्देश दिए गए हैं. इन सभी मरीजों के उपचार का खर्च सरकार करेगी. इसके साथ ही प्रत्येक प्रभावित मरीज को 50-50 हजार की मदद दी जाएगी. बता दें कि यह पहली बार नहीं है जब इंदौर के इस अस्पताल में ऐसा मामला सामने आया है. इससे पहले साल 2010 में मोतियाबिंद के ऑपरेशन के बाद करीब 20 लोगों की आंख की रोशनी चली गई थी.

Friday, August 16, 2019

मेव और मेवात के इतिहास

मेवात एक भौगोलिक क्षेत्र का नाम है | यह पूरा क्षेत्र अरावली पर्वत श्रंखला की पहाडियों से घिरा हुआ है | भाषा वैज्ञानिको के अनुसार मेवों के निवास का नाम मिनावाटी से व्यत्पन्न है जिसका अर्थ है मत्स्य प्रदेश ( मीन गणचिन्ह धारी आदिवासी कबीलाई समुदाय का प्राचीन निवासी स्थान ) विकट आवासीय परम्परा से मेवास भी कहते है | मेव शब्द और मेवात इसी कारण प्रचालन आये | जाट व मीना समुदाय की कुछ पालो के लोगो ने 11वी व 13 वीं शताब्दी में मुस्लिम धर्म धारण कर लिया | परन्तु उनसे रोटी बेटी का सम्बन्ध अकबर काल तक चलता रहा | मेवों का पूर्व निवासस्थान मेवाड़ को माना गया है मेवाड़ का एक प्राचीन परगना ''मेवल'' कहलाता है | मेवाड़ का असली नाम भी मेवो की आबादी के कारण मेव+वाड़ अथवा मेवाड़ पड़ा | स्वं बाबर ने भी मेवाड़ के राजा राणा सांगा को हाकिम-ए-मेवात लिखा है | कट्टरपंथियों के कारण दूरियां पैदा हुई पर आज भी भाईचारा कायम है | 

मेवों के भोगोलिक क्षेत्र ,रिवाज,मेव-मीणा व जाटों  का अलग होना और इनकी बहादुरी पर कुछ दोहे
1-दिल्ली सु बैराठ तक,मथुरा पश्चिम राठ,
बसे चौकड़ा बीच में,मंझ मुल्ल्क मेवात |
2-मेव न जाणे मांगते, मेवणी नांक नाय विन्धवाये,
ये दो अड़ मेवातमें, चली अभी तक आयें |
3-मेव और मीणा एक हा, फिर होगा न्याला,
दरियाखां का ब्याहपे, ये भिडगा मतवाला |
4-दिल्ली पै धावो दियो, अपणा-पण के पाण,
डरप्या मेवन सु सदा, खिलजी,मुग़लऔर पठाण |

मेवो में 12 पाल और 52 गोत्र है जिनमे से प्रमुख इस प्रकार है - डैमरोत (757 गाँव) ,दुलोत (360 गाँव),बालौत (260 गाँव), देडवाल (देवड़वाल) -252 गाँव, कलेसा (कलेसिया)- 224 गाँव, नाई मेव गोत्र-210 गाँव, सिगंल-210 गाँव,देहंगल- 210 गाँव,पुन्ज्लौत-84 गाँव, छिरकलौत- पौने 95 गांव, पहाड़ ऊपर का बहादुर ईलाका बाघौड़ा ( घुड़चढ़ी- मेवखां ) तथा इनके अतिरिक्त -नांग्लौत, मोर झिन्गाल ( गांव अहमदबास/ डूंगरियाबास,राजौली, तेड़ मोहम्मदपुर ) ,बिलावत ,बमनावत, पाहट(राजा राय भान,टोडर मल और दरिया खां हुए), सौगन, बेसर, मारग, गुमल (गुम्लाडू), घुसिंगा, मेवाल, जोनवाल, चौरसिया, सेहरावत ,पंवार , मंगरिया , बिगोत, ज़ोरवाल और गोरवाल (हसन खां मेवाती जिसने मुगलों के विरुद्ध खनवा का युद्ध लड़ा) भाभला, गहलोत, खोकर, मीमरोट, कालोत, महर (बलबन के समय मलका महर प्रसिद्द हुए), भौंरायत, पडिहार, बुरिया आदि प्रमुख गोत्र है | 1857 की क्रांति में मेवो का महत्वपूर्ण योगदान है लगभग 1000 मेव शहीद हुए थे | रूपडाका गाँव में 1857 में अंग्रेज समर्थक राजपूत और मेवो में घमासान युद्ध हुआ था जिसमे अंग्रेजो और राजपूतो की संयुक्त सेना से लड़ते हुए 400 मेव शहीद हुए थे | मेव  समाज आज भी हक़ और अधिकार से वंचित है |

संयुक्‍त राष्‍ट्र की चेतावनी, विलुप्‍त होने के कगार पर केला, इस देश में आपातकाल की घोषणा

