Sunday, July 7, 2019

कविता -सिसकता संविधान

मेंरी बात करो ना भैया ,तुम अपना घरवार सँभालो ।
मैं तो खतरे से बाहर हूँ ,तुम अपना संसार सँभालो ।।

संघ राज्य बतलाते मुझको,नाम राष्ट्र का दे ना पाये ।
अब भी मुझमें छिपे पड़े हैं ,ब्रिटिश कानूनों के साये ।
मेरी नाव देखने वालों , तुम अपनी पतवार सँभालो ।।
मेरी बात करो ना भैया ,तुम अपना घरवार सँभालो ।।1

जब भी पाया तुमने मौका ,देते आये मुझको धोखा ।
सौ से ज्यादा घाव दिए हैं ,संसद में सब लेखा जोखा ।
मेरी घायल देह न देखो ,अपने राज कुमार सँभालो ।।
मैं तो खतरे से बाहर हूँ ,तुम अपना संसार सँभालो ।।2

तुम बैठे हो घात लगाए ,मिल कैसे सरकार गिरायें ।
अपने अपने युवराजों को ,गद्दी का हकदार बनायें ।
मेरे रोग गिनाओ ना तुम ,खुद अपना उपचार सँभालो ।।
मेरी बात करो ना भैया ,तुम अपना घरवार सँभालो ।।3

मुझको धर्म हीन बतलाकर ,तुमने ही निरपेक्ष बनाया ।
बिना आत्मा के क्या कोई ,जीवित रह सकती है काया ।
मेरी नीव न खोदो "हलधर,"तुम अपनी दीवार सँभालो ।।
मैं तो खतरे से बाहर हूँ ,तुम अपना संसार सँभालो ।।4।।

जसवीर सिंह 'हलधर'
देहरादून उत्तराखंड --248001

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