मेवात एक भौगोलिक क्षेत्र का नाम है | यह पूरा क्षेत्र अरावली पर्वत श्रंखला की पहाडियों से घिरा हुआ है | भाषा वैज्ञानिको के अनुसार मेवों के निवास का नाम मिनावाटी से व्यत्पन्न है जिसका अर्थ है मत्स्य प्रदेश ( मीन गणचिन्ह धारी आदिवासी कबीलाई समुदाय का प्राचीन निवासी स्थान ) विकट आवासीय परम्परा से मेवास भी कहते है | मेव शब्द और मेवात इसी कारण प्रचालन आये | जाट व मीना समुदाय की कुछ पालो के लोगो ने 11वी व 13 वीं शताब्दी में मुस्लिम धर्म धारण कर लिया | परन्तु उनसे रोटी बेटी का सम्बन्ध अकबर काल तक चलता रहा | मेवों का पूर्व निवासस्थान मेवाड़ को माना गया है मेवाड़ का एक प्राचीन परगना ''मेवल'' कहलाता है | मेवाड़ का असली नाम भी मेवो की आबादी के कारण मेव+वाड़ अथवा मेवाड़ पड़ा | स्वं बाबर ने भी मेवाड़ के राजा राणा सांगा को हाकिम-ए-मेवात लिखा है | कट्टरपंथियों के कारण दूरियां पैदा हुई पर आज भी भाईचारा कायम है |
मेवों के भोगोलिक क्षेत्र ,रिवाज,मेव-मीणा व जाटों का अलग होना और इनकी बहादुरी पर कुछ दोहे
1-दिल्ली सु बैराठ तक,मथुरा पश्चिम राठ,
बसे चौकड़ा बीच में,मंझ मुल्ल्क मेवात |
2-मेव न जाणे मांगते, मेवणी नांक नाय विन्धवाये,
ये दो अड़ मेवातमें, चली अभी तक आयें |
3-मेव और मीणा एक हा, फिर होगा न्याला,
दरियाखां का ब्याहपे, ये भिडगा मतवाला |
4-दिल्ली पै धावो दियो, अपणा-पण के पाण,
डरप्या मेवन सु सदा, खिलजी,मुग़लऔर पठाण |
मेवो में 12 पाल और 52 गोत्र है जिनमे से प्रमुख इस प्रकार है - डैमरोत (757 गाँव) ,दुलोत (360 गाँव),बालौत (260 गाँव), देडवाल (देवड़वाल) -252 गाँव, कलेसा (कलेसिया)- 224 गाँव, नाई मेव गोत्र-210 गाँव, सिगंल-210 गाँव,देहंगल- 210 गाँव,पुन्ज्लौत-84 गाँव, छिरकलौत- पौने 95 गांव, पहाड़ ऊपर का बहादुर ईलाका बाघौड़ा ( घुड़चढ़ी- मेवखां ) तथा इनके अतिरिक्त -नांग्लौत, मोर झिन्गाल ( गांव अहमदबास/ डूंगरियाबास,राजौली, तेड़ मोहम्मदपुर ) ,बिलावत ,बमनावत, पाहट(राजा राय भान,टोडर मल और दरिया खां हुए), सौगन, बेसर, मारग, गुमल (गुम्लाडू), घुसिंगा, मेवाल, जोनवाल, चौरसिया, सेहरावत ,पंवार , मंगरिया , बिगोत, ज़ोरवाल और गोरवाल (हसन खां मेवाती जिसने मुगलों के विरुद्ध खनवा का युद्ध लड़ा) भाभला, गहलोत, खोकर, मीमरोट, कालोत, महर (बलबन के समय मलका महर प्रसिद्द हुए), भौंरायत, पडिहार, बुरिया आदि प्रमुख गोत्र है | 1857 की क्रांति में मेवो का महत्वपूर्ण योगदान है लगभग 1000 मेव शहीद हुए थे | रूपडाका गाँव में 1857 में अंग्रेज समर्थक राजपूत और मेवो में घमासान युद्ध हुआ था जिसमे अंग्रेजो और राजपूतो की संयुक्त सेना से लड़ते हुए 400 मेव शहीद हुए थे | मेव समाज आज भी हक़ और अधिकार से वंचित है |
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