अगर आप किसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं और इलाज के लिए किसी अस्पताल या क्लीनिक जाते हैं, तो डॉक्टर की लीगल ड्यूटी है कि वो आपका पूरी सतर्कता के साथ इलाज करे. अगर डॉक्टर आपका इलाज करने से इनकार करता है, तो आप कानून का सहारा लेकर उसको सबक सिखा सकते हैं. संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले मौलिक अधिकार में इलाज पाने का अधिकार भी शामिल है. परमानंद कटारा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कोई भी डॉक्टर या अस्पताल गंभीर रूप से घायल मरीज का इलाज करने से मना नहीं कर सकता है. डॉक्टर और अस्पताल की लीगल ड्यूटी है कि वो गंभीर रूप से घायल या गंभीर बीमारी से जूझ रहे मरीज को इमरजेंसी मेडिकल केयर उपलब्ध कराएं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर मरीज के पास पैसे भी नहीं हैं तो भी डॉक्टर या अस्पताल उसका इलाज करने में न तो किसी तरह की देरी करेंगे और न ही इलाज करने से इनकार करेंगे. डॉक्टर की पहली प्राथमिकता मरीज का तुरंत इलाज करने की होनी चाहिए, ताकि मरीज को बचाया जा सके. इसके अलावा इंडियन मेडिकल काउंसिल के प्रोफेशनल कंडक्ट रेगुलेशन के तहत भी डॉक्टर को मरीज का इलाज करना ही होगा. अगर वो किसी मरीज का इलाज करने से इनकार करता है, तो यह प्रोफेशनल मिसकंडक्ट माना जाएगा और उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है.
दंड प्रक्रिया संहिता यानी सीआरपीसी की धारा 357C के तहत डॉक्टर और अस्पताल को एसिड हमले की शिकार महिला या पुरुष का इमरजेंसी में फ्री इलाज करना होगा. इसके अलावा रेप पीड़िता का इलाज करने के लिए भी डॉक्टर और अस्पताल कानूनी तौर पर बाउंड हैं. कोई भी सरकारी या प्राइवेट डॉक्टर या अस्पताल एसिड हमले की पीड़ित और रेप पीड़िता का आपातकालीन इलाज करने से इनकार नहीं कर सकते हैं. अगर कोई डॉक्टर या अस्पताल एसिड और रेप पीड़िता का आपातकालीन स्थिति में फ्री में इलाज करने से मना करता है, तो उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की धारा 166B के तहत कार्रवाई की जा सकती है. इसके तहत डॉक्टर को एक साल तक की जेल की सजा हो सकती है. साथ ही जुर्माना भरना पड़ सकता है.
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