लोकसभा के बाद राज्यसभा में RTI संशोधन बिल भी ध्वनि मत से पास हुआ. इससे पहले बिल को सेलेक्ट कमेटी में भेजने का प्रस्ताव खारिज हो गया. प्रस्ताव के खिलाफ 117, विपक्ष में 75 वोट पड़े. वोटिंग से ठीक पहले हालांकि कांग्रेस ने सदन से वॉकआउट कर दिया. बता दें कि सरकार ने इस बिल के लिए ज़रूरी नंबर पहले से ही जुटा लिए थे जब NDA के बाहर की कई पार्टियों का समर्थन उसे हासिल हो गया. TRS, BJD और PDP इस बिल पर सरकार को समर्थन का ऐलान किया था. वहीं, YSR कांग्रेस ने भी RTI संशोधन बिल को लेकर सरकार का समर्थन करने का फैसला किया था. इस बिल को सेलेक्ट कमेटी को भेजे जाने की विपक्ष की साझा मुहिम को इससे ज़ोरदार झटका लगा था. इस बिल के लिए विपक्षी दलों के मनाने के लिए पीयूष गोयल और प्रह्लाद जोशी ने सरकार की ओर से मोर्चा संभाला हुआ था. बुधवार रात को सभी नेताओं से बात की थी. उन्होंने चंद्रबाबू नायडू, के चंद्रशेखर राव, जगन मोहन रेड्डी और नवीन पटनायक सहित कई विपक्षी नेताओं से फोन पर बात की थी.
बिल पर सरकार की दलील: सरकार की दलील है कि आरटीआई बिल से संवैधानिक ढांचे से छेड़छाड़ नहीं की गई है, वहीं राज्यों के अधिकारों में हस्तक्षेप नहीं किया गया है. वेतन में एकरूपता लाने के लिए संशोधन किया जा रहा है. इस जरिए कार्यकाल में भी एकरूपता लाने की कोशिश होगी. सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के नियमों में कोई बदलाव नहीं होगा. संबंधित राज्यों को नियुक्ति का अधिकार है. सरकार का दावा, राज्य सभा में बिल पास कराने में नहीं आएगी अड़चन, आसानी से पास हो जाएगा. बता दें, विपक्षी दल आरटीआई कानून में संशोधन का विरोध कर रहे हैं. विपक्षी दलों की मांग है कि सूचना अधिकार (संशोधन) बिल को सेलेक्ट कमेटी के पास भेजा जाए."
नए विधेयक की खास बातें
- विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि आरटीआई अधिनियम की धारा13 मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की पदावधि और सेवा शर्तो का उपबंध करती है. इसमें उपबंध किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का वेतन , भत्ते और शर्ते क्रमश: मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों के समान होगी.
- इसमें यह भी उपबंध किया गया है कि राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्तों का वेतन क्रमश : निर्वाचन आयुक्त और मुख्य सचिव के समान होगी.
- मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों के वेतन एवं भत्ते एवं सेवा शर्ते सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के समतुल्य हैं. ऐसे में मुख्य सूचना आयुक्त , सूचना आयुक्तों और राज्य मुख्य सूचना आयुक्त का वेतन भत्ता एवं सेवा शर्तें सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के समतुल्य हो जाते हैं.
- वहीं केंद्रीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोग , सूचना अधिकार अधिनियम2005 के उपबंधों के अधीन स्थापित कानूनी निकाय है. ऐसे में इनकी सेवा शर्तो को सुव्यवस्थित करने की जरूरत है.
- संशोधन विधेयक में यह उपबंध किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों तथा राज्य मुख्य सूचना आयुक्त एवं राज्य सूचना आयुक्तों के वेतन , भत्ते और सेवा के अन्य निबंधन एवं शर्ते केंद्र सरकार द्वारा तय होगी.
क्या है सरकार का पक्ष
- RTI से जानकारी लेना आसान होगा
- RTI से जुड़े प्रबंधन में आसानी होगी
- पारदर्शिता लाना, सरकार की प्राथमिकता
- 2005 में जल्दबाज़ी में लाया गया बिल
- क़ानून बनाते वक़्त सही नियम नहीं बने
- RTI क़ानून को मज़बूत कर रही है सरकार
No comments:
Post a Comment