कारोबार जगत में आपने फर्श से अर्श तक पहुंचने वालों की कई कहानियां सुनी होंगी, लेकिन कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें अर्श से फर्श तक पहुंचने को मजबूर होना पड़ा है। ऐसे कारोबारियों की फेहरिश्त काफी लंबी है, जो कभी अरबों डॉलर के मालिक हुआ करते थे, लेकिन आज की तारीख में न सिर्फ तंगी बल्कि कुछ तो जेल की सलाखों में जीवन काट रहे हैं, कुछ जेल के डर से भागे फिर रहे हैं तो कुछ ने सुइसाइड तक कर लिया। कुछ ऐसे ही कारोबारियों की जिंदगी पर हम एक नजर डालने जा रहे हैं।
अनिल अंबानी (रिलायंस टेलिकॉम) : अनिल अंबानी का नाम कभी दुनिया के सबसे अमीर लोगों की सूची में आता था, लेकिन आज हालत यह है कि उन्हें कोर्ट में चीख-चीखकर बताना पड़ रहा है कि वह अब अमीर नहीं, बल्कि 'कंगाल' हो गए हैं। अपने ही भाई की कंपनी जियो के कारण बर्बाद होने वाले अनिल अंबानी पर लगभग एक लाख करोड़ रुपये का कर्ज है और एक बार उन्हें जेल जाने से उनके बड़े भाई और एशिया के सबसे अमीर शख्स मुकेश अंबानी बचा भी चुके हैं। लंदन के एक कोर्ट में उनके वकील ने एक मामले में सुनवाई के दौरान कहा कि अनिल अंबानी कभी अमीर थे, लेकिन अब नहीं है।
विजय माल्या (किंगफिशर एयरलाइंस): शराब से लेकर हवाई जहाज उड़ाने का बिजनस करने वाले विजय माल्या को कौन नहीं जानता। इनकी रईसी के किस्से पूरी दुनिया जानती है। कभी हजारों करोड़ में खेलने वाला यह कारोबारी कर्ज न चुकाने को लेकर जेल जाने के डर से भारत छोड़कर लंदन भाग गया है। भारत सरकार उसके प्रत्यर्पण का मुकदमा लड़ रही है।
वीजी सिद्धार्थ (सीसीडी): मशहूर कैफे चेन कैफ कॉफी डे (CCD) के संस्थापक वीजी सिद्धार्थ ने पिछले साल भारी कर्ज के चलते आत्महत्या कर ली थी। पिछले दो सालों से सीसीडी को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा था। साथ ही कंपनी ने अपने कई प्रमुख स्टोर बंद भी कर दिए थे और इन सब बातों ने सिद्धार्थ को काफी परेशान किया था। इस मामले में सिद्धार्थ द्वारा लिखा गया एक पत्र सामने आया था, इस लेटर में सिद्धार्थ ने वित्तीय संकट की बात कही थी। चिट्ठी में सिद्धार्थ ने कर्मचारियों और बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स को लिखा था कि सभी वित्तीय लेनदेन मेरी जिम्मेदारी है। कानून को मुझे और केवल मुझे जवाबदेह रखना चाहिए। आज उनकी कंपनी भारी कर्ज के बीच दोराहे पर खड़ा है।
सुब्रत रॉय (सहारा इंडिया): सुब्रत रॉय कामयाबी के पीक से जेल तक का सफर तय करना पड़ा। एक समय ऐसा था कि रॉय को उनका व्यापार शुरू करने के लिए एसबीआई बैंक ने पांच हजार रुपए का लोन देने से मना कर दिया था, लेकिन उन्होंने एक मित्र के साथ छोटी सी चिट फंड कंपनी शुरू की। इसके बाद उनकी सफलता की कहानी शुरू हो गई। ये सफर नवंबर 2013 में आकर थम गया, जब सेबी ने निवेशकों का पैसा नहीं लौटाने पर सहारा समूह के बैंक अकाउंट को फ्रीज कर दिया। एक समय में सहारा ग्रुप डेढ़ लाख करोड़ का था, जिसमें 12 लाख कर्मचारी और कार्यकर्ता थे।
