इस संसार में जिसने भी जन्म लिया है उस की मुत्यु निष्चित है पर मुत्यु कब है इस का पता किसी को भी नहीं, किसी का जीवन समाप्त करना जिसके लिए हम हत्या षब्द का प्रयोग करते हैं महापाप है उसी तरह जाम में फसी एम्बूलेंस और उस का तेज गति से बजता सायरन एम्बूलेंस में मौजूद मरीज की धडकन की तरह एम्बूलेंस का पहिया चलना भी उतना ही जरूरी है जितना मरीज की संास का चलना, ये कहना गलत न होगा कि घर से अस्पताल के बीच की दुरी एम्बूलेंस के चलते पहिये पर ही निर्भर है कि हम उस पहिये को कितना तेज चला सकते हैं,
आज मुझे उस समय बहुत ही दुख हुआ कि जब उ0प्र0 के गजियाबाद लाल कुआं के पास मैंने एक एम्बूलेंस को अपने स्कूटर के पीछे देखा मेरे आगे से कुछ वाहन आगे बढे मगर मैंने अपना स्कूटर आगे न करके एम्बूलेंस को निकलने का रास्ता दिया, मगर अफसोस एम्बूलेंस तो आगे नही हुई साईड से खडी कार आगे बढ गई और मेरे रास्ता देने का भी कोई फायदा नहीं हुआ, मैंने अपना स्कूटर फुटपाथ पर चढा कर कच्चे रास्ते पर ले आया और आगे बढ गया, कच्चे रास्ते से जब मैं निकला तो लगभग 5 किलो मीटर दुर तक भयानक जाम था और ऐसे में तेज सायरन की आवाज आ रही थी मगर मुझे एम्बूलेंस के दर्षन नहीं हो रहे थे,
हमने जाम लगने की वजह को तलाष करना चाहा तो पता चला कि रेड लाईट खराब है और यातायात को सुचारू रूप से चलाने वाला कोई नहीं है, मेरा तो यही सिर्फ मानना है एम्बूलेंस के बजते सायरन को नजर अन्दाज न किया जाए बल्कि उस को जाम से निकलने के लिए व्यवस्था करी जाए रेड लाईट अगर ठीक से काम नहीं कर रही हैं तो कम से कम यातायात कर्मी को तैनात करा जाए ताकि एम्बूलेंस के बजते सायरन के साथ उसको रास्ता मिल सके। CR@वली सैफी
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