Tuesday, February 25, 2020

कविता - दिल्ली दंगा

 दिल्ली दंगा 
आग लगी दिल्ली में कैसी घातों प्रतिघातों में ।
किसने यह उन्माद जगाया बातों ही बातों में ।।
बांस वनों की भांति करें घर्षण दोनों मजहब दल ।
शांति दूत हांथों में  लेकर लहराते हैं पिस्टल ।
आंख दिखाता धुंआ काल का बार बार उठता है ,
लपट आंच की ऊंची ऊंची उठती हैं रातों में ।।
हमला हुआ पुलिस पर देखो किसको कौन बचाए ।
दंगे  की  सुलगी  चिंगारी  लौट  लौट  कर  आए ।
बहसी  नारों  की  आवाजें  उठती  चौराहों  से ,
कौन  बुझाए  आग  लगी  पानी  से  बरसातों में ।।


लिपट तिरंगे में रोती  देखो भारत मां की जय ।
वन्देमातरम  इस दंगे में खो  बैठा अपनी लय ।
सभी दलों के नामी नेता मौनी बनकर बैठे ,
धूं धूं कर जल रहीं बस्तियां सुलगे जज्बातों में ।।
कुछ नेता फिर घूम घूम के आग तेल डालेंगे ।
कुछ टी वी पर खुली बहस में मुद्दे को टालेंगे ।
कौम जमातों की तीखी वाणी से गरल बहेगा ,
भूख गरीबी रोयेंगी  " हलधर " इन उत्पातों में ।।

@हलधर

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