पहले शनिवार फिर रविवार और अब सोमवार तीन दिनों से लगातार उत्तर-पूर्वी इलाके में हिंसा हो रही है और उस पर दिल्ली पुलिस अभी तक काबू नहीं कर पाई है। साफ है कि दिल्ली पुलिस का इंटेलिजेंस एक बार फिर से फेल हो गया। क्योंकि बीते रविवार को हुई हिंसा के बाद से ही लग गया था कि सोमवार का दिन बेहद अहम होगा। क्योंकि जहां एक तरफ सीएए के विरोधियों ने प्रदर्शन की चेतावनी दी थी वहीं दूसरी तरफ उसके समर्थन में भी लोगों ने पुलिस को अल्टीमेटम देते हुए कहा था कि प्रदर्शनकारी जल्द से जल्द हटाए जाएं, लेकिन उसके बाद भी पुलिस नहीं चेती, मौजपुर चौराहे पर सुबह से प्रदर्शनकारियों की अच्छी खासी भीड़ थी, लेकिन दिल्ली पुलिस ने उसके बाद भी मौके पर केवल एक इंस्पेक्टर के नेतृत्व में 30 पुलिसकर्मी को वहां पर लगाया। जबकि दिल्ली पुलिस इस बात को जानती थी कि इस इलाके में कभी भी तनाव हो सकता है। दोपहर में जब दोनों गूट आमने-सामने आ गए तो स्थिति बेकाबू हो गई। हालांकि, उस समय पुलिस ने उन्हें संभालने की कोशिश की, लेकिन उपद्रवियों की संख्या बेहद ज्यादा थी जिसके कारण पुलिस उस स्थिति को संभाल नहीं पाई।
उत्तर पूर्वी दिल्ली के 14 जगहों पर आगजनी और हिंसा हुई है, जिनमें मौजपुर जाफराबाद के बीच करीब 4 किलोमीटर का लंबा क्षेत्र है। इस 4 किलोमीटर के बीच कई बसों में आग लगाई गई, सड़कों पर तोडफ़ोड़ की गई, पेट्रोल पंप जलाया गाया, घरों में उपद्रवी घुस गए, लेकिन पुलिस इन इलाकों से नदारद दिखी। इस इलाके में हुई ङ्क्षहसा से संबंधित करीब 20 से ज्यादा वीडियो वायरल हुए हैं, जिनमें केवल 2 वीडियो ही ऐसे हैं, जिनमें पुलिसकर्मी दिख रहे हैं, जबकि सभी वायरल वीडियो में साफ तौर पर देखा जा सकता है कि किस तरह से उपद्रवियों ने ये तांडव मचाया है।
उत्तर-पूर्वी हिंसा की घटना के बाद से पुलिसकर्मी बेहद गुस्से और तनाव में हैं। सोमवार को हुए घटनाक्रम में ज्वाईंट सीपी आलोक कुमार, डीसीपी अमित शर्मा, एसीपी गोकुलपुरी समेत 37 पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल हुए हैं। इसके अलावा एक हेड कांस्टेबल रतन लाल की हिंसा में मौत हो गई है, जिसके बाद तैनात पुलिसकर्मियों में बेहद रोष है। बताया जाता है कि जिस तरह के मौजूदा हालात उत्तर-पूर्वी इलाके में हैं, उसमें वहां पर पुलिस को हर वो अधिकारी मिलने चाहिए जिससे वे उपद्रवियों से निपट सके, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। इसी तरह के हालात हाल में तीस हजारी कोर्ट में हुए थे, जहां पर पुलिसकर्मी पिट रहे थे और उसके बाद भी वे मूकदर्शक बने थे, लेकिन हालात सामान्य नहीं हुए तो पुलिसकर्मियों ने अपनी ही सुरक्षा को लेकर पुलिस हेडक्वार्टर पर प्रदर्शन किया। ऐसा दिल्ली पुलिस के इतिहास में पहली बार हुआ था।
