नॉनवेज (मांसाहार) खाने वाले हो जाएं सावधान। बकरा, मुर्गा और मछली का मांस खाने वालों में हाईग्रेड एंटीबायोटिक्स कोलिस्टिन बेअसर हो रही है। मांस उत्पादन के लिए पशुओं को कोलिस्टिन वाले पौष्टिक आहार खिलाने से उनमें कोलिस्टिन की एंटीबॉडी विकसित हो गई है। केन्द्रीय दवा तकनीकी सलाहकार बोर्ड की जांच में इसकी पुष्टि हुई है। इसके बाद केन्द्र सरकार ने पशु आहार में कोलिस्टिन के प्रयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है।
कोलिस्टिन में स्टेरॉयड के गुण पाये जाते हैं। इसके सेवन से पशुओं का विकास तेजी से होता है। वे मांसल होते हैं। इसको देखते हुए ही पशुओं के लिए बनाए जाने वाले ज्यादातर पौष्टिक आहार में इस दवा का उपयोग हो रहा है। मुर्गी पालन केन्द्रों पर इस दवा का सर्वाधिक प्रयोग होता है। यह दवा मुर्गियों को बीमारी से बचाने के साथ ही उनके विकास को तेज कर देती है। मत्स्य पालक भी इसका प्रयोग करते हैं।
इंसानों में मिले दवा के प्रतिरोधक गुण: कोलिस्टिन को हाईग्रेड एंटीबायोटिक्स की श्रेणी में रखा जाता है। आमतौर पर इसका प्रयोग अत्यंत गंभीर बीमारियों में इलाज के लिए किया जाता है। पिछले कुछ वर्षों में हजारों मरीजों की पहचान हुई। केन्द्र सरकार की दवा तकनीकी सलाहकार बोर्ड की जांच में इसकी पुष्टि हुई। इसके बाद बोर्ड ने कोलिस्टीन को प्रतिबंधित करने की सिफारिश की।
केन्द्र सरकार ने लगाया उपयोग पर प्रतिबंध: केंद्र सरकार ने बीते 19 जुलाई को अधिसूचना जारी करके कोलिस्टिन और इसके फॉर्मूलेशन के दुधारू पशुओं, मुर्गे-मुर्गी, एक्वा फार्मिंग और पशुओं के आहार में प्रयोग करने पर रोक लगा दी है। अधिसूचना में कहा गया की यह फैसला औषधि तकनीकी सलाहकार बोर्ड की सिफारिश पर किया गया।
बैक्टीरिया संक्रमण पर असरकारक है कोलिस्टिन: कोलिस्टिन का उपयोग तब होता है जब मरीज में दूसरी सभी एंटीबॉयोटिक्स फेल हो जाती है। यह ग्राम निगेटिव बैक्टीरिया पर सबसे ज्यादा असरकारक है। यह निमोनिया के अंतिम चरण में सबसे असरकारक दवा है। फिजीशियन डॉ. संजीव गुप्ता ने बताया कि देश में कोलिस्टिन का आयात चीन से होता है। चीन में इस दवा का नियंत्रित उपयोग होता है। वहां भी पशुओं पर इस दवा का उपयोग प्रतिबंधित है।
बोले डॉक्टर: कोलिस्टिन का मरीजों में प्रतिरोध बढ़ना खतरनाक संकेत है। यह सबसे अंतिम चरण की उच्चस्तरीय एंटीबायोटिक है। मरीज पर जब अधिकांश एंटीबायोटिक बेअसर हो जाती है तब कोलिस्टिन का प्रयोग किया जाता है। -डॉ. संजीव गुप्ता, फिजीशियन
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