रमेश चंद्रा (यूनिटेक): रमेश चंद्रा की रियल एस्टेट कंपनी यूनिटेक कभी देश की सबसे बड़ी रियल्टर हुआ करती थी। जब कंपनी पीक पर थी, तब उनकी संपत्ति 70,000 करोड़ रुपये की थी। लेकिन साल 2001 में उनकी टेलिकॉम कंपनी 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में फंस गई, जिसमें उनके बेटे संजय चंद्रा को जेल जाना पड़ा। भारी-भरकम कर्ज और कर्ज चुकाने के लिए संपत्तियों की बिक्री से रमेश चंद्रा कभी नहीं उबर पाए।
बी. रामलिंगा राजू (सत्यम कंप्यूटर्स): चर्चित सॉफ्टवेयर कंपनी सत्यम कंप्यूटर सर्विस लिमिटेड की स्थापना बी. रामालिंगा राजू ने अपने साले डीवीएस राजू के साथ मिलकर 1987 में थी। सत्यम दक्षिण भारतीय राज्य आंध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद में स्थापित होने वाली पहली कंपनी थी। अपनी स्थापना के कुछ समय बाद ही सत्यम सॉफ्टवेयर क्षेत्र की देश की चार बड़ी कंपनियों में से एक बन गई। इसने 60 हजार लोगों को रोजगार दिया। लेकिन, फिर इसके गिरने का सिलसिला शुरू हो गया। कंपनी की नींव रखने वाले बी रामालिंगा राजू अर्श से फर्श पर पहुंच गए। कंपनी को टेक महिंद्रा ने टेकओवर कर लिया।
सिंह बंधु (फोर्टिस ग्रुप): साल 2001 में सिंह बंधुओं के पास सिर्फ एक हॉस्पिटल था, वहीं महज 10 साल में यह आंकड़ा 66 तक पहुंच गया। तरक्की की जबरदस्त गति के बावजूद सिंह बंधु ऐसी गलतियां कर बैठे, जिसने उन्हें जेल के दरवाजे पर लाकर खड़ा कर दिया। दोनों भाइयों शिविंदर सिंह और मलविंदर सिंह को फर्जीवाड़े के आरोप में जेल की हवा खानी पड़ रही है। फोर्टिस ग्रुप बिक चुका है। दोनों भाई सार्वजनिक तौर पर कई बार एक दूसरे से भिड़ चुके हैं और एक दूसरे को धोखा देने का आरोप लगा चुके हैं।
जय प्रकाश गौड़ (जेपी ग्रुप): जेपी ग्रुप के संस्थापक जय प्रकाश गौड़ ने एक सिविल इंजिनियर के रूप में अपने कैरियर की शुरुआत की थी और देखते ही देखते देश ही नहीं, विदेशों में भी अरबों रुपए का बिजनस खड़ा कर दिया। 2008 में इस समूह की स्टॉक बाजार में सूचीबद्ध कंपनियों के शेयर छलांग मार रहे थे। परियोजनाओं को पूरा करने के लिए समूह ने काफी कर्ज बाजार से उठाया। इस समूह ने देश का पहला फार्मूला वन ट्रैक बनाया, जिससे इस समूह का नाम घर-घर पहुंच गया। पर यह ट्रैक समूह के लिए आर्थिक बोझ बन गया। इन परियोजनाओं से समूह को वह लाभ नहीं मिला, जिसकी उम्मीद जेपी समूह और उनके निवेशकों को थी। नतीजतन समूह पर कर्ज भार बढ़ता ही गया। इन कर्जों को पटाने के लिए यह समूह पिछले 4-5 सालों में अपनी कई मूल्यवान परिसंपत्तियां बेच चुका है। इनमें कई हाइड्रो- पॉवर परियोजनाएं और सीमेंट प्लांट शामिल हैं, पर इसके बाद भी आज समूह पर 75 हजार करोड़ रुपये का कर्ज है। अब समूह की एक कंपनी जेपी इंफ्रा को दिवालिया घोषित किया जा चुका है। यह कंपनी जेपी विश टाउन बना रही है, जिसमें फ्लैट खरीदने वाले 32 हजार निवेशकों का गाढ़े पसीने की कमाई अटक गई है।
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