दिल्ली दंगा
आग लगी दिल्ली में कैसी घातों प्रतिघातों में ।
किसने यह उन्माद जगाया बातों ही बातों में ।।
बांस वनों की भांति करें घर्षण दोनों मजहब दल ।
शांति दूत हांथों में लेकर लहराते हैं पिस्टल ।
आंख दिखाता धुंआ काल का बार बार उठता है ,
लपट आंच की ऊंची ऊंची उठती हैं रातों में ।।
हमला हुआ पुलिस पर देखो किसको कौन बचाए ।
दंगे की सुलगी चिंगारी लौट लौट कर आए ।
बहसी नारों की आवाजें उठती चौराहों से ,
कौन बुझाए आग लगी पानी से बरसातों में ।।
लिपट तिरंगे में रोती देखो भारत मां की जय ।
वन्देमातरम इस दंगे में खो बैठा अपनी लय ।
सभी दलों के नामी नेता मौनी बनकर बैठे ,
धूं धूं कर जल रहीं बस्तियां सुलगे जज्बातों में ।।
कुछ नेता फिर घूम घूम के आग तेल डालेंगे ।
कुछ टी वी पर खुली बहस में मुद्दे को टालेंगे ।
कौम जमातों की तीखी वाणी से गरल बहेगा ,
भूख गरीबी रोयेंगी " हलधर " इन उत्पातों में ।।
@हलधर
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