अगले कुछ सालों में लोगों का पसंदीदा फल केला दुनिया से गायब हो सकता है। वैज्ञानिकों के अनुसार एक खतरनाक फंगस केलों को दुनिया से गायब कर सकता है। यह फंगस केले की एक प्रजाति को पहले ही नष्ट कर चुका है और अब यह नई प्रजातियों की ओर बढ़ रहा है। इसका संक्रमण वर्तमान में अमेरिका में कहर मचा रहा है। अमेरिका के कई प्रयासों के बावजूद यह वहां पर पहुंच गया है। दक्षिणी अमेरिकी देश कोलंबिया में इस फंगस के आने के बाद से सरकार ने राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की है! रासायनिक छिड़काव भी बेअसर : कोलंबिया के उत्तरपूर्वी प्रांत ला गुआजिरा में 180 हेक्टेयर की मिट्टी में फ्यूजेरियम टाइप-4 (टीआर-4) फंगस पाया गया था। संयुक्त राष्ट्र की ओर से भी इस बारे में चेतावनी दी गई है। संयुक्त राष्ट्र की ओर से कहा गया है कि केलों में फैली इस बीमारी पर रसायनों का छिड़काव भी बेअसर साबित हो रहा है। कोई भी दवा प्रभावी नहीं साबित हो रही है। यह टीआर-4 फंगस एक बार आने के बाद मिट्टी में करीब 30 साल तक बना रह सकता है। हालांकि, शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि इस फंगस से जल्द ही निपटा जा सकेगा। मलेशिया और इंडोनेशिया में सबसे पहले सामने आया था फंगस : टीआर-4 फंगस सबसे पहले मलेशिया और इंडोनेशिया में पाया गया था। इसके बाद यह जल्दी ही चीन में भी फैल गया। जहां पर यह बहुत तेज से और बहुत बड़े क्षेत्र में फैला। यह फंगस पेड़ की जड़ों में हमला करता है और पेड़ की नसों को ब्लॉक कर देता है, जिससे पेड़ मर जाता है। यह बीमारी अफ्रीका, मध्य पूर्व एशिया और ऑस्ट्रेलिया में 2013 में फैल चुकी थी। अब यह दक्षिणी अमेरिका में फैल रही है। यहां दुनिया में सबसे ज्यादा केले का उत्पादन होता है। यहां पर केले की प्रजाति कैवेंडिश पर खतरा मंडरा रहा है। फंगस से निपटने की व्यापक पैमाने पर चल रही तैयारी : कोलंबियन एग्रीकल्चर इंस्टीट्यूट (आइसीए) की महाप्रबंधक डेयनिरा बैरेरो लियोन ने ट्वीट कर बताया कि इस फंगस से निपटने के लिए ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंड, ब्राजील और मेक्सिको के विशेषज्ञों को लगाया गया है। इसके साथ ही इससे निपटने के लिए पुलिस और सेना के भी इस्तेमाल की तैयारी कर ली गई है। उन्होंने कहा हम भरपूर कोशिश करेंगे। इस बीमारी के कारण 1950 में बिग माइक नाम की केलों की प्रजाति विलुप्त हो चुकी है। वैज्ञानिकों ने बताया है कि मेडागास्कर में पाई जाने वाली कैवेंडिश केले की प्रजाति पर इस वायरस का असर बेहद कम होता है। यह केलों की जंगली प्रजाति है और इस प्रजाति के केले सख्त होते हैं।  

महिला एंकर को कोर्ट ने भेजा नोटिस, AAP नेता सोमनाथ भारती पर लगाया था बदसलूकी का आरोप

एक निजी चैनल की महिला एंकर से अभद्र भाषा और बुरा व्यवहार करने के मामले में तय आरोपों को खारिज करते हुए दिल्ली के पूर्व कानून मंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता सोमनाथ भारती ने सेशन कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. सेंशन कोर्ट के जज अजय कुमार कुहार ने स्पेशल कोर्ट के फैसले पर रोक लगाई है. कोर्ट ने एंकर को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. अगली सुनवाई 30 अगस्त को होगी. एडिशनल मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट समर विशाल की कोर्ट ने सोमनाथ भारती के खिलाफ आरोप तय किये थे. हालांकि इस मामले में कोर्ट सोमनाथ भारती को पहले ही जमानत दे चुका है. कोर्ट ने 10 हजार रुपये के निजी मुचलके पर जमानत दी थी. 
बता दें कि निजी चैनल की महिला एंकर ने सोमनाथ भारती के खिलाफ आपराधिक मानहानि का केस किया है. महिला एंकर ने अपनी शिकायत में कहा है कि 20 नवंबर, 2018 को शाम 4 बजे उसके चैनल के लाइव शो के दौरान जब उसने सोमनाथ भारती से जनहित के मुद्दों पर कुछ सवाल पूछे तो उन्होंने अभद्र भाषा का प्रयोग किया. एंकर ने सोमनाथ भारती से पूछा था कि क्या लोग आपसे नाराज हैं, जो लोगों का गुस्सा इस तरीके से फूट रहा है. इस पर सोमनाथ भारती नाराज हो गए और कहा कि आप बीजेपी के एजेंट हैं और अभद्र भाषा का प्रयोग किया. सोमनाथ भारती ने यहां तक कहा कि आप चैनल पर बैठकर धंधा करते हो. शिकायतकर्ता महिला एंकर ने इसकी पूरी रिकॉर्डिंग की सीडी कोर्ट में पेश की. इस महिला एंकर ने अपने बयान में कहा कि इस टीवी शो के बाद उसके रिश्तेदारों और दोस्तों ने पूछा कि सोमनाथ भारती ने उसे अभद्र भाषा में क्यों बोला? उसे धंधे वाली क्यों कहा? महिला एंकर के मुताबिक सोमनाथ भारती की अभद्र टिप्पणी से उसकी छवि को काफी नुकसान पहुंचा है. उसका पूरा जीवन उसकी छवि पर टिका हुआ है. महिला एंकर ने इस बाबत 21 नवंबर, 2018 को नोएडा पुलिस के पास शिकायत भी दर्ज कराई थी.

हौजरानी प्रेस एन्क्लेव में बन सकता है फ्लाईओवर: 50 हजार से ज्यादा लोगों को जाम से मिलेगा छुटकारा

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