दिल्ली वैसे तो हमेशा ही स्टूडेंट्स से भरी होती है मगर आने वाले दिनों में नवांगतुकों से भर जाएगी। दिल्ली के महत्वपूर्ण विश्विद्यालयों में यूजी और पीजी में प्रवेश पाने के लिए अलग-अलग राज्यों से स्टूडेंट्स यूनिवर्सिटी का रुख करते हैं। ऐसे हालात में यूनिवर्सिटी द्वारा स्टूडेंट्स को हॉस्टल मुहैया कराना बेहद ज़रूरी हो जाता है। हॉस्टल ना सिर्फ रहने और खाने का ठिकाना देती है, बल्कि यह विभिन्न भारतीय संस्कृति और समाज को जानने का भी अवसर प्रदान करती है। मसलन, बिहार के किसी सुदूर इलाके से आने वाले स्टूडेंट का रूम पार्टनर अगर असम के किसी गाँव का स्टूडेंट हो, तो वह ना सिर्फ रूम बल्कि संस्कृति भी साझा करेंगे।
एक दूसरे रूम मेट के माध्यम से दो विभिन्न समाज को जानने का मौका मिलेगा। किसी समाज के प्रति स्टीरियोटाइप जैसी धारणाएं भी कम होंगी। दुर्भाग्य है कि दिल्ली यूनिवर्सिटी हॉस्टल मुहैया कराने में असमर्थ है दिल्ली यूनिवर्सिटी में इस साल तकरीबन 52,000 स्टूडेंट्स को दाखिला मिला मगर डीयू के विभिन्न कॉलेजों को मिलाकर केवल 17 हॉस्टल्सही हैं। इस परिस्थिति में दिल्ली आकर अच्छी शिक्षा पाने की तम्मना रखने वाले स्टूडेंट्स को सबसे ज़्यादा शहर की भूगोल में दर-ब-दर होना पड़ता है। दुर्भाग्य है कि किसी भी सरकार की नज़र इस समस्या पर नहीं जाती।
शिक्षा को लेकर सरकार की उदासीनता ने पीजी (पेड गेस्ट हाउस) के व्यापार को मज़बूती से पैर फैलाने का अवसर दे दिया है।पीजी में रहना पिछड़े तबके के समाज से आने वाले स्टूडेंट्स के लिए मुश्किल है, क्योंकि सामन्यतः पीजी का चार्ज 6000 से 8000 के बीच होता है, जो कि एक किसान या मज़दूर के बच्चे के लिए दे पाना मुश्किल है। सरकार लगातार हॉस्टल्स की समस्या से मुंह फेर रही है, जिस कारण उन गरीब मज़दूरों और किसानों के सर का बोझ बढ़ा गया है जिनके बच्चे दिल्ली में पढ़ने की ख्वाहिश रखते हैं।
रामजस कॉलेज में पिछले साल 5237 स्टूडेंट्स में से 1220 यूपी से और 1091 स्टूडेंट हरियाणा से दाखिला ले पाए थे। इसी तरह दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित कॉलेज में यूपी, बिहार और हरियाणा से आने वाले स्टूडेंट्स की संख्या लगातार बढ़ रही है। ये प्रदेश आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं, जहां से दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रवेश पाने वाले स्टूडेंट्स अधिकांशतः यहां प्रवेश पाने वाली पहली पीढ़ी होती है। अब ज़रा सोचिए कि वह पहली पीढ़ी, जो किसी तरह से दिल्ली तक पहुंच पाई है, अगर हॉस्टल की कमी की वजह से विश्विद्यालय की देहरी से वापस हो जाए, तो क्या यह शिक्षा के मौलिक अधिकार का गला घोंटना नहीं होगा?
हॉस्टल जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित कर सरकार ना सिर्फ इन्हें शिक्षा के मौलिक अधिकार से दूर कर रही है, बल्कि नागरिक होने के अधिकार का भी दोहन कर रही है। जब कोई स्टूडेंट अपने प्रदेश को छोड़कर पढ़ाई के लिए दिल्ली आता है, तो वह ना केवल अपने सपनों के साथ जीता है बल्कि अपने कंधे पर कई बोझ भी ढोता है परिवार की आशा स्टूडेंट के सपने के साथ कदमताल करते हुए आगे बढ़ती है। होना तो यह चाहिए कि यूनिवर्सिटी प्रशासन सभी स्टूडेंट्स को हॉस्टल की सुविधा मुहैया कराए और प्रवासी स्टूडेंट निश्चिंत होकर अपने सपने को साकार करने में अपना समय लगाएं। साल दर साल फंड कटौती और जगह की कमी की वजह से ‘हॉस्टल फॉर ऑल’ की आशा को अमलीजामा पहनाना मुश्किल है। सरकार को अपनी ज़िम्मेदारी तय करनी चाहिए। ‘हॉस्टल फॉर ऑल’ की सुविधा मुहैया कराई जानी चाहिए ताकि प्रवासी स्टूडेंट बेफिक्री से अपना समय पढ़ाई पर लगाकर शहर की भूगोल में दर-ब-दर होने से बच सके।

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