Friday, July 26, 2019

करगिल दिवस पर शहीदों को समर्पित

उतुंग करगिल के रण में क्या भीषण युद्ध नजारा था ।
दुश्मन जिंदा ना बच पाये बस ये अभियान हमारा था ।।

शांति वार्ता की बस में शत्रु भारत में घुस बैठे ,
वीर अटल मक्कार मुसर्रफ के झांसे में फस बैठे ,
सरकारी गहमा गहमी में यूँ समय बीतता चला गया,
नापाक पड़ौसी के हांथों भारत महान फिर छला गया,
जब फौजों को भनक लगी शत्रु ने सरहद पार किया ,
चोटी पर जगह बना बैठा और चौकी पर अधिकार किया ,
तब फोजों को फरमान मिला अब मारो इस पाखंडी को ,
मदिरा शोणित की पिला पिला खुस करो काल रण चंडी को ,
दुश्मन का लाभ निराला था चोटी का उसे सहारा था ।
उतुंग करगिल के रण में क्या भीषण युद्ध नजारा था ।।1

दुश्मन चोटी पर काबिज था सेना घाटी में जमी हुई ,
कैसे हिमगिरी पर कब्जा हो जनरल की सांसें थमी हुई,
चींटी भाँती सैनिक टुकड़ी तोपो को ले के चढ़ती थी ,
तब ताप शून्य से नीचे था ऊँचे पर सांस उखड़ती थी ,
गोलियां बरसती थी रण में हम भारत माता गाते थे ,
गोले नीचे से दाग दाग दुश्मन के होश उड़ाते थे ,
बाहे गुरु जय बोले था कोई बोले था जय जय शंकर ,
तब हर हर महादेव नारों से गूंजे नगपति के कंकर ,
उस बर्फानी मौसम ने उगला शोलों का यलगरा था ।
उतुंग करगिल के रण में क्या भीषण युद्ध नजारा था ।।2

बफोर्स चढ़ी जब पर्वत पर गोले बरसाना शुरू किया ,
उठ गई लपट हिम खंडों में तूफान मचाना शुरू किया ,
इस तरह घनकती थी तोपें क्षण क्षण गोले बरसाती थी ,
अरि खबरदार तब तक बारूदी वज्र गिरातीं थी ,
तोपों से गोले दाग दाग दहलाया दुष्ट बवाली को ,
शोणित की मदिरा पिला पिला कर दिया तुष्ट रण काली को ,
नभ थल सेना थी एक साथ अस्त्रों शास्त्रों का जाल बिछा ,
बंकर में दुश्मन चीख उठा हाय अल्ला हमारी जान बचा ,
तब लहू लुहान हुआ हिम गिरि दिखता शोणित फब्बारा था ।
उतुंग करगिल के रण में क्या भीषण युद्ध नजारा था ।।3

चिड़ियों पर बाज झपटने सा भारत के सैनिक टूट पड़े ,
अल्ला अल्ला की चीख उठी हथियार छोड़ हो गए खड़े ,
नभ थल सेना ने मिला हाथ प्रलयंकर अस्त्र प्रहार किए ,
बंकर के अंदर छुपे हुए सारे दुश्मन संहार किये ,
दहल उठी पूरी घाटी इस तरह युद्ध का हुआ अंत ,
नदियां तरुबर पक्षी रोये खुद साक्ष्य बना अम्बर अनंत ,
इस भीषण युद्ध विभीषिका में हमने भी लाल गंवाए है,
कुछ ऐसे वीर बाँकुरे थे ना घर तक वापस आये है ,
योद्धा का शव आँगन आया दो शब्द गगन में डोल रहे ,
बिटिया तुतला पूंछ रही मेले पाप क्यों नहीं बोल रहे ,
बच्ची की करुण पुकारें सुन टूटा नभ से कोई तारा था ।
उतुंग करगिल के रण में क्या भीषण युद्ध नजारा था ।।

जसवीर सिंह 'हलधर'
देहरादून उत्तराखंड --248001

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