mtmediadelhi.blogspot.com : मंगेशपुर ड्रेन उत्तर पश्चिमी दिल्ली के सबसे बड़े नालों (ड्रेन) में से है। यह नजफगढ़ बेसिन का हिस्सा है। औद्योगिक अपशिष्ट को इसमें बहाए जाने की वजह से मंगेशपुर और कुतुबगढ़ के गांवों से होकर गुजरने वाली यह ड्रेन पूरी तरह से लाल हो चुकी है। स्थानीय किसान इस बात से बेपरवाह इस नाले के प्रदूषित और खतरनाक पानी का इस्तमेाल खेती के लिए कर रहे हैं। इन किसानों का कहना है कि इस नाले के पानी में मौजूद रसायन उनके लिए उर्वरक का काम करते हैं और इसलिए खाद में इस्तेमाल होने वाले उनके पैसे बच रहे हैं। स्थानीय लोग बताते हैं बीते कुछ सालों में इलाके में ग्राउंड वाटर की स्थिति भी काफी खराब हुई है। कुतुबगढ़ में रहने वाले दिनेश राणा बताते हैं कि इलाके में कैंसर के मामले पिछले 10 सालों में 7 गुना बढ़ गए हैं।
कुतुबगढ़ में साल 2003 से खेती करने वाले राजपाल राणा कहते हैं, 'हमें पता है कि जो सब्जियां हम इस पानी के इस्तेमाल से उगा रहे हैं वो खतरनाक है, लेकिन हमारे पास और कोई विकल्प नहीं है। राणा बताते हैं कि साल 2008 में उन्होंने इस ड्रेन के पानी का इस्तेमाल खेती में शुरू किया था और अब वह खेती के लिए इसपर ही पूरी तरह से निर्भर हो चुके हैं। उनका कहना है कि खाद और कीटनाशकों की बढ़ती कीमतों ने भी उन्हें इस नाले के प्रदूषित पानी का इस्तेमाल करने के लिए मजबूर किया है।
राजपाल आगे कहते हैं, 'इलाके में पानी की कमी है और ट्यूबवेल के इस्तेमाल में समय लगता है। ट्यूबवेल लगाने में 70,000-80,000 रुपये का खर्चा आता है, इसके अलावा खाद और अन्य चीजों पर काफी पैसे खर्च होते हैं। इतना खर्च हर साल हमारे लिए फसल उगाना मुश्किल कर देता है। यह नाला हमारी पानी की जरूरत को पूरा करता है और इसमें मौजूद रसायन हमारे लिए खाद का काम करते हैं। हमें पता है कि यह नुकसानदायक है, लेकिन हम कुछ नहीं कर सकते हैं।'
वहीं दिनेश राणा कहते हैं कि अब किसानों को इस प्रदूषित नाले की वजह से होने वाले नुकसान का अंदाजा हो रहा है, लेकिन वे कुछ कर नहीं सकते हैं। राणा ने खतरनाक प्रदूषण फैलाने वाले सोनीपत के 21 उद्योगों के खिलाफ 2015 में दिए गए एनजीटी के एक आदेश के बारे में भी बताया। उनका कहना है कि हरियाणा बॉर्डर पर होने की वजह से इन उद्योगों के खतरनाक अपशिष्ट को इस नाले में बहाए जाने का असर उनलोगों पर काफी पड़ा रहा है।
स्थानीय लोग इस वजह से कैंसर के मामले कई गुना बढ़ने का भी दावा करते हैं। राणा कहतै हैं, 'अगर 10 साल पहले कैंसर का एक मामला आता तो अब ये 7-8 गुना बढ़ चुका है। यमुना में गिरने से पहले यह नाला नजफगढ़ नाले से जुड़ता है। वहीं, 'यमुना जिये अभियान' से जुड़े मनोज मिश्रा का कहते हैं कि जब तक ऐसे उद्योगों के प्रदूषण फैलाने पर लगाम नहीं लगती, स्थिति सुधरना मुश्किल है। उनका कहना है कि नजफगढ़ ड्रेन में ज्यादातर प्रदूषण हरियाणा के उद्योगों से हो रहा और मंगेशपुर ड्रेन भी इसकी बड़ी वजह है।
कुतुबगढ़ में साल 2003 से खेती करने वाले राजपाल राणा कहते हैं, 'हमें पता है कि जो सब्जियां हम इस पानी के इस्तेमाल से उगा रहे हैं वो खतरनाक है, लेकिन हमारे पास और कोई विकल्प नहीं है। राणा बताते हैं कि साल 2008 में उन्होंने इस ड्रेन के पानी का इस्तेमाल खेती में शुरू किया था और अब वह खेती के लिए इसपर ही पूरी तरह से निर्भर हो चुके हैं। उनका कहना है कि खाद और कीटनाशकों की बढ़ती कीमतों ने भी उन्हें इस नाले के प्रदूषित पानी का इस्तेमाल करने के लिए मजबूर किया है।
राजपाल आगे कहते हैं, 'इलाके में पानी की कमी है और ट्यूबवेल के इस्तेमाल में समय लगता है। ट्यूबवेल लगाने में 70,000-80,000 रुपये का खर्चा आता है, इसके अलावा खाद और अन्य चीजों पर काफी पैसे खर्च होते हैं। इतना खर्च हर साल हमारे लिए फसल उगाना मुश्किल कर देता है। यह नाला हमारी पानी की जरूरत को पूरा करता है और इसमें मौजूद रसायन हमारे लिए खाद का काम करते हैं। हमें पता है कि यह नुकसानदायक है, लेकिन हम कुछ नहीं कर सकते हैं।'
वहीं दिनेश राणा कहते हैं कि अब किसानों को इस प्रदूषित नाले की वजह से होने वाले नुकसान का अंदाजा हो रहा है, लेकिन वे कुछ कर नहीं सकते हैं। राणा ने खतरनाक प्रदूषण फैलाने वाले सोनीपत के 21 उद्योगों के खिलाफ 2015 में दिए गए एनजीटी के एक आदेश के बारे में भी बताया। उनका कहना है कि हरियाणा बॉर्डर पर होने की वजह से इन उद्योगों के खतरनाक अपशिष्ट को इस नाले में बहाए जाने का असर उनलोगों पर काफी पड़ा रहा है।
स्थानीय लोग इस वजह से कैंसर के मामले कई गुना बढ़ने का भी दावा करते हैं। राणा कहतै हैं, 'अगर 10 साल पहले कैंसर का एक मामला आता तो अब ये 7-8 गुना बढ़ चुका है। यमुना में गिरने से पहले यह नाला नजफगढ़ नाले से जुड़ता है। वहीं, 'यमुना जिये अभियान' से जुड़े मनोज मिश्रा का कहते हैं कि जब तक ऐसे उद्योगों के प्रदूषण फैलाने पर लगाम नहीं लगती, स्थिति सुधरना मुश्किल है। उनका कहना है कि नजफगढ़ ड्रेन में ज्यादातर प्रदूषण हरियाणा के उद्योगों से हो रहा और मंगेशपुर ड्रेन भी इसकी बड़ी वजह है।
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