पुलिस की इंटेलिजेंस इस बात का भी अंदाजा लगाने में फेल दिखी कि उपद्रवियों के पास हथियार हो सकते हैं। जबकि 1992 में इसी इलाके में हुई हिंसा में साफ था कि जाफराबाद और आसपास के इलाकों में कितना बड़ा हथियारों का जखीरा पकड़ा गया था। इसके अलावा हाल में आईबी चेता चुकी है कि जाफराबाद इलाके में कई जगहों पर हथियार की मौजूदगाी है उसके बाद भी पुलिस ने इन्हें कम आंका। बीते दो दिनों के प्रदर्शन के बाद भी दिल्ली पुलिस इस बात का अंदाजा नहीं लगा पाई कि कौन-कौन से इलाके बेहद संवेदनशील हैं। जबकि बीते शनिवार और रविवार को पता चल गया था इन इलाकों में इन-इन जगहों पर हिंसक प्रदर्शन हो सकता है, उसके बाद भी पैरामिलिट्री फोर्स की तैनाती नहीं की गई। करीब तीन बजे के बाद जब प्रदर्शन ने उग्र रूप ले लिया और सड़कों पर प्रदर्शनकारियों ने उत्पात मचाया और आगजनी की तो उसके बाद पैरामिलट्री फोर्स को मौके पर भेजा गया।
नई दिल्ली/संजीव यादव।
उत्तर पूर्वी दिल्ली के 14 जगहों पर आगजनी और हिंसा हुई है, जिनमें मौजपुर जाफराबाद के बीच करीब 4 किलोमीटर का लंबा क्षेत्र है। इस 4 किलोमीटर के बीच कई बसों में आग लगाई गई, सड़कों पर तोडफ़ोड़ की गई, पेट्रोल पंप जलाया गाया, घरों में उपद्रवी घुस गए, लेकिन पुलिस इन इलाकों से नदारद दिखी। इस इलाके में हुई ङ्क्षहसा से संबंधित करीब 20 से ज्यादा वीडियो वायरल हुए हैं, जिनमें केवल 2 वीडियो ही ऐसे हैं, जिनमें पुलिसकर्मी दिख रहे हैं, जबकि सभी वायरल वीडियो में साफ तौर पर देखा जा सकता है कि किस तरह से उपद्रवियों ने ये तांडव मचाया है।
उत्तर-पूर्वी हिंसा की घटना के बाद से पुलिसकर्मी बेहद गुस्से और तनाव में हैं। सोमवार को हुए घटनाक्रम में ज्वाईंट सीपी आलोक कुमार, डीसीपी अमित शर्मा, एसीपी गोकुलपुरी समेत 37 पुलिसकर्मी गंभीर रूप से घायल हुए हैं। इसके अलावा एक हेड कांस्टेबल रतन लाल की हिंसा में मौत हो गई है, जिसके बाद तैनात पुलिसकर्मियों में बेहद रोष है। बताया जाता है कि जिस तरह के मौजूदा हालात उत्तर-पूर्वी इलाके में हैं, उसमें वहां पर पुलिस को हर वो अधिकारी मिलने चाहिए जिससे वे उपद्रवियों से निपट सके, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। इसी तरह के हालात हाल में तीस हजारी कोर्ट में हुए थे, जहां पर पुलिसकर्मी पिट रहे थे और उसके बाद भी वे मूकदर्शक बने थे, लेकिन हालात सामान्य नहीं हुए तो पुलिसकर्मियों ने अपनी ही सुरक्षा को लेकर पुलिस हेडक्वार्टर पर प्रदर्शन किया। ऐसा दिल्ली पुलिस के इतिहास में पहली बार हुआ था।
पुलिस की इंटेलिजेंस इस बात का भी अंदाजा लगाने में फेल दिखी कि उपद्रवियों के पास हथियार हो सकते हैं। जबकि 1992 में इसी इलाके में हुई हिंसा में साफ था कि जाफराबाद और आसपास के इलाकों में कितना बड़ा हथियारों का जखीरा पकड़ा गया था। इसके अलावा हाल में आईबी चेता चुकी है कि जाफराबाद इलाके में कई जगहों पर हथियार की मौजूदगाी है उसके बाद भी पुलिस ने इन्हें कम आंका। बीते दो दिनों के प्रदर्शन के बाद भी दिल्ली पुलिस इस बात का अंदाजा नहीं लगा पाई कि कौन-कौन से इलाके बेहद संवेदनशील हैं। जबकि बीते शनिवार और रविवार को पता चल गया था इन इलाकों में इन-इन जगहों पर हिंसक प्रदर्शन हो सकता है, उसके बाद भी पैरामिलिट्री फोर्स की तैनाती नहीं की गई। करीब तीन बजे के बाद जब प्रदर्शन ने उग्र रूप ले लिया और सड़कों पर प्रदर्शनकारियों ने उत्पात मचाया और आगजनी की तो उसके बाद पैरामिलट्री फोर्स को मौके पर भेजा गया।
नई दिल्ली/संजीव यादव।
No comments:
Post a Comment